सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) लोकसभा में डिप्टी स्पीकर के मसले पर विपक्ष के दावे के खिलाफ नहीं है. न्यूज एजेंसी पीटीआई की तरफ से जानकारी दी गई है कि एनडीए डिप्टी स्पीकर के विचार के लिए तैयार है. सूत्रों के हवाले से एजेंसी ने जानकारी दी है कि इस मामले पर बाद में फैसला लिया जाएगा. सूत्रों की मानें तो एनडीए ने इस पद पर विपक्ष के दावे को खारिज नहीं किया है. हालांकि विपक्ष की तरफ से उसके उम्मीदवार के लिए इस पद की मांग करने पर आलोचना की है. स्पीकर के चुनाव के दौरान ऐसी पूर्व शर्त पर विचार नहीं किया जा सकता.
पिछली लोकसभा के दौरान कोई डिप्टी स्पीकर नहीं था. गौरतलब है कि स्पीकर के तौर पर ओम बिड़ला की पसंद पर आम सहमति बनाने के सरकार के प्रयास विफल हो गए थे. विपक्षी दलों ने जोर देकर कहा कि उन्हें 'परंपरा' के अनुसार डिप्टी स्पीकर का पद दिया जाना चाहिए. एनडीए की मानें तो विपक्ष की मांग पर तब विचार किया जा सकता है जब डिप्टी स्पीकर के लिए चुनाव होगा. लेकिन इसमें कोई पूर्व शर्त नहीं होनी चाहिए.
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नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में माना जा रहा है कि डिप्टी स्पीकर के पद को फिर से भरा जाएगा. वहीं ऐसे भी संकेत हैं कि परंपरा से हटकर मौजूदा उपाध्यक्ष विपक्ष से नहीं बल्कि एनडीए से होने की संभावना है. ऐसे में यह साफ है कि सरकार बनाम विपक्ष के बीच कड़वाहट बढ़ेगी. माना जा रहा है कि जल्द ही डिप्टी स्पीकर का ऐलान हो जाएगा.
विपक्ष ने स्पीकर के पद के लिए अनुभवी कांग्रेस नेता के. सुरेश को अपना उम्मीदवार बनाया था. ओम बिड़ला का चुनाव ध्वनि मत से हुआ था. हालांकि पहले कई सरकारों ने विपक्ष को डिप्टी स्पीकर के तौर पर अपना उम्मीदवार रखने की अनुमति दी है. वहीं बीजेपी की मानें तो हमेशा ऐसा नहीं होता है. कांग्रेस ने दावा किया है कि मान्यता प्राप्त विपक्षी दल के रूप में, पिछली दो लोकसभाओं के दौरान उसे यह दर्जा नहीं मिला था. इसलिए अब उसके सदस्य को निचले सदन में यह पद मिलना चाहिए.
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तीन बार के बीजेपी सांसद रहे ओम बिरला बुधवार को दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष चुने गए. ओम बिरला जब स्पीकर की कुर्सी पर बैठे तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू भी मौजूद थे और उन्होंने ओम बिरला को कुर्सी तक पहुंचाया. यह पहली बार नहीं था कि स्पीकर के पद के लिए मतदान हुआ है. इससे पहले कम से कम तीन मौकों पर सदन में मतदान हुआ है. जबकि दो और उदाहरणों में, विपक्षी दलों ने एक उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन अध्यक्ष का चुनाव ध्वनि मत के आधार पर हुआ था.
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