केंद्र सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ जुर्माने की राशि को दोगुना कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है. दूसरी ओर, जुर्माना बढ़ते ही किसान संगठनों ने सरकार पर हमले तेज कर दिए हैं. किसान संगठनों का कहना है कि जुर्माना लगाना पराली की आग और धुएं का समाधान नहीं हो सकता बल्कि सरकार को इसका कोई स्थायी हल सोचना होगा. इनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट (EPA) के तहत केंद्र सरकार ने जुर्माने की राशि बढ़ाई है.
संयुक्त किसान मोर्चा गैर-राजनीतिक के नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि केंद्र सरकार ने पंजाब को मुआवजे के लिए 1200 करोड़ रुपये की राशि देने से इनकार कर दिया. मुआवजे का यह पैसा राज्य सरकार ने केंद्र से मांगा था. उन्होंने कहा कि जुर्माना दोगुना करना समस्या का समाधान नहीं है. यह कदम केंद्र और राज्य सरकार दोनों के किसानों से बदला लेने के रवैये का संकेत है. पंढेर ने कहा कि दोनों सरकारें किसानों से बदला ले रही हैं. इसी को देखते हुए किसानों पर तरह-तरह की कार्रवाई की जा रही है.
अखिल भारतीय किसान महासंघ के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों को मुआवजा देने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है. भंगू ने कहा कि किसान धान की पराली को आग नहीं लगाना चाहते हैं. भंगू ने कहा, "बल्कि, सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने के कारण किसानों को मजबूरन पराली को आग लगाना पड़ रहा है."
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नए नियमों के अनुसार, दो एकड़ से कम जमीन वाले किसान को 5,000 रुपये का मुआवजा देना होगा, जबकि पहले यह जुर्माना 2,500 रुपये था. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से 6 नवंबर को नोटिफाई किए गए नए नियमों के अनुसार, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सहित प्रमुख राज्यों में पराली जलाने वाले किसानों पर मुआवजा लगाया जाएगा. इस बीच, दो एकड़ या उससे अधिक लेकिन पांच एकड़ से कम जमीन रखने वाले किसान पर अब 5,000 रुपये से 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. पांच एकड़ से अधिक जमीन रखने वालों को 15,000 रुपये के बजाय 30,000 रुपये का मुआवजा देना होगा. यह मुआवजा पर्यावरण शुल्क के रूप में होगा.
किसान संगठनों के अलावा आम किसानों ने भी इसका विरोध किया है. उनका कहा है कि जुर्माना लगाना या किसी तरह की कानूनी कार्रवाई करना पराली का स्थायी समाधान नहीं हो सकता. किसानों की शिकायत ये भी है कि पराली मैनेजमेंट के लिए सीआरएम मशीनें पर्याप्त संख्या में नहीं हैं. प्रदेश में कुछ हजार ही सीआरएम मशीनें हैं जबकि पराली बड़ी मात्रा में निकलती है. किसानों को गेहूं बुवाई के लिए जल्दी खेत करना होता है, इसलिए वे मजबूरी में पराली को आग लगाते हैं.
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