देशभर के किसान संगठनों ने एमएसपी गारंटी कानून की मांग को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के बैनर तले दो साल पहले सफल आंदोलन चलाया था. इसके फलस्वरूप मोदी सरकार को एमएसपी की गारंटी के लिए एक समिति गठित करनी पड़ी और कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए प्रस्तावित 3 कानूनों को वापस भी लेना पड़ा था. आंदोलन के बाद एसकेएम और भारतीय किसान यूनियन (BKU) में दो फाड़ हो गए. इसके फलस्वरूप एसकेएम अराजनैतिक और बीकेयू अराजनैतिक संगठन बन गए. वहीं राजस्थान और एमपी में Assembly Election के दौरान किसान महापंचायत ने भी एमएसपी की मांग को लेकर आंदोलन किया. अब लोकसभा चुनाव से पहले इन बड़े संगठनों ने एक बार फिर आंदोलन तेज किया है. इस बीच किसान संगठनों में फूट का फायदा उठाने के लिए आश्वस्त सरकार ने पंजाब में एसकेएम अराजनैतिक के आंदोलन में 21 फरवरी को Police Action को अंजाम दिया. वहीं जयपुर से दिल्ली कूच करने की तैयारी कर रहे किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट की गिरफ्तारी ने अब बिखरे किसान संगठनों को एकजुट होने का मौका दे दिया है.
एमएसपी की गारंटी पाने के लिए चल रहे किसान आंदोलन में एसकेएम, बीकेयू, सिफा और किसान महापंचायत सहित अन्य किसान संगठनों में बिखराव की स्थिति साफ तौर पर देखी जा सकती है. हालांकि इन संगठनों के नेता लगातार यह बात कह रहे हैं कि संगठन भले ही अलग हों, लेकिन इस मांग को लेकर देशभर के किसान एक हैं.
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इस बीच 21 फरवरी को सरकार और किसानों के बीच चौथे दौर की बातचीत विफल होने के बाद 21 फरवरी को पंजाब हरियाणा सीमा पर एकजुट आंदोलनकारी किसानों ने दिल्ली की तरफ बढ़ने का प्रयास किया. उन्हें रोकने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी. इसमें एक युवा किसान शुभकरण सिंह की मौत हो गई. इससे पहले भी दो किसानों की मौत हो चुकी थी. कुल मिलाकर 13 फरवरी से अब तक 3 किसानों की मौत होने से किसानों का गुस्सा बढ़ गया. सरकार ने यह कार्रवाई भले ही किसान संगठनों में बिखराव का फायदा उठाते हुए की हो लेकिन अब Police Action ही बिखरे किसान संगठनों के एकजुट होने का आधार बन गया है.
जयपुर में रामपाल जाट की गिरफ्तारी और नजरबंदी के बाद पंजाब में आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस कार्रवाई में एक किसान की मौत के बाद सभी किसान संगठनों ने एकजुट होने की जरूरत को स्वीकार किया. एक तरफ सरकार ने 5वें दौर की बातचीत का प्रस्ताव किसानों के भेजा है, वहीं एसकेएम अराजनैतिक के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल ने आंदोलन का रुख तय करने के लिए दिल्ली कूच अभियान को दो दिन के लिए टाल दिया है.
इसके अलावा बीकेयू के नेता राकेश टिकैत ने बताया कि आंदोलन में अब किसानों को एक मंच पर आना होगा. इस जरूरत को महसूस करते हुए एसकेएम ने 22 फरवरी को चंडीगढ़ में बैठक आहूत की है. इसमें टिकैत सहित अन्य संगठनों के नेता शामिल होंगे. प्राप्त जानकारी के मुताबिक चंडीगढ़ में यह बैठक शुरू हो गई है. समझा जाता है कि बैठक में एसकेएम अराजनैतिक के नेताओं को भी एक मंच पर लाकर आंदोलन को निर्णायक मोड़ पर ले जाने की पहल की जाएगी.
एक तरफ सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच अब तक की 4 दौर की बातचीत चंडीगढ़ में ही हुई, वहीं, तमाम गुटों में बंटे किसानों के विरुद्ध की गई कार्रवाई के बाद बिखरे किसान संगठनों के नेता चंडीगढ़ में ही एकजुट हो रहे हैं.
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जानकारों की राय में सरकार ने ही किसान संगठनों में फूट का फायदा जल्दी उठने के चक्कर में इन संगठनों को एकजुट होने का मौका दिया है. इसके फलस्वरूप किसान महापंचायत ने राजस्थान और एमपी से तथा बीकेयू ने पश्चिमी यूपी से दिल्ली को घेरने की तैयारी कर ली है. इसके अलावा सिफा के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल ने भी महाराष्ट्र में किसानों के आंदोलन को चुनावी राजनीति के बलबूते तेज करने की बात कही है.
बीकेयू के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि वह 13 फरवरी के बाद से ही सरकार को लगातार आगाह कर रहे थे कि आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई करने की भूल न दोहराई जाए. इसके गंभीर परिणाम होंगे. जानकारों का मानना है कि सरकार ने 21 फरवरी को यह भूल करके किसानों का गुस्सा मोल ले लिया है. इसका असर आंदोलन को लंबे समय तक चलने से रोकने की सरकार की कोशिशों पर भी पड़ेगा.
पुलिस कार्रवाई के तुरंत बाद आंदोलनकारी किसान संगठनों ने सरकार के साथ 5वें दौर की बातचीत के प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं दिया है. किसान नेताओं ने कहा है कि अब बातचीत तभी होगी जबकि सरकार एमएसपी गारंटी की मांग को मानने का आश्वासन देगी. कुल मिलाकर फिलहाल सरकार के लिए किसान आंदोलन को जल्द समाप्त कराने की राह में अब जटिलता बढ़ गई है.
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