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क्या चीन ने चुरा लिया कैंसर से लड़ने का हमारा फॉर्मूला? सामने आई ये चौंकाने वाली बात

क्या चीन ने चुरा लिया कैंसर से लड़ने का हमारा फॉर्मूला? सामने आई ये चौंकाने वाली बात

चीन में कैंसर रोधी खासियतों पर रिसर्च करके त्रिफला के मोलेक्युलर मेकेनिज्म की जानकारी हासिल की गई है. रिसर्च में कहा गया है कि त्रिफला में कार्सिनोमा को रोकने की विशेषताएं पाई जाती हैं. रिसर्च में कहा गया है कि त्रिफला कैंसर ग्रोथ को रोकता है. इसके बारे में Phytomedicine जर्नल में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसे Telegraph India ने भी छापा है.

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त्रिफला में कई आयुर्वेदिक विशेषताएं होती हैं त्रिफला में कई आयुर्वेदिक विशेषताएं होती हैं

चीन ने हमारी एक देसी चीज की चोरी कर ली है. ये देसी चीज है त्रिफला की कैंसर रोधी क्वालिटी की जानकारी. सीधा त्रिफला की चोरी न कर उसके आयुर्वेदिक फॉर्मूले की चोरी की गई है. यह मामला इसलिए संवेदनशील है क्योंकि त्रिफला का हमारे आयुर्वेद में बहुत बड़ा योगदान है. इससे पेट की कई असाध्य बीमारियों के इलाज का दावा किया जाता है. इतना ही नहीं, त्रिफला से बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. देश में हुए कई शोधों में इस बात का पता चला है कि त्रिफला में कैंसर से भी लड़ने की क्षमता होती है.

चीन में इसी कैंसर रोधी खासियतों पर रिसर्च करके त्रिफला के मोलेक्युलर मेकेनिज्म की जानकारी हासिल की गई है. रिसर्च में कहा गया है कि त्रिफला में कार्सिनोमा को रोकने की विशेषताएं पाई जाती हैं. रिसर्च में कहा गया है कि त्रिफला कैंसर ग्रोथ को रोकता है. इसके बारे में Phytomedicine जर्नल में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसे Telegraph India ने भी छापा है.

चीन में त्रिफला पर रिसर्च

इस रिपोर्ट के बाद अब चर्चा ये शुरू हो गई है कि इस तरह की रिसर्च भारत में भी होनी चाहिए. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी के जीव विज्ञान के प्रोफेसर सुभाष लखोटिया ने 'दि टेलीग्राफ' से कहा कि इस तरह के प्रयोग भारत में भी होने चाहिए.लखोटिया ने कहा कि देश की आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक बिरादरी को एकजुट होकर इस तरह की विशेषज्ञता पर काम करना चाहिए ताकि परंपरागत इलाज को आगे बढ़ाया जा सके.

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ऐसा नहीं है कि इस तरह के आयुर्वेदिक रिसर्च पर कोई काम नहीं हो रहा है. लगभग 15 साल पहले भारत सरकार ने आयुर्वेद बायलॉजी प्रोग्राम शुरू किया था जिसमें इसी तरह की रिसर्च के लिए सरकार ने फंड दिया था. प्रोफेसर लखोटिया और अन्य वैज्ञानिकों का कहना है, लेकिन इस रिसर्च ने तेजी नहीं पकड़ी और आयुर्वेदिक बिरादरी ने भी इसमें अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

मैंगलोर स्थित मैंगलोर इंस्टीट्यूट ऑफ ओंकोलॉजी के ट्रेडिशनल बायोलॉजिस्ट और रिसर्च हेड मंजेश्वर श्रीनाथ बलिगा कहते हैं, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन भारत में आयुर्वेद पर शोध आगे नहीं बढ़ पाया है क्योंकि गहरी वैज्ञानिक नजरिये के लिए बहुत कम प्रयास हुए हैं.”  बलिगा पिछले 20 साल से त्रिफला पर काम कर रहे हैं. 

बलिगा और उनके सहयोगियों ने पिछले साल एक शोध प्रकाशित किया था जिसमें दिखाया गया था कि कैसे आयोडीन के साथ त्रिफला सिर और गर्दन के कैंसर के इलाज से गुजर रहे मरीजों में रेडिएशन के असर को कम कर सकता है. बलिगा ने कहा, "चीनी अध्ययन अच्छी तरह से एक प्लानिंग के साथ किया गया है."

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त्रिफला के एंटी कैंसर प्रभावों के शुरुआती संकेत 2005 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और 2006 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुंबई के वैज्ञानिकों के अध्ययन से सामने आए थे. इन दोनों जगहों पर चूहों पर शोध किया गया था.