अक्टूबर-नवंबर में तीन राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनावों के बाद ये चुनाव भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. ऐसे में पार्टी कुछ ऐसे नए कदम उठाने जा रही है जो कई लोगों को चौंका सकते हैं. एक रिपोर्ट पर अगर यकीन करें तो बीजेपी 15 राज्यों में नए अध्यक्षों का ऐलान कर सकती है. इसे राज्यों की इकाई में एक बड़ा उलटफेर माना जा रहा है. जल्द ही पार्टी के संगठनात्मक चुनावों होने हैं लेकिन उससे पहले आंतरिक चुनावों पर बड़ा फैसला हो सकता है. सूत्रों की मानें तो जिन राज्यों में पार्टी अपने अध्यक्षों को बदलेगी उनमें वो राज्य भी शामिल हैं जहां पर चुनाव होने वाले हैं. साथ ही साथ ऐसे राज्य भी हैं जहां पार्टी ने हालिया लोकसभा चुनावों में निराजशाजनक प्रदर्शन किया है.
डेक्कन हेराल्ड ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और असम जैसी राज्य इकाइयों में आने वाले महीनों में नए बीजेपी अध्यक्षों का ऐलान हो सकता है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि हर राज्य इकाई बीजेपी के लिए एक अलग चुनौती पेश करती है, जिसके कारण बदलाव की जरूरत है. कुल मिलाकर, पार्टी इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले खुद को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा, कुछ राज्य इकाइयों में अंदरूनी कलह की भी खबरें हैं.
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उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में पार्टी ने न केवल लोकसभा चुनावों में निराशाजनक नतीजों से सबको हैरान किया है बल्कि हाल ही में हुई समीक्षा बैठकों में भी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य दोनों को अलग-अलग सुर में आवाज उठाते हुए देखा गया है. जहां सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्य में पार्टी की हार के लिए पार्टी के 'अति आत्मविश्वास' को जिम्मेदार ठहराया तो वहीं मौर्य ने कहा कि पार्टी, सरकार सहित सभी मुद्दों से ऊपर है. मंगलवार को मौर्य ने दिल्ली में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कुछ और वरिष्ठ नेताओं से भी मुलाकात की है.
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बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. खासकर तब जब इंडिया गठबंधन ने लोकसभा में और फिर हाल ही में हुए उपचुनावों में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है. बीजेपी बंगाल में भी एक नया और चेहरा अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त करने पर विचार कर रही है, जहां उसे एक के बाद एक मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. असम भी साल 2026 में एक महत्वपूर्ण लड़ाई के तौर पर आकार ले रहा है. उस समय यहां पर विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस इस बार यहां सम्मानजनक संख्या में जीत दर्ज करने के बाद फिर से उभरने की उम्मीद कर रही है.
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