सोचिए…जिन हाथों ने ज़िंदगीभर दूसरों के घरों में झाड़ू-बर्तन किए, उन्हीं हाथों की लकीरें आज मिट चुकी हैं. जिन उंगलियों से पहचान होती थी, वे अब सिस्टम में “फेल” हो चुकी हैं. नतीजा, पात्र होने के बावजूद कई गरीब, बुजुर्ग और दिव्यांग सरकार के मुफ्त राशन से वंचित हो रहे हैं. हालांकि सरकार का दावा है कि ऐसे लोगों के लिए विकल्प मौजूद है लेकिन फिलहाल सच्चाई यही है कि उनका हक का अनाज उनसे दूर है.
भिंड की मीना खान, चेहरा झुर्रियों से भरा, उम्र ढल चुकी है, मगर पेट पालने के लिए अब भी दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करती है. लेकिन बर्तन मांजते-मांजते उसकी हथेलियों की लकीरें ही मिट गई और अब उसी वजह से उसे राशन भी नहीं मिल रहा. 'आजतक' से बात करते हुए मीना खान ने बताया कि 'कमाने वाला कोई नहीं है, हम झाड़ू बर्तन करते हैं, पूरी जिंदगी ऐसे ही निकल गई अब बुढ़ापा आ गया तो कोई सहारा देने वाला नहीं है. बर्तन मांझ मांझ कर हाथ खराब हो गए. 3 महीने से गेहूं नहीं मिले हैं. अंगूठा नहीं लग रहा. बहुत दिनों से हाथ खराब की वजह से आता ही नहीं है अंगूठा. बहुत कोशिश करी अंगूठे के निशान लकीरें खत्म हो गई हैं. चिकनाहटपन हो तो आए. कोई कमाने वाला नहीं है. मंगलवार को जनसुनवाई में शिकायत भी की थी, कुछ नहीं हुआ. दो बार कागज दिए थे कोई सुनवाई नहीं हुई. परेशान रहते हैं स्थिति खराब हो जाएगी कुछ खाने को नहीं मिलेगा.'
मीना अकेली नहीं है, नयापुरा की दिव्यांग युवती बाई भी इसी समस्या से जूझ रही है. बाई खुद से बिस्तर से उठ भी नहीं सकती, लेकिन उसका भी राशन तीन महीने से बंद है क्योंकि मशीन उसके हाथों को पहचान नहीं पा रही. उसकी मां सज्जी का कहना है कि 'दो लड़के हैं तीन लड़कियां हैं दो लड़कियों की शादी हो गई एक ही अपाहिज लड़की है इसको गल्ला नहीं मिला है. 3 महीने से बच्चे ही कमाते हैं. आदमी है नहीं. 6 साल हो गए बच्चे ही करते हैं. कुछ पेंशन मिल जाती है, चलता रहता है. 3 महीने से गल्ला नहीं मिला है. आधार कार्ड अपडेट नहीं है. इसे कहां ले जाएं. लैट्रिन कपड़ों में करती है. शरीर में खून भी चालू नहीं है. यह ऐसी ही है. शुरू से राशन मिलता था. 3 महीने से नहीं मिला है. अब मना कर देते हैं. कचहरी में गए थे, उन्होंने कार्ड बना कर दे दिया. उससे भी नहीं मिला कोई सुनवाई नहीं है.'
इस मामले में भिंड जिले के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अधिकारी सुनील कुमार ने 'आजतक' से बात करते हुए बताया कि 'जिले में करीब नौ लाख लोग इस योजना से जुड़े हैं. इनमें से 830000 सदस्यों की केवाईसी कराई जा चुकी है जबकि 71000 सदस्य अभी शेष है. इनमें से 50000 ऐसे सदस्य हैं जो या तो मृत हो चुके है या पलायन कर चुके हैं. ऐसे कई सदस्य भी हैं जो बुजुर्ग हैं और उनके फिंगर नहीं हो पा रहे हैं. इस वजह से उनकी केवाईसी भी अपडेट नहीं हो रही है. कुछ लोगों के आधार कार्ड भी मोबाइल से लिंक नहीं हैं. सुनील कुमार बताते हैं कि ऐसे लोगों को चिन्हित करके अपडेट कराया जा रहा है. भोपाल से आयरिश केवाईसी की मांग की गई है. जैसे ही मशीन उपलब्ध होगी केवाईसी करवाई दी जाएगी. आंखों की पुतलियां स्कैन करके यह केवाईसी होती है. भोपाल से कब मशीन आएगी और केवाईसी का काम कब तक होगा यह तो राम ही जाने, लेकिन फिलहाल जो लोग इस योजना के भरोसे ही चल रहे थे, उनके सामने अब दाना पानी का संकट गहरा गया है.
सवाल यही है कि मशीन कब आएगी? और तब तक इन गरीबों का पेट कैसे भरेगा? सिस्टम की तकनीकी खामियों और सुस्ती के बीच सबसे बड़ी कीमत वही चुका रहे हैं, जिनका जीवन पहले से ही संघर्षों से भरा है. वहीं इस बारे में 'आजतक' ने मध्यप्रदेश के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत से बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो बायोमेट्रिक मैच ना हो पाने के चलते राशन नहीं ले पा रहे उनके लिए हमारे विभाग ने व्यवस्था की है कि वो अपने परिवार के किसी एक सदस्य को अपना नॉमिनि घोषित कर उनकी केवाईसी से राशन ले सकते हैं. इस संबंध में अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं.
सरकार कहती है कि ऐसे लोग नॉमिनी के ज़रिये राशन ले सकते हैं, लेकिन फिलहाल हकीकत यही है कि भिंड के मीना और बाई जैसे लोग अपने हिस्से के अनाज से महरूम हैं और भूख के सामने सिस्टम खड़ा हो गया है जिसका हल जल्द निकालना बेहद ज़रूरी है.
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