नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि वह जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि चुनाव आयोग इस महीने के अंत तक चुनाव की तारीखों की घोषणा कर देगा. हालांकि, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने यह बताने से इनकार कर दिया कि वह किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे. डोडा जिले में पार्टी के एक कार्यक्रम से अलग मीडिया से बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, 'बेटा उमर मौजूदा व्यवस्था के तहत चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं. उन्होंने मन बना लिया है कि वह राज्य का दर्जा बहाल होने तक चुनाव नहीं लड़ेंगे. हालांकि, मैं चुनाव लड़ने जा रहा हूं क्योंकि मैं मरा नहीं हूं.'
फारूक अब्दुल्ला से जब यह पूछा गया कि वह किस निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेंगे तो उन्होंने इसका जवाब अपने अंदाज में दिया. फारूक ने चुटकी लेते हुए कहा, 'मैं आपको पहले से क्यों बताऊं? एक जनरल अपनी रणनीति का खुलासा नहीं करता. मैं भी एक जनरल हूं और लड़ने के लिए तैयार हूं.'' अब्दुल्ला ने जोर देकर कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार अपने दम पर बनाएगी और उसे अल्लाह के अलावा किसी और के समर्थन की जरूरत नहीं है. चुनाव आयोग के जम्मू-कश्मीर के हालिया दौरे पर उन्होंने कहा कि रिपोर्ट्स के अनुसार 21 से 25 अगस्त के बीच चुनावों की घोषणा की जाएगी.
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फारूक अब्दुल्ला ने आगे कहा, 'हम चुनावों के लिए तैयार हैं. बेरोजगारी और महंगाई न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के सामने सबसे बड़ी समस्या है.' उनके इस बयान के बारे में पूछे जाने पर कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े मुसलमानों के लिए नरक इंतजार कर रहा है. अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस सन् 1998 से 2002 तक एनडीए सरकार का हिस्सा थी. अब्दुल्ला ने कहा कि उनकी पार्टी उन 35 पार्टियों में से एक थी जो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा थी. अब्दुल्ला ने कहा, 'हमने बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं किया है और उन्हें यहां नहीं लाए हैं. यह एक अलग बात है.'
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अब्दुल्ला ने लोगों से सतर्क रहने और आगामी विधानसभा चुनावों में एनसी उम्मीदवारों की जीत तय करने की अपील की. कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने एकता और दृढ़ता के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि लोगों को सतर्क रहने और बांटने वाले तत्वों को खारिज करने की जरूरत है. एनसी प्रमुख ने कहा कि आगामी चुनाव नजदीक आ रहे हैं. इसलिए सांप्रदायिक ताकतों से निपटने और लोकतंत्र के सिद्धांतों को कायम रखने के लिए समझदारी भरे फैसले लेना बेहद जरूरी है.
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