दिल्ली के 174 से अधिक 'घोषित शहरी गांवों' में कृषि भूमि के स्वामित्व अधिकारों के हस्तांतरण को सरल बनाने के लिए, उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने मंगलवार को उत्तराधिकार के आधार पर म्यूटेशन प्रक्रिया की शुरुआत की घोषणा की. उन्होंने कहा कि यह निर्णय उन लाखों निवासियों को प्रभावित करेगा, जिन्हें 2010 से इस प्राकृतिक अधिकार से वंचित रखा गया था.
एलजी सक्सेना ने मंगोलपुरी औद्योगिक क्षेत्र में एक डीडीए कार्यक्रम में कहा, "मैंने राजधानी के गांवों का बार-बार दौरा किया है और हर गांव से यह मांग बार-बार सुनी है. कई नागरिक समाज संगठनों ने म्यूटेशन प्रक्रिया खोलने का अनुरोध किया था. दिल्ली के सात सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी एक प्रतिनिधित्व प्रस्तुत किया था. मंगलवार से, दिल्ली के शहरीकृत गांवों में राजस्व अधिकारियों द्वारा उत्तराधिकार के आधार पर कृषि भूमि का म्यूटेशन फिर से शुरू हो गया है, जैसा कि पहले किया जाता था."
इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए इस सप्ताह से गांवों में कैंप लगाए जाएंगे, जिसकी शुरुआत शुक्रवार को 12 गांवों से होगी. एक अधिकारी ने बताया कि इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए दिल्ली विकास अधिनियम में कोई संशोधन करने की जरूरत नहीं होगी.
बता दें कि 2017 से 174 गांवों को शहरीकृत घोषित किया गया था. हालांकि, गांवों के शहरीकरण और डीडीए को हस्तांतरित होने के कारण भूमि का स्वामित्व परिवार के सदस्यों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया रुकी हुई थी. अधिकारियों का तर्क था कि शहरीकरण के बाद, दिल्ली भूमि राजस्व अधिनियम, जिसके तहत म्यूटेशन किया जाता है, इन गांवों पर लागू नहीं होता था. दिल्ली देहात विकास मंच की मास्टर प्लान समिति के अध्यक्ष भूपिंदर बाज़द ने इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, "हम इसके लिए लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और म्यूटेशन की अनुमति देना हमारी प्रमुख मांगों में से एक थी. हमारी मांगों में मास्टर प्लान 2041 को लागू करना भी शामिल था."
बता दें कि एलजी के दिए आदेश के बाद से अब इन गांवों में विरासत के आधार पर भूमि का म्यूटेशन (मालिकाना हक का आधिकारिक हस्तांतरण) राजस्व अधिकारियों द्वारा किया जाएगा. इसके तहत दिल्ली के 360 गांवों को लाभ होगा, जहां पंचायत और ग्रामीण लंबे समय से यह मांग कर रहे थे कि उन्हें उनकी जमीन पर मालिकाना हक दिया जाए. एलजी ने कहा कि, यह कदम विशेष रूप से उन गांवों के लिए महत्वपूर्ण है जो शहरीकृत हो चुके हैं लेकिन अभी तक भूमि स्वामित्व के अधिकार स्पष्ट नहीं हो पाए थे. यह योजना दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों को और अधिक विकास की ओर ले जाएगी.
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दिल्ली के कई ग्रामीण इलाकों में, शहरीकरण के बावजूद, निवासियों को उनकी भूमि पर पूर्ण मालिकाना हक नहीं मिल पाया था. अब यह अधिकार उन्हें विरासत के आधार पर प्राप्त होगा, जो पहले की प्रक्रिया से मेल खाता है. इस नई प्रक्रिया के तहत, राजस्व अधिकारी शिविरों के माध्यम से गांवों में जाकर म्यूटेशन प्रक्रिया को पूरा करेंगे.
दिल्ली पंचायत संघ के अनुसार, यह कदम ग्रामीणों के लिए बहुत बड़ी राहत लेकर आएगा, क्योंकि इससे उनकी भूमि की कानूनी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी. इसके अलावा, पंचायत संघ ने गांवों को लाल डोरा से मुक्त करने और भूमि कर की छूट जैसी अन्य मांगों को भी प्रमुखता से उठाया है. इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण विकास को प्रोत्साहित करना और उन्हें बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना है, जो दिल्ली के शहरी इलाकों में पहले से ही हैं.
दिल्ली भूमि राजस्व अधिनियम के तहत म्यूटेशन की प्रक्रिया एक प्रशासनिक प्रक्रिया थी, जिसके जरिये भूमि के स्वामित्व में किसी प्रकार के बदलाव को ऑफिशियल रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता था. इस पूरी प्रोसेस को स्टेप बाय स्टेप समझिए.
आवेदन: जमीन का मालिक (या उत्तराधिकारी) म्यूटेशन के लिए संबंधित राजस्व विभाग में आवेदन करता था. आवेदन के साथ दस्तावेज़ जैसे कि वसीयत, सेल डीड, उत्तराधिकार प्रमाण पत्र, या अदालत का आदेश भी लगाना होता था. इस आवेदन के साथ शुल्क भी लगता है.
जांच: राजस्व अधिकारी आवेदन की समीक्षा करता था और आवेदन में अटैच डॉक्यूमेंट्स की जांच करता था. जमीन के स्वामित्व और उससे जुड़े अन्य रिकॉर्ड का सत्यापन किया जाता था.
पब्लिक नोटिस: म्यूटेशन प्रक्रिया के दौरान, संबंधित भूमि के म्यूटेशन के बारे में जन सूचना जारी की जाती थी ताकि यदि किसी को आपत्ति हो, तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सके. यह नोटिस सार्वजनिक रूप से जारी किया जाता था, ताकि कोई भी संबंधित व्यक्ति म्यूटेशन पर सवाल उठा सके.
सत्यापन और निरीक्षण: राजस्व अधिकारी जमीन का भौतिक निरीक्षण कर सकते थे और जांच करते थे कि जो परिवर्तन किए जा रहे हैं, वे वैध हैं. इसमें ज़मीनी सर्वेक्षण भी शामिल हो सकता था.
म्यूटेशन एंट्री: जब सारे दस्तावेज सही पाए जाते थे और कोई आपत्ति नहीं होती थी, तो राजस्व अधिकारी भूमि रिकॉर्ड में बदलाव दर्ज कर देता था.
दिल्ली में जब तक गांवों का शहरीकरण नहीं हुआ था, तब तक म्यूटेशन इसी प्रकार से राजस्व अधिकारियों द्वारा किया जाता था. शहरीकरण के बाद जब गांवों को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के तहत स्थानांतरित किया गया, तो यह प्रक्रिया बंद हो गई क्योंकि ऐसा माना गया कि दिल्ली भूमि राजस्व अधिनियम इन शहरीकृत गांवों पर लागू नहीं होता था.
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