महाराष्ट्र में श्रावणी अमावस्या का दिन किसानों और उनके सच्चे साथी बैल के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दिन पूरे राज्य में पारंपरिक बैल पोला उत्सव बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.
खेतों में सालभर मेहनत करने वाले इस "ऋषभ राजा" को किसान खास तौर पर सजाते-संवारते हैं और पूरे मान-सम्मान के साथ उसकी पूजा करते हैं. इस मौके पर बाजारों में रौनक देखते ही बनती है.
बैलों को सजाने के लिए तरह-तरह की चीजें दुकानों पर उपलब्ध हैं. घुंघरू और घंटी लगे पत्ते, अलग-अलग प्रकार की रस्सियां, आर्टिफिशियल फूल, रंग-बिरंगे कपड़े, बैलों की पीठ पर सजाने के लिए झूले, सींगों को रंगने के लिए ऑयल पेंट.
यहां तक कि अच्छे क्वालिटी की सूती रस्सी और चमड़े की बेल्ट तक बाजार में बिक रही हैं. दुकानदार 50 रुपये से लेकर 2,000 रुपये तक की वैरायटी उपलब्ध करा रहे हैं और किसान बिना महंगाई की परवाह किए अपने साथी बैल के लिए इन वस्तुओं की खरीदारी कर रहे हैं.
परंपरा के अनुसार, पोला के दिन बैलों को खेत के काम में नहीं लगाया जाता है. सुबह उन्हें नहलाकर हल्दी और घी का लेप उनके कंधों और गर्दन पर लगाया जाता है, ताकि सालभर हल जोतने से हुए दबाव का असर कम हो सके और किसी तरह का संक्रमण न हो.
इसके बाद बैलों को पूरनपोली का भोग अर्पित किया जाता है. किसान मानते हैं कि जैसे परिवार में किसी सदस्य का जन्मदिन मनाया जाता है, वैसे ही इस दिन बैल का उत्सव मनाकर उनकी मेहनत और साथ निभाने के लिए कृतज्ञता व्यक्त की जाती है.
इस उत्सव में महिलाओं का उत्साह भी देखते ही बनता है. गांव की महिलाएं बैलों को हल्दी लगाती हैं और उनके गले में सोने-चांदी के गहने तक सजाकर उनका श्रृंगार करती हैं. उनका मानना है कि बैल परिवार का हिस्सा है और उसकी पूजा से घर-आंगन में सुख-समृद्धि आती है.
किसानों का कहना है कि चाहे महंगाई कितनी भी क्यों न हो, बैलपोला उनके लिए अमूल्य पर्व है. यह दिन सिर्फ परंपरा का प्रतीक नहीं बल्कि किसान और बैल के अटूट रिश्ते का उत्सव भी है.
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