महागठबंधन के सीएम उम्मीदवार तेजस्वी यादवबीते दिनों INDIA गठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अपना संकल्प पत्र जारी किया, जिसे नाम दिया गया है — “बिहार का तेजस्वी प्रण”. इस संकल्प पत्र में गठबंधन ने बिहार के समग्र विकास का खाका पेश करते हुए सरकार बनने के बाद किए जाने वाले प्रमुख कार्यों की झलक दिखाई है. जहां एक ओर “हर घर से एक सरकारी नौकरी” का वादा लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बना हुआ है. वहीं इससे भी अधिक दिलचस्प और बहस का विषय बना है कृषि एवं भूमि सुधार से जुड़ा ऐलान — “सभी बटाईदार किसानों को पहचान पत्र जारी करने की घोषणा.
इस घोषणा के बाद बिहार के ग्रामीण इलाकों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है. लोग अलग-अलग तर्क और उम्मीदें जता रहे हैं कोई इसे किसानों के हक में बड़ा कदम बता रहा है, तो कोई इसके व्यावहारिक पहलुओं पर सवाल उठा रहा है. संकल्प पत्र में केवल खेती तक सीमित न रहते हुए किसान, कृषि, पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिए कई नीतिगत पहल की बात भी की गई है.
इंडिया गठबंधन की ओर से जारी संकल्प पत्र में बताया गया है कि सभी बटाईदार किसानों को पहचान पत्र जारी किए जाएंगे. इन पहचान पत्रों के माध्यम से उन्हें एमएसपी, केसीसी और अन्य सभी सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा. इस घोषणा को लेकर अलग-अलग स्तर पर विश्लेषण किया जा रहा है. बता दें कि बिहार राज्य में लघु एवं सीमांत किसानों की संख्या काफी अधिक है.
यहां लाखों ऐसे किसान हैं जो जमीन किराए पर लेकर या आधा-आधा अनाज देने के समझौते पर भू-मालिकों से जमीन लेकर खेती करते हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इन किसानों को अब तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता. इस पृष्ठभूमि में इंडिया गठबंधन के संकल्प पत्र में यह कहा गया है कि अब ऐसे किसानों को भी इन योजनाओं का लाभ दिया जाएगा. हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि इंडिया गठबंधन इस योजना को कैसे लागू करेगा.
बिहार में हाल के समय में भूमि सर्वे का कार्य चल रहा है. इसके शुरू होने के साथ ही कई तरह के सवाल और भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आए हैं. इसी गंभीरता को देखते हुए इंडिया गठबंधन ने भूमि सर्वे से जुड़े कार्यों को अपने संकल्प पत्र में शामिल किया है. संकल्प पत्र के अनुसार, भूमि सर्वेक्षण व्यवस्था को सुसंगत बनाया जाएगा, बंद भूमि खातों को खोला जाएगा, और भूमि सर्वे में वास्तविक दखल व प्रकृति के आधार पर विवादित सर्वेक्षण किया जाएगा.
साथ ही विधिक आयोग की अनुशंसा के अनुरूप भूमि सुधार प्रक्रिया को तेज किया जाएगा और भूमि अधिनियम में प्रगतिशील बदलाव की पहल की जाएगी. इंडिया गठबंधन की इन घोषणाओं से यह स्पष्ट होता है कि वह उन लोगों को अपनी ओर आकर्षित करना चाह रही है जो भूमि सर्वे प्रक्रिया से नाराज हैं या जिनकी जमीन सरकार की विभिन्न योजनाओं में चली गई है लेकिन उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला. यह कहा जा सकता है कि गठबंधन ने इस घोषणा के जरिए एक लंबी राजनीतिक चाल चली है.
विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इंडिया गठबंधन ने किसान और कृषि को लेकर कई बड़ी घोषणाएं की हैं. इनमें फसल बीमा योजना के साथ-साथ किसान बीमा योजना लागू करने की बात कही गई है. दूध, मछली, मुर्गी, बकरी, रेशम और अन्य कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देने की भी घोषणा की गई है. बिहार में बंद पड़ी चीनी मिलों को फिर से चालू करने का वादा भी संकल्प पत्र में शामिल किया गया है. इसके साथ ही मक्का भंडारण से लेकर सभी जीआई टैग उत्पादों के लिए बोर्ड गठित करने और सभी जिलों में कृषि और पशु चिकित्सा कॉलेजों की स्थापना करने की भी बात कही गई है.
इसके साथ ही कृषि भूमि के अंधाधुंध अधिग्रहण पर रोक लगाने, और 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत बाजार दर से चार गुना मुआवजा देने की घोषणा भी प्रमुखता से की गई है. साथ ही मंडी और बाजार समितियों को फिर से जीवित करने की भी बात कही गई है.
बीते कुछ वर्षों में किसानों के बीच सबसे बड़ा मुद्दा रहा है — सरकार द्वारा ली जा रही जमीनों का उचित मुआवजा न मिलना. इस कारण किसान आज भी कोर्ट से लेकर सड़क और सरकारी दफ्तरों तक चक्कर काट रहे हैं. भूमि सर्वे शुरू होने के साथ बिहार में कई नई समस्याएं सामने आईं लोग अपने जमीन के कागजात सुधारवाने से लेकर अपने नाम पर हस्तांतरण कराने के लिए भूमि सुधार विभाग के दफ्तरों के आगे-पीछे दौड़ते नजर आए. इसके अलावा फसलों का उचित मूल्य और बीमा न होना भी किसानों की बड़ी शिकायत रही है.
साथ ही, बंद चीनी मिलों को लेकर भी किसानों में असंतोष रहा है, जिन्हें चालू करने की मांग लगातार उठती रही है. इन सभी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इंडिया गठबंधन ने अपने संकल्प पत्र में इन्हें शामिल कर उन तमाम वोटरों को आकर्षित करने की राजनीतिक रणनीति अपनाई है. हालांकि यह भी सच है कि गठबंधन के घटक दलों में से कुछ पहले जदयू सरकार में भी शामिल रहे हैं, परंतु उस समय इन मुद्दों पर कोई ठोस पहल नहीं की गई थी. अब देखना यह होगा कि अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आती है, तो क्या ये वादे वास्तव में पूरे किए जाएंगे या यह भी एक चुनावी जुमला बनकर केवल कागजों में ही सीमित रह जाएगा.
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