
क्या आपने कभी सोचा है कि जो शहद आप आज खाते हैं, वही शहद हजारों साल बाद भी वैसा ही रह सकता है. यह कोई कहावत नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और ऐतिहासिक रूप से साबित सच है.

शहद दुनिया के उन गिने-चुने प्राकृतिक खाद्य पदार्थों में शामिल है, जो सही तरीके से रखा जाए तो खराब नहीं होता. मिस्र की प्राचीन कब्रों में मिले शहद के मर्तबान इसका सबसे बड़ा सबूत हैं. पुरातत्वविदों को जब हजारों साल पुरानी कब्रों से शहद मिला तो जांच में पाया गया कि वह आज भी खाने योग्य था.

शहद के खराब न होने के पीछे उसकी प्राकृतिक संरचना जिम्मेदार है. शहद में नमी बहुत कम होती है और इसमें शुगर की मात्रा काफी ज्यादा होती है. यह संयोजन बैक्टीरिया और फंगस को पनपने का मौका नहीं देता. इसके अलावा शहद का pH स्तर भी अम्लीय होता है, जिससे सूक्ष्म जीव जीवित नहीं रह पाते.

मधुमक्खियां भी शहद बनाने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती हैं. वे फूलों से रस लाकर उसमें मौजूद पानी को अपने पंखों से उड़ाकर कम कर देती हैं और उसमें एंजाइम मिलाती हैं. यही एंजाइम शहद को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में मदद करते हैं.

अक्सर लोग सोचते हैं कि जम गया शहद खराब हो गया है. जबकि हकीकत यह है कि शहद का जमना यानी क्रिस्टलाइज होना पूरी तरह प्राकृतिक प्रक्रिया है. हल्का गर्म करने पर यह फिर से तरल रूप में आ जाता है और इसकी गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता.

शहद का यह गुण मधुमक्खी पालन को और भी खास बना देता है. किसान अगर शहद को नमी से दूर और एयरटाइट डिब्बों में रखें, तो वे लंबे समय तक इसे स्टोर कर सकते हैं और सही समय पर बेहतर दाम पर बेच सकते हैं. यही वजह है कि शहद को प्राकृतिक प्रिजर्वेटिव भी कहा जाता है.

बता दें कि लोग एक छत्ते में बनने वाले शहद की मात्रा जानकर भी हैरान रह जाते हैं. आमतौर पर एक मजबूत और स्वस्थ मधुमक्खी कॉलोनी एक सीजन में करीब 20 से 40 किलो तक शहद तैयार कर सकती है. अगर मौसम अनुकूल हो, फूलों की भरपूर उपलब्धता हो और कॉलोनी सही तरीके से प्रबंधित की जाए तो यह मात्रा 50 किलो तक भी पहुंच सकती है.

दिलचस्प बात यह है कि यह सारा शहद एक ही दिन में नहीं बनता, बल्कि हजारों मधुमक्खियां मिलकर कई हफ्तों की मेहनत के बाद इसे तैयार करती हैं. एक किलो शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों को लाखों फूलों से रस इकट्ठा करना पड़ता है, तभी जाकर छत्ते में यह सुनहरा खजाना जमा हो पाता है.
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