खरीफ उत्पादन के अग्रिम अनुमान पर उठे सवाल (सांकेतिक तस्वीर)अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) ने हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से जारी किए गए 2025-26 के खरीफ उत्पादन के पहले अग्रिम अनुमानों को पूरी तरह ‘फर्जी’ और ‘जमीनी हकीकत से अलग’ बताया है. संगठन ने कहा कि इन अनुमानों में पिछले साल की उत्पादकता के रुझान और राज्यों से मिले आकलनों पर ज्यादा भरोसा किया गया है, जबकि इस साल उत्तर भारत समेत कई राज्यों में भीषण बाढ़ ने फसलें तबाह कर दीं.
AIKS ने अपने बयान में कहा कि सरकार द्वारा जारी अनुमान में धान का उत्पादन 124.5 मिलियन टन और मक्का का उत्पादन 28.3 मिलियन टन होने का दावा किया गया है. लेकिन, वास्तविकता यह है कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर फसलें जलमग्न हुईं और खेत महीनों तक पानी में डूबे रहे.
AIKS ने कहा कि अकेले पंजाब में लगभग 1.9 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ की चपेट में आई. हरियाणा में राज्य सरकार के ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर 12.5 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में फसल नुकसान की रिपोर्ट दर्ज की गई है. हिमाचल प्रदेश में आधिकारिक आकलन के मुताबिक, 24,552 हेक्टेयर भूमि पर खड़ी फसलें बर्बाद हुई हैं. इतना ही नहीं, पंजाब और हरियाणा में धान की फसल पर ड्वार्फ वायरस के प्रकोप ने अतिरिक्त नुकसान पहुंचाया है.
AIKS ने कहा कि बाढ़ का असर उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत तक फैला, जहां महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में भी कई जिलों में खरीफ फसलों को गंभीर क्षति हुई. संगठन का आरोप है कि ऐसे व्यापक नुकसान के बावजूद केंद्र ने पुराने पैटर्न और पिछली उपज के आंकड़ों के आधार पर ‘रिकॉर्ड उत्पादन’ का दावा कर दिया.
किसान संगठन ने इस बात पर भी गंभीर चिंता जताई कि खरीफ सीजन के दौरान यूरिया और अन्य उर्वरकों की भारी कमी से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी. कई राज्यों में AIKS की टीमों ने खुद प्रभावित इलाकों का दौरा करके उर्वरक के लिए लंबी कतारों और किसानों की परेशानी का प्रत्यक्ष अनुभव किया. संगठन का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से उर्वरक आपूर्ति की किल्लत आम समस्या बन गई है, लेकिन सरकार इसकी अनदेखी कर रही है.
AIKS ने केंद्र पर आरोप लगाया कि गलत और अव्यवहारिक आंकड़े जारी कर सरकार वास्तविक स्थिति को ‘लीपापोती’ कर रही है. जब नुकसान इतना व्यापक और गंभीर हो, तो पुराने औसत या सामान्य ट्रेंड पर आधारित उत्पादन अनुमान किसानों के प्रति अन्याय है, क्योंकि इन्हीं आंकड़ों के आधार पर फसल बीमा के दावे और मुआवजा तय होता है. ऐसे में गलत अनुमान से किसानों को उनका वैध हक नहीं मिल पाता.
केंद्र सरकार के अनुसार, 26 नवंबर को कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान में कुल खाद्यान्न उत्पादन 2024-25 की तुलना में 3.87 मिलियन टन बढ़कर 173.33 मिलियन टन रहने का अनुमान है. सरकार का तर्क है कि जहां कुछ क्षेत्रों में वर्षा अधिक होने से फसलें प्रभावित हुईं, वहीं देश के अधिकांश हिस्सों में अच्छा मॉनसून रहा, जिससे कुल मिलाकर खरीफ उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है.
AIKS का कहना है कि केवल ‘कुल मिलाकर अच्छी स्थिति’ कह देना किसानों की वास्तविक परेशानी को ढकने जैसा है. संगठन ने मांग की कि केंद्र सरकार को तुरंत नए सिरे से जमीनी रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए और बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में विशेष पैमाने पर नुकसान का आकलन कर मुआवजा देना चाहिए. किसान संगठन ने यह भी कहा कि खरीफ फसलें जून-जुलाई में बोई जाती हैं और सितंबर-अक्टूबर में कटती हैं.
इस सीजन में जब आधी से अधिक अवधि बाढ़, अत्यधिक बारिश और उर्वरक संकट में बीती, तो ‘रिकॉर्ड उत्पादन’ का दावा किसानों के अनुभव से मेल नहीं खाता. AIKS ने कहा कि अगर सरकार वास्तविक उत्पादन स्थिति जानना चाहती है तो उसे प्रभावित राज्यों में तत्काल व्यापक सर्वे और वैज्ञानिक पद्धति से फसल नुकसान का फिर से मूल्यांकन कराना चाहिए. (पीटीआई)
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