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Election Memories : जब ओलंपिक खिलाड़ी ने चुनावी मैच में भी दर्ज कराई जीत

Election Memories : जब ओलंपिक खिलाड़ी ने चुनावी मैच में भी दर्ज कराई जीत

देश की राजनीति में खि‍लाड़ि‍यों ने भी अपनी Sports Spirit के बलबूते जनता का दिल कई बार जीता है. मगर, एक ऐसे खिलाड़ी भी हुए हैं, जिन्होंने खेल के मैदान में मुश्किल दौर का सामना कर रहे देश का रुतबा बरकरार रखा और बाद में चुनावी समर में भी कांग्रेस को मुसीबत से बाहर लाने में मदद की.

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लोकसभा चुनाव के रंग भी बहुत निराले हैं. इनमें चुनाव प्रचार के विविध रंगों के अलावा भांति भांति प्रकार के उम्मीदवार भी चुनावों में जनता के बीच नुमांया होते दिखते हैं. देश में लोकसभा चुनाव से जुड़े इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो इनमें हर वर्ग से जुड़े उम्मीदवारों की कहानियां भरी पड़ी हैं. उद्योगपति और संत फकीर से लेकर खिलाड़ी तक, चुनाव की रेस में सभी दौड़ते हांफते दिख जाएंगे. इस कड़ी में यदि खिलाड़ियों की बात की जाए तो क्रिकेट के सितारे कीर्ति आजाद, मुहम्मद अजहरुद्दीन और विराट कोहली से लेकर International Hocky Player असलम शेर खान तक, तमाम अन्य नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं. इनमें असलम शेर खान का चुनावी सफर औरों से अलहदा है. भोपाल के रहने वाले असलम शेर खान ने हॉकी के मैदान में अपने हुनर से भारत को 1975 के Olympic Games में गोल्ड मेडल दिलाया. बाद में उन्होंने सियासत के मैदान में भी खूब गोल दागे और एमपी की आदिवासी बहुल सीट बैतूल से दो बार लोकसभा तक का सफर तय किया.

जब कांग्रेस के लिए बने तारणहार

आदिवासी बहुल इलाके में शहरी क्षेत्रों के उम्मीदवार आसानी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं. वहीं, एमपी में बैतूल लोकसभा सीट इसका अपवाद रही है. आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित 4 विधानसभा क्षेत्र वाले बैतूल लोकसभा क्षेत्र में पहले स्थानीय उम्मीदवार नहीं जीतता था और अब बाहरी उम्मीदवार के लिए चुनाव लड़ना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है.

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कुआलालंपुर में आयोजित हुए 1975 के ओलंपिक खेलों में जब भारतीय हॉकी टीम पदक तालिका में आने के लिए संघर्ष कर रही थी, उस समय असलम शेर खान ने अपने शानदार खेल से भारत को गोल्ड मेडल दिला दिया. हॉकी से संन्यास लेकर अपने गृह जनपद भोपाल में जा बसे असलम शेर खान की मुश्किल हालात से लड़ने की महारथ का इस्तेमाल कांग्रेस ने चुनावी मैदान में भी किया. 

उन्होंने लोकसभा के लिए 1984 में हो रहे चुनाव में बैतूल सीट पर मुश्किलों का सामना कर रही कांग्रेस के लिए जुझारू उम्मीदवार की तलाश को पूरा किया. असलम शेर खान ने बैतूल सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखाई. उन्होंने चुनावी राजनीति के मैदान में भी शानदार प्रदर्शन कर न केवल 1984, बल्कि 1991 के चुनाव में भी बैतूल के आदिवासियों का दिल जीत कर लोकसभा में मौजूदगी दर्ज कराई.

बाहरी बनाम स्थानीय

बैतूल लोकसभा सीट के 72 साल के इतिहास में इस सीट के नाम पर एक अन्य रोचक तथ्य दर्ज है. यह देश की उन चुनिंदा सीटों में शुमार है, जहां लंबे समय तक बाहरी बनाम स्थानीय उम्मीदवार का मुद्दा छाया रहा. इस सीट पर 1952 में हुए पहले चुनाव के बाद 44 साल तक कोई स्थानीय उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया. इस दौरान कांग्रेस को महज 2 बार शिकस्त जरूर मिली, ले‍किन स्थानीय उम्मीदवार नहीं जीत पाया. साल 1977 में गैर स्थानीय उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रीय लोकदल के सुभाष आहूजा और 1989 में भाजपा के आरिफ बेग को चुनाव में कामयाबी मिली.

इस रिकॉर्ड को भाजपा ने 1996 में तोड़ कर पहले स्थानीय उम्मीदवार को जिताया. अब आलम यह है कि 1996 के बाद भाजपा के स्थानीय उम्मीदवार के सामने कांग्रेस पिछले 30 सालों में अब तक कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं उतार पाई है, जो भाजपा को हरा पाया हो.

महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से सटी बैतूल सीट पर भी छिंदवाड़ा की तरह, शुरुआती सालों में मराठी उम्मीदवार ही जीते. बैतूल सीट पर 1952 में पहले सांसद नागपुर निवासी भीखूलाल चांडक, बतौर कांग्रेस प्रत्याशी, चुनाव जीते थे. लगातार 3 चुनाव जीतने वाले चांडक के उत्तराधिकारी के रूप में नागपुर निवासी Tax Consultant एनकेपी साल्वे 1967 और 1971 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीते. इसके बाद कांग्रेस ने 1980 में बैतूल की बागडोर महाराष्ट्र के बजाए एमपी में भोपाल निवासी गुफरान आजम को सौंपने का सफल दांव चला. आजम के बाद 1984 और 1991 में भोपाल निवासी असलम शेर खान ने संसद में बैतूल की रहनुमाई की.

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28 साल से भाजपा का दबदबा

भाजपा ने इस सीट पर कांग्रेस के 44 साल के सिलसिले को तोड़ने के लिए स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार के मुद्दे को सामने रखकर 1996 का चुनाव लड़ा. इस मुद्दे पर जनता से सहमति जताते हुए भाजपा के विजय खंडेलवाल को चुनाव जिताया. इसके बाद उन्होंने 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी जीत दर्ज की. साल 2007 में विजय खंडेलवाल का निधन होने पर हुए उपचुनाव में जनता उनके बेटे हेमंत खंडेलवाल को जिताया.

परिसीमन के दौरान 2009 में बैतूल सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. इसके बाद भाजपा की ज्योति धुर्वे चुनाव जीतने में कामयाब रहीं. मगर, उनके जाति प्रमाण पत्र को फर्जी बताने की शिकायत हुई, जो अदालती जांच में सही पाई भी पाई गई. यह फैसला अने तक ज्योति ने 2014 में मिली चुनावी जीत का कार्यकाल भी पूरा कर लिया था.

इसके बाद 2019 के चुनाव में भाजपा ने बैतूल के शिक्षक दुर्गादास उइके को उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार रामू टेकाम को 3.6 लाख मतों से हरा दिया था. भाजपा ने अब एक बार फिर उन्हें 2024 में भी उम्मीदवार बनाया है. वहीं, कांग्रेस ने भी  टेकाम को ही इस चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है. अब देखना होगा कि इस चुनाव में लगभग 18.56 लाख मतदाताओं वाले बैतूल संसदीय क्षेत्र के मतदाता इस बार किस पर भरोसा जताते हैं. बैतूल लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें (बैतूल, मुलताई, आमला, भैंसदेही, घोड़ाडोंगरी, हरदा, टिमरनी और हरसूद) हैं.