scorecardresearch
Success Story: केरल में पुलिसकर्मी के बगान में उगते हैं 100 दुर्लभ किस्म के फल, किचेन गार्डन से की थी शुरुआत

Success Story: केरल में पुलिसकर्मी के बगान में उगते हैं 100 दुर्लभ किस्म के फल, किचेन गार्डन से की थी शुरुआत

साजी केवी ने बताया कि उन्होंने किचन गार्डन से इसकी शुरुआत की थी. उन्होंने उसमें कुछ दुर्लभ किस्म के पौधे लगाए. इससे उन्हें अच्छी पैदावार हुई. अच्छी पैदावार होने से उनकी रुचि बढ़ गई थी. इसके बाद उन्होंने और भी विदेशी प्रजातियों के फलों के पौधों को लगाना शुरू कर दिया.

advertisement
विदेशी फल की खेती (सांकेतिक तस्वीर) विदेशी फल की खेती (सांकेतिक तस्वीर)

केरल के वायनाड में एक पुलिस अधिकारी विदेशी किस्मों की फलों की खेती कर रहे हैं. वह पूरी दुनिया भर के विभिन्न दुर्लभ किस्मों के पौधों के प्रजातियों की खेती करते हैं. पुलपल्ली के पास नीवरम गांव के रहने वाले किसान साजी केवी ने खेती की शुरुआत किचेन गार्डन से की थी. 50 वर्षीय साजी केवी मननथावाडी स्टेशन में एएसआई के पद पर कार्यरत हैं. 50 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने बगान में 100 प्रकार के दुर्लभ किस्मों के विदेशी फल लगाए हैं. उनके बगान में ब्राजीलियाई अंगूर जाबोटिकाबा, अत्यंत दुर्लभ लिपोटे, अफ़्रीका का अपना चमत्कारी फल मैमी चीकू, ऑस्ट्रेलिया का मैकाडामिया और इत्र फल के रूप में जाना जाने वाला केपेल जैसे कई दुर्लभ फल मौजूद हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक साजी केवी ने बताया कि उन्होंने किचन गार्डन से इसकी शुरुआत की थी. उन्होंने उसमें कुछ दुर्लभ किस्म के पौधे लगाए. इससे उन्हें अच्छी पैदावार हुई. अच्छी पैदावार होने से उनकी रुचि बढ़ गई थी. इसके बाद उन्होंने और भी विदेशी प्रजातियों के फलों के पौधों को लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि यहां की मिट्टी और जलवायु को जानने के बाद यह पता चला की वायनाड कई मायनों में दक्षिण अफ्रीका के सामान है. इसके बाद उन्होंने अन्य देशों के फलों के विभिन्न प्रजातियों को लेकर प्रयोग शुरू कर दिया और अपने बगान में उन्हें लगाना शुरू किया. 

ये भी पढ़ेंः शरद पवार का दावा- 2024 तक किसानों की इनकम नहीं हो पाई दोगुनी, केंद्र अपने वादे को पूरा करने में विफल

यात्रा के दौरान खरीदते हैं पौधें

उन्होंने 2017 से इसकी शुरुआत की थी. आज कई लोग उनसे पूछते हैं कि वो ड्यूटी और किसान दोनों एक साथ कैसे कर लेते हैं और दोनों के लिए कैसे समय निकाल पाते हैं. उन्होंने कहा कि वो सही से समय का प्रबंधन करते हैं. जब वो विशेष ड्यूटी के दौरान यात्राओं में होते हैं तो इस दौरान मिलने वाली नई किस्मों के फल के पौधों को खरीद लेते हैं. इसके अलावा उनके पिता भी उनके इस काम में सहयोग करते हैं. जब वो ड्यूटी पर होते हैं तब उनके पिता वर्गीस केवी उनके बगान की देखभाल करते हैं. खेती के प्रति उनके पिता का भी जबरदस्त झुकाव है. 

ये भी पढ़ेंः असम चाय के उत्पादन में 50 फीसदी तक गिरावट की संभावना, क्या कीमतों में भी आएगी उछाल?

स्ट्रेस बूस्टर का काम करती है खेती

साजी केवी बताते हैं कि उनके बगान में सबसे दुर्लभ किस्में लिपोट और ऑस्ट्रेलियाई मैकाडामिया हैं. ये लुप्तप्राय श्रेणी में आते हैं और इनकी खेती बहुत कम की जाती है. उन्होंने कहा कि वो इन सभी फलों की जैविक खेती करते हैं इसलिए वो और अधिक स्वादिस्ट हो जाती है. साथ ही कहा कि खेती उनके लिए एक स्ट्रेस बूस्टर की तरह है. उन्हें खेती करने में आंनद आता है. साथ ही कहा कि यह पेड़ वो अगली पीढ़ी के लिए लगा रहे हैं. साजी कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर मैं अपने परिश्रम का फल नहीं चख पाऊंगा। यह सब मेरे बच्चों के लिए है.