साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 में भाजपा को सत्ता दिलाने में सौम्य और गंभीर छवि वाले डा रमन सिंह की अहम भूमिका काे देखते हुए उस समय के पार्टी नेतृत्व ने उन्हें ही सीएम पद पर बैठाया था. डा सिंह ने पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरते हुए लगातार 3 बार भाजपा को छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी कराई. मगर, 2018 के चुनाव में भाजपा को ऐसा झटका लगा कि 90 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी महज 15 सीटों पर सिमट गई. कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के गठन के बाद 5 साल तक खुद रमन सिंह भी रायपुर की एक पॉश कॉलोनी में अपने बंगले तक ही सीमित रहे. इस बीच 2023 के चुनाव में टिकट वितरण से लेकर भाजपा के प्रचार अभियान तक में डा सिंह की बेहद संतुलित सक्रियता रही. अब जबकि चुनाव परिणाम आने पर जनता ने भाजपा की ताजपोशी का रास्ता साफ कर दिया है, तब एक बार फिर छत्तीसगढ़ में सीएम पद के चेहरे को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है.
भाजपा की सरकार में छत्तीसगढ़ के 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे डा रमन सिंह, संगठन में स्वीकार्यता और अनुभव की कसौटी पर खरे उतरते हैं. उनका शांत स्वभाव, संयमित कार्यशैली और जनता से जुड़े रहने की काबिलियत को देखते हुए वह सीएम पद के लिए पार्टी आलाकमान के लिए स्वाभाविक पसंद हो सकते हैं.
उन्होंने राजनंदगांव सीट पर कांग्रेस के गिरीश देवांगन को 45 हजार वोट के भारी अंतर से हराकर अपनी चुनावी जमीन को बचा कर रखने का भी साफ संकेत दियौ. हालांकि जानकारों का एक वर्ग मानता है कि आयुर्वेद के सफल चिकित्सक रहे डा सिंह की संयमित और शांत कार्यशैली, पार्टी के मौजूदा नेतृत्व की आक्रामक कार्यशैली से मेल नहीं खाती है. इस वजह से डा सिंह के लिए इस बार अपने पार्टी नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतरना इतना आसान नहीं होगा. यही वजह भी बताई जा रही है कि डा सिंह ने भी बीते 5 साल से खुद को अगर सियासी तौर पर हाशिए पर नहीं रखा तो वह खुद बहुत सक्रिय भी नहीं रहे. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या भाजपा इस बार छत्तीसगढ़ में किसी नए चेहरे पर दांव लगाएगी या 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर डा सिंह को ही सीएम की कुर्सी सौंपेगी.
चुनावी राजनीति में भाजपा की प्रयोगधर्मिता जगजाहिर है. इस चुनाव में भी भाजपा ने छत्तीसगढ़ के अलावा एमपी और राजस्थान में अपने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव के मैदान में उतारा. इसके पीछे पार्टी की रणनीति अपने कार्यकर्ताओं में हमेशा नए नेतृत्व को आगे आने का अवसर देने की उम्मीद जगाए रखने की होती है. इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए भाजपा ने छत्तीसगढ़ में भी प्रयोग करते हुए अपने केंद्रीय मंत्री और सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने का जोखिम लिया.
इस कवायद को भाजपा हाईकमान द्वारा चुनाव के बाद सीएम पद पर 'Fresh Face' देने की कोशिश के रूप में देखा गया. इसके तहत पार्टी ने एक बड़ा जोखिम पाटन सीट पर सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ दुर्ग से सांसद विजय बघेल को उतार कर लिया. विजय बघेल, सीएम भूपेश बघेल के भतीजे हैं. वह 2008 के चुनाव में एक बार अपने चाचा भूपेश बघेल को चुनावी शिकस्त दे चुके हैं उन्होंने 2019 में दुर्ग सीट से लोकसभा चुनाव भी जीता. रविवार को मतगणना शुरू होने पर उन्होंने सीएम बघेल को शुरुआती राउंड में 2 हजार मतों से पीछे कर सियासी हलचल तेज कर दी. हालांकि बाद में सीएम बघेल ने इस अंतर को पूरा कर निर्णायक बढ़त बना ली.
बघेल अगर चुनाव जीतते तो सीएम पद के तगड़े दावेदार हो सकते थे. उनके अलावा भाजपा ने जनजातीय मामलों की केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह को भी इस बार चुनाव मैदान में उतारा है. फायर ब्रांड नेता रेणुका सिंह भरतपुर सोनहत सीट से चुनाव मैदान में हैं. वह चुनाव जीत कर सीएम पद की दावेदार हैं. आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने और तेज तर्रार महिला नेता होना, उनके दावे को मजबूती प्रदान करता है.
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की 2023 में सुगबुगाहट तेज होने के बाद भी डॉ रमन सिंह की उम्मीद से कम सक्रियता सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बनी रही. भाजपा की चुनाव में जीत के बाद यदि डा रमन सिंह की ताजपोशी नहीं होती है, तो उनके विकल्प के तौर पर युवा चेहरा ओप चौधरी के नाम की चर्चा जोरों पर है. राजनीति में आने के लिए आईएएस की नौकरी को छोड़कर भाजपा से जुड़े ओपी चौधरी रायगढ़ सीट से चुने गए हैं. रायपुर और दंतेवाड़ा के जिलाधीश रहे चौधरी हालांकि 2018 के चुनाव में हार गए थे, लेकिन इस बार रायगढ़ में उनके लिए प्रचार करने आए गृह मंत्री अमित शाह ने जनसभा में एक बयान देकर भविष्य के कुछ संकेत दिए थे. शाह ने जनता से अपील की थी कि चौधरी को चुनाव जितायें और चुनाव के बाद उन्हें वह ''बड़ा आदमी'' बना देंगे. शाह का यह बयान चर्चा में रहा और इसके मायने यही निकाले गए कि ओपी चौधरी छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने पर पार्टी आलाकमान की नजरों में सीएम पद के लिए संभावित विकल्प हो सकते हैं.
इस प्रकार भाजपा खेमे में अब सीएम पद के लिए दावेदारों की फेहरिस्त में नामों की कमी नहीं है. यदि डा रमन सिंह की ढलती उम्र उनकी राह में रोड़ा बनती है तो विजय बघेल से लेकर रेणुका सिंह और ओपी चौधरी के अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव, राज्यसभा सांसद सरोज पांडे और आदिवासी महिला नेता लता उसेंडी का नाम भी चर्चा में है. साव खुद बिलासपुर सीट से सांसद हैं. ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अरुण साव लोरमी सीट विधानसभा चुनाव जीते हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today