हरियाणा के करनाल जिले के खानपुर निवासी पुषपिंदर ने कच्ची घानी के चार कोल्हू लगाकर अपने ही खेतों में अलग-अलग तरह के तेल बनाने का एक कुटीर उद्योग शुरू किया है और आज उनके प्रोडक्ट के भारत भर में भेजे जा रहे हैं. वे प्राचीन विधि से तेल तैयार करते हैं.
इस बारे में जानकारी देते हुए पुषपिंदर ने बताया कि लगभग चार साल पहले उन्होंने इस तेल उत्पादक काम को शुरू किया था. शुरुआत एक कोल्हू से की गई थी और आज चार कोल्हू हो गए हैं.
उन्होंने बताया कि वो भारत की प्राचीन धरोहर को संभाले हुए हैं और असली कच्ची घानी की विधि से तेल को तैयार करते हैं. पुषपिंदर सरसों, अलसी, मुंगफली, बादाम व कुसुम इत्यादि कई प्रकार के तेल इस विधि से तैयार करते हैं.
पुषपिंदर बताते हैं कि प्राचीन समय में जैसे बैलों की मदद से कोल्हू को चलाया जाता था और तेल निकाला जाता है बिल्कुल उसी विधि से इन तेलों को तैयार किया जा रहा है. एक दिन में पांच से सात लीटर तेल ही बनता है. इस विधि से तैयार तेल बिलकुल शुद्ध होता है.
नीम व कीकर की लकड़ी से तैयार कोल्हू मशीन में तैयार होने वाला तेल बूंद बूंद कर बाहर निकलता है, जिससे इसमें नीम व कीकर के गुण भी शामिल हो जाते हैं. हमारे पुराने बुर्जुग इसी विधि से तैयार तेल का प्रयोग करते थे और स्वस्थ रहते थे.
पुषपिंदर ने बताया कि मौजूदा समय में बाजार में कच्ची घानी का केवल नाम ही लिया जाता है जबकि वो तेल भी मशीनों में ही तैयार हो रहा है. हम कच्ची घानी से तैयार तेल को छानकर कुछ दिनों के लिए खुले बर्तन में रखते हैं और दो तीन दिनों के बाद उसको अच्छी तरह से छानकर ही बोतलों में पैक करते हैं. उन्होंने बताया कि हम केवल कांच की बोतल में ही तेल को पैक करते हैं और पर्यावरण का ख्याल रखते हुए प्लास्टिक का कोई प्रयोग नहीं करते हैं.
पुषपिंदर ने बताया कि शुरूआत में उनको काफी दिक्क्तें आई, लेकिन आज उनके तेल की बाजार में बहुत मांग है और उनके पास ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं. उन्होंने कहा कि यदि नेक नीयत से किसी भी सामान को तैयार किया जाए तो उसकी बाजार में बिक्री करने में कोई दिक्कत नहीं होती है. उन्होंने कहा कि अब तक कई लोग उनसे इस विधि की पूरी जानकारी लेकर अपना काम कर रहे है. यदि कोई भी युवा कुछ नया करना चाहता है और इस काम को करना चाहता है तो वो उसकी पूरी मदद करेगें. पुषपिंदर ने कहा कि आने वाले समय में वो अपने खेतों में एक गौशाला भी बनाने जा रहे हैं.
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