एक समय था जब लगभग हर भारतीय घरों के आंगन में तुलसी का पौधा दिखता था. लेकिन शहरीकरण ने आंगन और तुलसी, दोनों को पीछे छोड़ दिया. लेकिन अब तुलसी का महत्व औषधीय और कमर्शियल दोनों तरीके से बढ़ गया है. इसे समझते हुए झांसी जिले के पाठाकरका गांव के किसान पुष्पेंद्र सिंह यादव ने औषधीय खेती को अपनाया और नई कहानी लिखी.
10 साल पहले पुष्पेंद्र ने 10 एकड़ जमीन पर तुलसी की खेती शुरू की. आज उनकी यह पहल न केवल उनकी आर्थिक उन्नति का स्रोत बनी है, बल्कि अन्य किसानों के लिए प्रेरणा भी बन गई है. तुलसी की मांग हर्बल उत्पादों में अत्यधिक है. पुष्पेंद्र ने इस अवसर को पहचाना और खेती में तकनीकी नवाचारों को अपनाने पर जोर दिया.
उन्होंने तुलसी की उच्च क्वालिटी वाली प्रजातियों का चयन किया. साथ ही जैविक विधियों से उत्पादन को बढ़ाया और मात्र ढाई महीने में प्रति एकड़ से लगभग 60,000 रुपये की आमदनी हासिल की. इस तरीके से तुलसी की खेती ने उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया और और वो अपने एरिया के किसानों के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गए.
आज उनकी पहल का नतीजा है कि हजारों किसान तुलसी की खेती कर रहे हैं. पुष्पेंद्र ने समझाया कि सामूहिक प्रयास से औषधीय खेती को अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है. पुष्पेंद्र को शुरुआती दौर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों का समाधान सामूहिक प्रयासों के माध्यम से किया.
एफपीओ ने किसानों को बेहतर बाजार तक पहुंचाने के लिए बुंदेलखंड औषधि फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी (एफपीओ) का गठन किया. इस एफपीओ के तहत 1,072 किसान जुड़े, जो कुल 40,132 एकड़ भूमि पर तुलसी की खेती कर रहे हैं. यह प्रयास किसानों को संगठित करने और औषधीय खेती को बढ़ावा देने में कारगर साबित हुआ.
एफपीओ ने किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने के लिए 29 लाख रुपये की लागत से एक प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की. इस यूनिट में तुलसी की पत्तियों से तेल निकालने और उन्हें सुखाने की प्रक्रिया की जाती है. इसमें उद्यान विभाग ने 33 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान की, जिससे किसानों को आर्थिक सहायता मिली.
पुष्पेंद्र का लक्ष्य है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में औषधीय खेती को और अधिक बढ़ावा दिया जाए. वह एफपीओ के माध्यम से किसानों को नई तकनीकों और बाजारों से जोड़ने की योजना बना रहे हैं. साथ ही, वह अन्य औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा देने पर भी जोर दे रहे हैं.
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