NDMC कन्वेंशन सेंटर में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के "एकात्म मानववाद" दर्शन की 60वीं वर्षगांठ पर आयोजित राष्ट्रीय स्मारक संगोष्ठी को संबोधित किया. इस खास अवसर पर उन्होंने एकात्म मानववाद की गहराई से चर्चा की और बताया कि यह दर्शन आज के समय में भी कितना प्रासंगिक और उपयोगी है.
चौहान ने कहा कि आज पूरी दुनिया जिन समस्याओं से जूझ रही है, उनका समाधान पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के "एकात्म मानववाद" में छिपा है. उन्होंने यह भी कहा कि यह कोई कठिन विचारधारा नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति और चिंतन का सार है. पं. दीनदयाल जी ने हमेशा कहा कि पश्चिम की नकल करना जरूरी नहीं, भारत के पास अपनी मूल्य आधारित सोच है, जो समाज और राष्ट्र का सही मार्गदर्शन कर सकती है.
कृषि के संदर्भ में बात करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “मैं सिर्फ कृषि मंत्री नहीं हूं, बल्कि खुद किसान हूं. मेरी आत्मा में खेती और किसान रचे बसे हैं.” उन्होंने बताया कि खेती-किसानी ही भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इस क्षेत्र को मजबूत करना सरकार की प्राथमिकता है.
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शिवराज सिंह ने "एकात्म मानववाद" के मुख्य सूत्र "एक चेतना" पर ज़ोर देते हुए कहा कि प्रकृति में भी यही चेतना विद्यमान है. उन्होंने सभी से अपील की कि वृक्षारोपण के महाभियान में भाग लें और "एक पेड़ मां के नाम" ज़रूर लगाएं. प्रकृति का शोषण नहीं, दोहन करें. उन्होंने कहा, “पेड़ हमारे लिए पूजनीय हैं. धरती सिर्फ इंसानों की नहीं, बल्कि हर प्राणी का समान अधिकार है.”
चौहान ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में कमी आ रही है और जीवन स्तर में सुधार हो रहा है. उन्होंने लखपति दीदी योजना का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह महिला सशक्तिकरण का बड़ा कदम है. अगर आधी आबादी को पीछे छोड़ देंगे, तो देश आगे नहीं बढ़ सकता. यह गायत्री, दुर्गा, लक्ष्मी, सावित्री जैसी महान नारियों की धरती है, और महिलाओं को सशक्त करना देश की प्राथमिकता है.
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कृषि क्षेत्र की प्रगति पर बात करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि हाल ही में धान की दो नई किस्में विकसित की गई हैं.
इनसे 30% अधिक उत्पादन, 20% कम पानी की ज़रूरत होगी और 20 दिन पहले फसल तैयार हो जाएगी. यह किसानों के लिए बड़ी राहत और खुशखबरी है.
चौहान ने अपने भाषण के अंत में कहा कि भारत को आगे ले जाने के लिए पुरातन सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक सोच का संतुलन जरूरी है. इसी रास्ते पर चलकर हम नए भारत का निर्माण करेंगे और दुनिया का मार्गदर्शन करने में सक्षम होंगे.
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