महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बाघिन की दहशत, तेंदूपत्ता चुनने गई 5 महिलाओं की हमले में मौत

महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बाघिन की दहशत, तेंदूपत्ता चुनने गई 5 महिलाओं की हमले में मौत

महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बाघों की दहशत है. हालिया घटना एक बाघिन से जुड़ी है जिसने बीते 3 दिनों में 5 महिलाओं को शिकार बनाया है. ये सभी महिलाएं जंगल में तेंदूपत्ता चुनने गई थीं. यहां तेंदूपत्ता चुनना महिलाओं के लिए बड़ा रोजगार है. इसी दौरान बाघिन ने हमला कर दिया.

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महाराष्ट्र के चंद्रपुर में बाघिन की दहशत, तेंदूपत्ता चुनने गई 5 महिलाओं की हमले में मौतचंद्रपुर में बाघिन के हमले में 5 महिलाओं की मौत

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में जंगल में गूंजती बाघ की दहाड़ ने कई गांवों को दहशत में डाल दिया है. महज तीन दिनों में बाघ के हमले में पांच महिलाओं की जान चली गई. ये सभी महिलाएं गांव के पास जंगल में तेंदू पत्ता तोड़ने गई थीं. तेंदू पत्ता तोड़ने का मौसमी रोजगार ग्रामीणों के लिए मौत का कारण बन गया. चंद्रपुर में मानव वन्य जीव संघर्ष एक बड़ी समस्या बन गया है. जनवरी 2025 से अब तक बाघ के हमले में कुल 17 लोगों की जान चली गई है.

10 मई को हुई घटना में कांता बुधाजी चौधरी (65 वर्ष), शुभांगी मनोज चौधरी (28 वर्ष) और रेखा शालिक शेंडे (50 वर्ष) की मौत हुई है. सभी मृतक मेंढामाल गांव की ही निवासी थीं और इनमें सास-बहू भी शामिल हैं. 11 मई की घटना में 65 वर्षीय विमला बुधा डोंडे की दर्दनाक मौत हुई है, जो कि मूल तहसील के महादवाड़ी गांव की रहने वाली थीं. 12 मई को 28 वर्षीय भूमिका दीपक भेंदारे जो कि मूल तहसील के भादूरणा गांव की निवासी थी, की मौत हुई है.

परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

मेंढामाल गांव के चौधरी परिवार पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. यहां मनोज चौधरी की पत्नी और मां की बाघ के हमले में मौत हो गई है. घर में दो ही महिलाएं थीं, दोनों महिलाओं की मौत के बाद अब घर में दो छोटे बच्चे 10 वर्षीय शोहम और 8 वर्षीय आराध्य और पिता मनोज चौधरी ही बचे हैं. मनोज के पिता की मौत पहले ही हो चुकी है. ये पूरा परिवार गम में डूबा है. मनोज को अब दोनों बच्चों के परवरिश की चिंता सता रही है. 

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मनोज खुद मजदूरी करते हैं. अपने पत्नी और मां की फोटो देख कर अपना ग़म भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. आंखों में आंसू लिए मनोज अपनी पत्नी और मां की तस्वीर को निहार रहे हैं. दरअसल कांता बुधाजी चौधरी (65 वर्ष) और शुभांगी मनोज चौधरी तेंदूपत्ता चुनने के लिए जंगल गई थीं लेकिन वापस नहीं लौटीं.

तेंदूपत्ता तुड़ाई से रोजगार

गांवों में तेंदूपत्ता तोड़ना गर्मियों में रोज़गार का बड़ा जरिया होता है. लेकिन अब यही रोज़ी-रोटी का साधन जान का जोखिम बन गया है. लगातार हो रही घटनाओं ने ग्रामीणों को भयभीत कर दिया है. ग्रामीणों का कहना है कि हर साल गर्मियों में तेंदूपत्ता चुनने के जरिए उन्हें रोज़गार मिलता है. लेकिन अब बाघ के हमलों ने उन्हें अपनी जान जोखिम में डालने पर मजबूर कर दिया है.

लगातार हो रही घटनाओं के बाद गांवों में डर और आक्रोश का माहौल है. लोग अब यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या अपनी रोज़ी-रोटी के लिए अब जान गंवाना ही विकल्प रह गया है. क्या कभी मानव वन्य जीव संघर्ष खत्म होगा, यही सवाल ग्रामीण पूछ रहे हैं. 

इस गंभीर घटना के बाद वन विभाग ने तीन महिलाओं को एक साथ मारने वाली बाघिन को पकड़ने के लिए 34 ट्रैप कैमरे और 8 लाइव कैमरे लगाकर लगातार नजर बनाई है. 12 मई को आखिरकार बाघ को बेहोश कर पिंजरे में डाल दिया गया है. वन विभाग के मुताबिक इस बाघिन का एक शावक है जिसकी तलाश जारी है. इस बाघिन को सिंदेवाहि तहसील के डोंगरगाव नियत छेत्र कंपार्टमेंट नंबर 1360 में पकड़ा गया है. फिर भी ग्रामीणों में दहशत का माहौल बना हुआ है. फिलहाल वन विभाग ने ग्रामीणों को जंगल की ओर न जाने की सख्त हिदायत दी है. इसके कारण अब ग्रामीणों के रोजगार पर भी असर पड़ रहा है.

जिले में बाघों के लिए मशहूर ताडोबा टाइगर रिजर्व है. यहां कुल, ताडोबा और पूरे जिले में कुल 220 के करीब बाघ होने की जानकारी है और 2025 में अब तक 17 लोग बाघ के शिकार हुए हैं. पूरे महाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले में बाघों की संख्या सर्वाधिक है. ऐसे में जंगल अब बाघों के लिए छोटा पड़ रहा है और इंसानों के साथ उनका संघर्ष और टकराव बढ़ता जा रहा है.

बैलों को भी बनाया शिकार

इस घटना के बारे में एक ग्रामीण ने कहा, 15 दिन पहले गांव में बाघ ने दो बैलों को मारा था. उसके बाद एक गाय को मारा था. मैं भी तेंदूपत्ता संकलन करने जाता हूं. बाघ के खतरे के कारण डरते हुए ही जाना पड़ता है. अपनी मेहनत के हिसाब से 300 रुपये तक रोजी मिलती है, जितने पत्ते जमा करेंगे उतनी रोजी मिलती थी. लेकिन बाघ के हमलों के बाद अब ये रोजगार भी बंद हो गया. वन विभाग ने जंगल की ओर जाने से मना किया है.

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एक और ग्रामीण ने बताया कि वन विभाग ने कहा है कि जंगल की ओर नहीं जाना है क्योंकि जंगल में बाघ घूम रहे हैं. लेकिन रोजी रोटी के लिए जाना ही पड़ता है. बाघ की दहशत से रोजगार पर असर पड़ा है. यहीं रहने वाले एक ग्रामीण ने कहा, गांव में काम नहीं है. नरेगा के माध्यम से जो रोजगार मिलता था, वो भी बंद कर दिया गया है. अगल बगल के गांवों में भी बाघ की दहशत शुरू है. सरकार से मांग है कि जल्द से जल्द बाघ का बंदोबस्त होना चाहिए, किसान डर के साये में जी रहे हैं.(विकास राजूरकर की रिपोर्ट)

 

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