विशेषज्ञों के अनुसार गेंदे के फूल की खेती सीजन के हिसाब से की जाती है. गर्मी के सीजन में जनवरी माह में फूल लगाए जाते है. जिनका नवरात्र के दिनों में पूजा पाठ में खूब इस्तेमाल होता है और बाजार में अच्छी कीमत भी मिलती है. इसके बाद अप्रैल मई और फिर सर्दी शुरू होने से पहले अगस्त-सितंबर में फूलों की खेती की जाती है. इसकी डिमांड बाज़ार में सालभर बनी रहती है ऐसे में किसान इसकी सही तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
2-3 जुताई कर खेत तैयार कर लें. इसमें 20 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से मिला दें. अच्छी फसल हेतु 80 कि0ग्रा0 पोटाश खेत की तैयारी के समय मिला देना चाहिए. 60 कि०ग्रा० नाइट्रोजन रोपाई के एक माह बाद तथा 60 कि0ग्रा0 दो माह बाद प्रयोग करें. रोपण की दीरी अफ्रीकन गेंदा हेतू 40X40 सेंमी पर तथा फ्रेन्च के लिए 30X30 सें०मी० पर करें.
एक हैक्टेयर के लिए 800 ग्रा० संकर प्रजाति के बीज की आवश्यकता होती है तथा अन्य किस्मों में 1.25 कि0ग्रा0 बीज पर्याप्त होता है. उत्तर प्रदेश में बीज सर्दी की फसल के लिए अगस्त-सितम्बर में ग्रीष्म ऋतु हेतु जनवरी-फरवरी में व वर्षा ऋतु के लिए जून माह में बोया जाता है. बीज को पहले पौधशाला में 15 सेंमी0 ऊंची तथा 5-6 मीटर लम्बी तथा एक मीटर चौड़ी क्यारी में बोते हैं.एक माह बाद पौधे खेत में लगाने योग्य हो जाते हैं.
गेंदा की फसल को अपेक्षाकृत कम सिंचाई की आवश्यकता होती है. अधिक उपज के लिए शीतकाल में 10-15 दिन के अंतर पर तथा ग्रीष्मकाल में 5-6 दिन के अंतर पर हल्की सिंचाई करना चाहिए.
गेंदे की फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना जरूरी है. कम से कम दो निराई गुड़ाई पौधों के रोपण के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करना चाहिए.
रोपण के समय पौधे की ऊंचाई लगभग 10 सेंमी0 होना चाहिए. पौध रोपण के एक माह पश्चात 1000 पीव पी०एम० एसकॉर्बिक एसिड का छिड़काव करने से उपज में वृद्धि होती है. पौधे रोपण के30 दिन बाद शीर्षकर्तन (पिंचिंग) करने से पौधों में शाखाएं अधिक बनती हैं तथा पैदावार में वृद्धि होती है. पिंचिंग यानि ऊपर का कोमल भाग जरा-सा तोड़ दिया जाता है जिससे एक समान आकार के अधिक फूल प्राप्त होते है.
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