
दो रोज पहले गौरव भाटिया ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला. उसमें दो तस्वीरें हैं. पहली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, जो तेजस फाइटर एयरक्राफ्ट से उड़ान भरने को तैयार हैं. दूसरी राहुल गांधी की, जो एक ट्रैक्टर पर बैठे हैं. कैप्शन था – अपनी-अपनी किस्मत. उसमें भी ठहाका लगाने वाली इमोजी उन्होंने साथ में डाली थी.
सवाल यहां है कि इस तस्वीर और कैप्शन से क्या साबित होता है. क्या यह कि राहुल गांधी की किस्मत इतनी खराब है कि वो ट्रैक्टर पर सवारी कर रहे हैं? कम से कम एक आम इंसान को तो ऐसा ही लगता है. गौरव भाटिया पढ़े-लिखे हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं. हो सकता है कि उनका मकसद दूसरा रहा हो, लेकिन संदेश जा रहा है कि ट्रैक्टर पर बैठना या किसान होना इस मुल्क में बदकिस्मती है. मकसद कुछ और हो भी, तो पोस्ट डाले हुए दो दिन हो चुके हैं, उसे हटाया नहीं गया है. न ही उसके बाद सफाई देने की कोशिश की गई है. किसानों के मामले में सफाई देना वैसे भी जरूरी माना नहीं जाता.
गौरव भाटिया भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. न्यूज चैनल्स देखने वाले लोगों को जो चेहरे डिबेट में सबसे ज्यादा दिखाई देते हैं, उनमें से एक. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं. पहले समाजवादी पार्टी में हुआ करते थे. अब बीजेपी के फायर ब्रैंड प्रवक्ता के तौर पर उनकी छवि है. सोशल मीडिया पर कांग्रेस पर हमले बोलने के लिए जाने जाते हैं. राहुल गांधी के खिलाफ उनकी भाषा काफी आक्रामक होती है.
गौरव भाटिया ने क्या सोचा हम नहीं जानते. लेकिन इस देश में सामंती प्रवृत्ति की सोच कुछ ऐसी ही है. यहां किसान किसी जमींदार के लिए खेत जोतने से फसल काटने का काम करता है. उसे कुछ हिस्सा ‘भीख’ जैसे दे दिया जाता है. पुरानी फिल्में देखें, तो किसान पगड़ी किसी साहूकार के पैरों पर रखकर कर्ज मांग रहा होता है या कर्ज वापस करने के लिए कुछ और वक्त मांगता दिखाई देता है. वो अपना हक मांगता है, तो धिक्कार मिलती है.
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दुनिया भले ही बदल गई हो, लेकिन सोच बदलने में वक्त लगता है. भाटिया साहब पढ़े-लिखे हैं, लेकिन शायद उन्हें याद दिलाने की जरूरत है कि जिन 80 करोड़ लोगों को भारत सरकार फ्री राशन देती है. जिस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले लागू किया, फिर आगे बढ़ाया. जिसे हर जगह वाह-वाही मिली. उस योजना की कामयाबी किसान की वजह से है, जिसने इतना अनाज उपजाया कि 80 करोड़ लोगों को दिया जा सके.
भाटिया साहब को यह भी याद रखना चाहिए कि फूड ग्रेन्स के उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. दूध उत्पादन में हम दुनिया में अव्वल हैं. कृषि उत्पादों के निर्यात में भारत का नाम दुनिया के शीर्ष देशों में आता है. फल और सब्जियां उपजाने में भी हम टॉप देशों में हैं. हमारे पास दुनिया में सबसे ज्यादा ऑर्गेनिक फार्मर हैं और ऑर्गेनिक फार्मिंग में हम छठे नंबर पर हैं.
ये सारे आंकड़े काफी न हों, तो कोविड का वक्त याद कर लीजिए. जब पूरी दुनिया अर्थव्यवस्था तबाह हो रही थी, तो जिसने भारत की बागडोर संभाले रखी, वो कृषि सेक्टर था. अब भी जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान साढ़े 17 परसेंट के आसपास है. कुछ समय पहले अमित शाह अपने भाषण में चर्चा कर चुके हैं कि कैसे मोदी सरकार ने पिछले करीब दस साल में कृषि बजट में किस कदर इजाफा किया है. महज 22 हजार करोड़ से यह 1.15 लाख करोड़ पहुंच गया है.
गौरव भाटिया साहब, अपनी पार्टी के घोषणा पत्र या संकल्प पत्र पर नजर डाल लीजिए. सिर्फ अपनी पार्टी नहीं, किसी भी पार्टी के. चुनाव से पहले जो घोषणा होती है, उसमें बड़ा हिस्सा किसानों के लिए होता है. यह बताता है कि किसान आपके लिए कितने अहम हैं. वो सिर्फ वोट बैंक के लिए नहीं, देश के लिए अहम हैं.
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इस सेक्टर की वजह से दुनिया हमें सलाम कर रही है... और ट्रैक्टर उसी सेक्टर का प्रतीक माना जाता है. कांग्रेस या किसी भी विपक्षी पार्टी को टारगेट करना आपका अधिकार है. लेकिन इस बहाने सामंती सोच को सामने मत लाइए. वो जमाना चला गया. नया दौर है. किसानों को टारगेट मत कीजिए. अब पुराना माइंडसेट नहीं चलेगा.(लेखक 'किसान तक' के संपादक हैं)
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