अन्नदाता हुंकार रैली में जुटे किसानजयपुर के बाईस गोदाम मैदान में मंगलवार को किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट के नेतृत्व में अन्नदाता हुंकार रैली आयोजित हुई, जिसमें प्रदेशभर से और आसपास के राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंचे. रैली में खेती के पानी, फसल के लाभकारी दाम, युवाओं को गांव में रोजगार और कृषि भूमि के संरक्षण को फोकस में रखने पर संगठन ने अपना पक्ष रखा. सभा में सर्वसम्मति से पारित पहले प्रस्ताव में देश में बढ़ती बेरोजगारी के लिए उपनिवेशवादी सोच से पोषित पूंजीवादी और सामंती नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया.
प्रस्ताव में कहा गया कि गांवों से लघु और कुटीर उद्योगों को खत्म करने की नीति ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ दी है. इसका परिणाम यह है कि युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं और परिवार लगातार तनाव में हैं. उदाहरण देते हुए कहा गया कि लाखों आवेदन के बाद भी नौकरियां कुछ हजार तक सीमित रह जाती हैं.
किसानों ने समाधान के रूप में शहर और गांव के बीच संसाधनों के असमान बंटवारे को समाप्त करने और गांवों को आर्थिक स्वायत्तता देने की मांग रखी. ग्राम उद्योगों को बढ़ावा देने और कृषि उपज को लाभकारी मूल्य मिलने से ही पलायन रुकेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि जब तक खेती सम्मानजनक आय नहीं देगी, तब तक रोजगार संकट गहराता रहेगा.
इसी प्रस्ताव में भारतमाला परियोजना के तहत प्रस्तावित ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे को दोहरे मापदंडों का प्रतीक बताया गया. किसानों ने आरोप लगाया कि सरकार कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के लिए यात्रा का समय घटाने को प्राथमिकता दे रही है, जबकि खेतों तक पहुंचने वाले किसानों की दूरी, समय और लागत बढ़ने की अनदेखी की जा रही है. इसे कृषि हितों के खिलाफ बताया गया.
किसानों ने चुनाव में जाति, धर्म और दल की राजनीति से ऊपर उठकर समान आर्थिक हितों के आधार पर मतदान करने की अपील की. मंच से कहा गया कि किसान जागरण अभियान के जरिए संकल्पवान मतदाता तैयार करना समय की जरूरत है. यही किसान केंद्रित राजनीति और ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था की नींव बनेगा.
दूसरे प्रस्ताव में किसानों ने अपने उत्पादों की कीमत खुद तय करने की दिशा में ठोस कदम उठाया. किसानों ने सरसों का मूल्य 6500 रुपये प्रति क्विंटल तय करते हुए इससे कम दाम पर बिक्री नहीं करने का संकल्प लिया. बताया गया कि वर्ष 2026-27 के लिए सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6200 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है, जबकि लागत और महंगाई को देखते हुए यह अपर्याप्त है. किसानों का तर्क रहा कि सरकारी गणना के अनुसार भी एमएसपी इससे अधिक होना चाहिए, इसके बावजूद किसानों ने व्यावहारिक रूप से 6500 रुपये का मूल्य तय किया.
रैली में कृषि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया गया. किसानों ने कहा कि खाद्य सुरक्षा के लिए खेती की जमीन बचाना अनिवार्य है. प्रस्तावित 9 ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे निरस्त होने तक संघर्ष जारी रखने का निर्णय लिया गया. किसानों ने सड़क निर्माण की बजाय सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता देने की मांग की और कहा कि यमुना, चंबल, माही और सिंधु जैसी नदियों का पानी आज भी खेतों तक नहीं पहुंच पाया है.
राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने मंच से सरकार को आगाह करते हुए कहा कि अतिवृष्टि से नष्ट फसलों के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत सहायता और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लंबित क्लेम का भुगतान होने तक आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने कहा कि किसान अब केवल आश्वासन नहीं, ठोस फैसले चाहता है.
रैली में देश और प्रदेश के कई किसान नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद शामिल हुए. मध्यप्रदेश और हरियाणा से आए प्रतिनिधियों ने भी आंदोलन को समर्थन दिया. कार्यक्रम के अंत में किसानों ने सरकार द्वारा 3 अक्टूबर की वार्ता के बाद ठोस कार्रवाई न करने पर नाराजगी जताई और मुख्यमंत्री आवास की ओर कूच किया, जिसे पुलिस ने रोक दिया. बाद में पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की मुख्य सचिव से वार्ता हुई.
रैली की खास बता यह रही कि इसमें शामिल किसानों ने यात्रा और भोजन की व्यवस्था स्वयं की. मंच से कहा गया कि यह आयोजन उन राजनीतिक रैलियों से अलग है, जहां भीड़ जुटाने के लिए पैसा खर्च होता है और भागीदारी मुफ्त सुविधाओं पर आधारित रहती है. किसानों ने इसे आत्मसम्मान और हिस्सेदारी से खड़ा आंदोलन बताया, जिसमें केवल वही शामिल हुआ जो वास्तव में बदलाव चाहता है.
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