Village Tourism: एमपी का यह गांव, अगर बने पर्यटन ग्राम तो संवरेगी 1000 साल पुरानी विरासत

Village Tourism: एमपी का यह गांव, अगर बने पर्यटन ग्राम तो संवरेगी 1000 साल पुरानी विरासत

हजारों साल की ऐतिहासिक विरासत से जुड़े स्थल देश के तमाम इलाकों में बिखरे पड़े हैं. ऐसे विरासत स्थलों की भरमार मध्य प्रदेश के गांवों में खूब देखने को मिलती है. सरकार की कोश‍िश है कि इतिहास की समृद्ध तस्वीर को पेश करते ऐसे गांवों को Heritage Village का दर्जा देकर उन्हें विरासत स्थल के तौर पर विकसित किया जाए.

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Village Tourism: एमपी का यह गांव, अगर बने पर्यटन ग्राम तो संवरेगी 1000 साल पुरानी विरासतएमपी के उदयपुर गांव में परमार वंश का 1000 साल पुराना श‍िव मंदिर

एमपी में गुर्जर प्रतिहार वंश के ऐतिहासिक अवशेषों से अटे पड़े मुरैना जिले के 3 गांव (मितावली, गढ़ी पढ़ावली और बटेश्वर) को एमपी सरकार द्वारा पर्यटन ग्राम का दर्जा दिया जा चुका है. इन गांवों को Tourist Village का दर्जा मिलने से इनमें मौजूद विरासत स्थलों का विधिवत संरक्षण मुमकिन हो पाया है, साथ ह‍ी इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने के कारण गांव वालों की आय में भी इजाफा हो रहा है. इस क्रम में एमपी के विदिशा जिले में भी उदयपुर गांव परमार वंश के लगभग 1000 साल पुराने विरासत स्थलों का प्रमुख केंद्र है. इस गांव में मौजूद भव्य श‍िव मंदिर इस ऐतिहासिक विरासत के प्रमुख केंद्र के रूप में मौजूद है. गांव वालों की पहल और सरकारी सहयोग से इन स्थलों का किसी तरह संरक्षण हो पा रहा है, लेकिन इंतजार इस बात का है कि कब सरकार इसे मुरैना के तीन गांवों की तर्ज पर पर्यटन ग्राम का दर्जा देगी.

समाज की पहल पर संरक्षण

इतिहासकारों के मुताबिक परमार वंश के राजा उदयादित्य ने 11वीं सदी में इस इलाके को अपनी राजधानी के रूप में बसाया था. जिसका प्रमुख केंद्र आज का उदयपुर गांव ह‍ै. इस गांव में उदयादित्य द्वारा बनवाया गया शिव मंदिर और अन्य स्थल मौजूद हैं. उस समय के अन्य ऐतिहासिक स्थलों के अवशेष उदयपुर और आसपास के इलाकों में बिखरे पड़े हैं. उस दौर का एकमात्र सुरक्षित स्थल 1080 ईस्वी में निर्मित उदयपुर का शिव मंदिर है. इसे उदयादित्य मंदिर और नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जानते हैं.

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हमले का शिकार हुआ मंदिर

तिवारी ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बताया कि स्थानीय लाल पत्थर से निर्मित यह मंदिर इस इलाके का एकमात्र परमार कालीन स्थल है जो पूरी तरह से अपने मूल स्वरूप में मौजूद है. हालांकि यह मंदिर मुगल आक्रांताओं के हमले की जद में जरूर आया. इस पर 1338 ईस्वी में मुहम्मद बिन तुगलक ने आक्रमण किया था और मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई देवी देवताओं की प्रतिमाओं को खंडित किया, लेकिन मंदिर को ध्वस्त नहीं किया.

उदयपुर मंदिर में मुगल आक्रमण के फलस्वरूप खंडि‍त मूर्तियां आज भी देखी जा सकती हैं.

उन्होंने बताया कि मंदिर के प्रांगण में तुगलक ने मंदिर की ही खंडित शिलाओं से एक दरवाजा बनवाया. इस दरवाजे पर अरबी भाषा में एक शिलालेख भी लगवाया. उन्होंने कहा कि पूरे मंदिर में संस्कृत भाषा के शिलालेखों के बीच अरबी भाषा का शिलालेख मन में अचरज जरूर पैदा करता है.

इंटेक भी कर रहा संरक्षण में सहयोग

तिवारी ने बताया कि एएसआई हो या राज्य सरकार का पुरातत्व विभाग, सरकारी एजेंसियां संसाधनों के अभाव के कारण इतने भव्य ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण करने में खुद को अक्षम पाती हैं. सरकार के नाकाफी प्रयासों के मद्देनजर ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण से जुड़ी सामाजिक संस्था 'INTACH' ने अब उदयपुर के विरासत स्थलों काे संवारने में सहयोग करने की पहल की है. साथ ही इन स्थलों को अतिक्रमण से मुक्त कराने की चुनौती से निपटने में सामाजिक स्तर पर जागरूकता अभियान ने अहम भूमिका निभाई है.

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उन्होंने बताया कि हर महीने उदयपुर में आयोजित हो रही Heritage Walk के कारण स्थानीय लोगों ने इन स्थलों के आसपास के अतिक्रमण को खुद हटा लिया है. यह एक बड़ी उपलब्धि है. तिवारी ने कहा कि सरकार और समाज दोनों के सहयोग से अब उदयपुर के विरासत स्थलों ने एक बार फिर आकार लेना शुरू कर दिया है. हालांकि उन्होंने सरकार से इस गांव को Tourist Village का दर्जा देने की प्रक्रिया को जल्द पूरा करने की अपील करते हुए कहा कि यह काम जितना जल्दी होगा, उदयपुर के इतिहास को संजोने का काम उतने ही जल्दी पूरा हो सकेगा.

तिवारी ने कहा कि इस इलाके में पर्यटन की भरपूर संभावनाएं हैं. पर्यटन ग्राम का दर्जा मिलने के बाद इस गांव में पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटकों के लिए जरूरी सुविधाएं विकसित हो सकेगी. इससे पर्यटन सेवाएं मुहैया कराने में गांव वालों की भूमिका भी सुनिश्चित हाे सकेगी.

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