जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं के कारणों का विश्लेषण करने वाले शोध में जंगलों का एक मानचित्र तैयार किया गया है. Indian Institute of Forest Management के शोध में जंगल की आग के खतरों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए इस मानचित्र की मदद से सरकारों को Forest Fire की घटनाओं को नियंत्रित करने में सहूलियत मिलेगी. देश में हर साल लगने वाली जंगलों की आग की घटनाओं से जुड़े 22 साल के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर जारी की गई शोध रिपोर्ट में एमपी के खंडवा और बैतूल के जंगल भी आग के High Risk Zone में बताए गए हैं. इस मानचित्र की मदद से नीति निर्माताओं को Fire Management करते हुए जंगल की जैव विविधता को संरक्षित करने में भी मदद मिलेगी.
भारतीय वन प्रबंधन संस्थान की विशेषज्ञ विभा साहू की अगुवाई में मध्य भारत के जंगलों में Human Activity एवं अन्य कारणों से जैवविविधता के लिए उत्पन्न हो रहे खतरों का पता लगाने के लिए शोध किया गया. इसमें पाया गया कि बैतूल और खंडवा मंडल के जंगलों में इंसानी दखल एवं प्राकृतिक कारणों से आग का गंभीर खतरा आसन्न हो गया है.
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पर्यावरण से जुड़े जर्नल Environmental Monitoring and Assessment में 14 अगस्त को प्रकाशित शोध रिपोर्ट में इन दोनों इलाकों के जंगलों में इंसानी दखल और प्राकृतिक कारणों से जुड़े बीते 22 सालों के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया. शोध में शामिल IIT Indore के विशेषज्ञ मोहम्मद अमीन खान ने Satellite Data का विश्लेषण कर जंगलों में आग की घटनाओं के खतरे को इंगित करने वाला मानचित्र भी बनाया है. इस शोध का मकसद उन कारणों का पता लगा कर यह समझना था कि जंगल में आग लगने की शुरुआत कहां से हुई और ये आग कैसे लगी.
शोध में आंकड़ों का विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों काे पता चला कि खंडवा और उत्तरी बैतूल के जंगलों में आग लगने की घटनाएं हर साल बढ़ रही हैं. इनमें खंडवा के जंगलों में हर साल आग लगने की घटनाओं की संख्या में 3 का इजाफा और उत्तरी बैतूल में 1 का इजाफा दर्ज किया गया.
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शोध में इससे भी बड़ी चेतावनी भरी बात पता चली है. इसमें कहा गया है कि खंडवा का लगभग 45 प्रतिशत वन क्षेत्र और उत्तरी बैतूल का 50 फीसदी वन क्षेत्र आग लगने की घटनाओं के खतरे के लिहाज से High or Very High Fire Risk Zone में आ गया है.
खंडवा के जंगलों में High Risk Zone के दायरे में जंगल के उत्तरी और दक्षिण पूर्वी हिस्से में शामिल खलवा, पूर्वी कालीभीत, पश्चिमी कालीभीत, चांदगढ़ और अनोलिया रेंज हैं. वहीं, उत्तरी बैतूल के जंगलों में उत्तर पश्चिमी एवं पूर्वोत्तर इलाके में शाहपुर, बैतूल, सारणी और भौरा हाई रिस्क जोन में शामिल हैं. शोध में चेतावनी दी गई है कि इन वन क्षेत्रों से सड़क मार्ग भी गुजरने के कारण वाहनों की लगातार बढ़ रही आवाजाही से आग का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.
गौरतलब है कि खंडवा में पूरी तरह से सागौन के जंगल हैं, जबकि बैतूल में Mixed Forest हैं. यह बात जगजाहिर है कि मिश्रित वन की तुलना में सागौन के जंगलों में आग लगने का खतरा ज्यादा होता है. इसके अलावा इन जंगलों के आसपास बस रहे गांवों के लोगों की जंगल में आवाजाही बढ़ना भी आग के खतरे को गंभीर बना रहा है.
स्थानीय लोग जंगलों में तेंदूपत्ता और सागौन के फूल सहित अन्य वन संपदा एकत्र करने के लिए अब पहले से ज्यादा समय जंगलों में बिता रहे हैं. शोध में सरकार और वन कर्मियों को आग की घटनाओं को रोकने एवं नियंत्रित करने के लिए कारगर रणनीति बनाने का सुझाव दिया गया है.
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