देश के कई राज्यों में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही है. तामपान में गिरावट का दौर जारी है. इसके कारण कोहरा और पाला का असर भी दिखाई देने लगा है. जब तापमान में गिरावट आती है और मौसम बदतला है तो सबसे पहले असर खेती-बारी पर पड़ता है. फल, फसल और सब्जियों को इससे नुकसान होता है. खास कर पाला सब्जियों का दुश्मन होता है. दिसंबर और जनवरी में महीने में फसलों पर सबसे अधिक इसका प्रकोप होता है. इसके प्रभाव से फसल सड़कर बर्बाद हो जाती है. ऐसे में किसानों को यह जानना जरूर है कि किस प्रकार से किसान कुछ सावधानियां बरतकर अपनी फसल को नुकसान होने से बचा सकते हैं.
पाला का सबसे अधिक असर आलू, गेहूं, जौ के अलावा सरसों जीरा, धनिया, चना, मटर गन्ना और अफीम की खेती में नुकसान होता है. फसलों पर पाला मारने से 10 से 20 फीसदी नुकसान होता है जबकि सरसो इत्यादि फसलों पर पाला मारने से 30 से 40 फीसदी तक का नुकसान किसानों को होता है. वहीं सब्जियों में पाला मारने से सबसे अधिक नुकसान होता है. सब्जियों में 40-60 फीसदी तक नुकसान होता है. पाला का सबसे अधिक असर सरसों और आलू की नई रोपी गई फसलों को होता है. पाला मारने से इन दोनों में झुलसा रोग का प्रकोप हो जाता है जिससे फसले सड़कर सूख जाती है.
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फसलों और सब्जियों में पाला मारने से उनकी ऊपज और गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पाला मारने से पौधौं की पत्तिया झुलस जाती है और टहनिया नष्ट हो जाते हैं. इसके कारण पौधौं में बीमारी का प्रकोप हो जाता है. साथ ही फसलों के फूल सिकुड़ कर गिरने लगते हैं. फूल झड़ जाने के कारण पैदावार कम हो जाती है और कई बार फसल भी कमजोर होकर मर जाते हैं. पाला मारने के कारण पत्तो और तनों तक धूप और हवा सही से नहीं पहुंच पाती है इसलिए पत्ते सड़ने लगते हैं. जिससे फसल के उत्पादन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है. इससे कभी-कभी पूरी फसल फसल नष्ट हो जाती है.
इसलिए पाले से बचाव के लिए किसानों को देशी उपाय अपनाना चाहिए. इसके मुताबिक जिस रात को पाला पड़ने की संभावना हो उस रात को किसानों को खेत के चारों तरफ कुछ दूरी बनाकर रात के लगभग 12 बजे मेड़ में कूड़ा-कचरा और पत्तियों को जलाकर धुआं कर दे. इससे खेत में धुआं जाएगा और आस-पास का वातावरण गर्म होगा और खेत को पाला मारने से बचाया जा सकेगा. विशेषज्ञों के मुताबिक खेत में धुआं करने से तापमान 4 डिग्री तक बढ़ाया जा सकता है. इतना ही नहीं पाले से बचाव के लिए खेत में नमी बनाए रखे, इसके लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहे.
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देशी उपाय के अलावा किसान अपने फसलों को पाला से बचाने के लिए दवाओं का भी छिड़काव कर सकते हैं. पाला पड़ने के समय किसान गंधंक का तेजाब, यूरिया और घुलनशील सल्फर को पानी में मिलाकर घोल बनाकर फसलोंपर छिड़काव कर सकते हैं. इसके लिए बताई गई निर्धारित मात्रा का ही इस्तेमाल करें. एक लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसका असर फसल पर एक सप्ताह तक रहता है. इसलिए अगर लगातार शीतलहर का प्रकोप बना रहता है तो 15-15 दिनों के अंदर इसका छिड़काव करते रहना चाहिए.
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