Arjun Munda: नए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा जो 36 साल की उम्र में बने थे मुख्यमंत्री, जानिए उनका सियासी सफर

Arjun Munda: नए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा जो 36 साल की उम्र में बने थे मुख्यमंत्री, जानिए उनका सियासी सफर

अर्जुन मुंडा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के हिस्से के रूप में एक आदिवासी नेता बने और बाद में एक अलग राज्य और जेएमएम के संघर्ष से जुड़े. उन्होंने जेएमएम के टिकट पर खरसावां विधानसभा सीट जीती लेकिन बाद में बीजेपी में शामिल हो गये.

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Arjun Munda: नए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा जो 36 साल की उम्र में बने थे मुख्यमंत्री, जानिए उनका सियासी सफरनए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा

झारखंड से खूंटी जिले से बीजेपी सांसद अर्जुन मुंडा देश के नए कृषि मंत्री बनाए गए हैं. उन्होंने विधायक नरेंद्र सिंह तोमर की जगह ली है.  अर्जुन मुंडा इससे पहले झारखंड में तीन बार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. झारखंड की क्षेत्रीय पार्टी जेएमएम से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत करने वाले अर्जुन मुंडा 1995 में पहली बार विधायक बने थे. पर अलग झारखंड बनने के बाद साल 2000 में हुए चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए और विधायक चुने जाने के बाद बाबूलाल मरांडी सरकार में मंत्री बने. झारखंड के 23 सालों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी आदिवासी नेता को केंद्र में एक बड़े मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है. 

वर्ष 2003 में 36 साल की उम्र में अर्जुन मुंडा झारखंड के मुख्यमंत्री बनाए गए. हालांकि इस दौरान वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और सितंबर 2006 तक राज्य की कमान संभाली. इसके बाद  2009 में जमशेदपुर से लोकसभा सीट से सांसद चुने गए लेकिन अगस्त 2010 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा से खूंटी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा औऱ जीत हासिल की. अर्जुन मुंडा की पहचान झारखंड में एक बड़े आदिवासी नेता के तौर पर होती है. 

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अर्जुन मुंडा का जन्म और शिक्षा

अर्जुन मुंडा का जन्म तत्कालीन अविभाजित बिहार के जमशेदपुर जिले में 3 मई 1968 को गणेश और सायरा मुंडा के घर हुआ था. जब अर्जुन केवल सात वर्ष के थे तब उनके पिता गणेश की मृत्यु हो गई. घर चलाने के लिए सायरा को खेतों में काम करना पड़ता था. अर्जुन मुंडा की शादी मीरा मुंडा से हुई है और दंपति के तीन बेटे हैं. अर्जुन मुंडा ने इग्नू से पीजी डिप्लोमा किया गया है. सामाजिक विज्ञान में स्नातक करने वाले अर्जुन मुंडा को पारिवारिक परिस्थितियों के कारण खुद को शिक्षित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा. 

अर्जुन मुंडा ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन के हिस्से के रूप में एक आदिवासी नेता बने और बाद में एक अलग राज्य और जेएमएम के संघर्ष से जुड़े. उन्होंने जेएमएम के टिकट पर खरसावां विधानसभा सीट जीती लेकिन बाद में बीजेपी में शामिल हो गये. तत्कालीन अविभाजित बिहार में 2000 के राज्य चुनावों में, अर्जुन मुंडा फिर से खरसावां से जीते, लेकिन इस बार भाजपा के टिकट पर.

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35 साल की उम्र में पहली बार बने मुख्यमंत्री

झारखंड अलग राज्य बनने के बाद उन्हें झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली सरकार में आदिवासी कल्याण मंत्री बनाया गया. सदन में मरांडी सरकार के बहुमत खोने के बाद, अर्जुन मुंडा 35 वर्ष की कम उम्र में राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने.

2005 के राज्य चुनावों में अर्जुन मुंडा के एनडीए गठबंधन को 81 सदस्यीय विधानसभा में 36 सीटें मिलीं. 2005 में शिबू सोरेन की यूपीए सरकार के 10 दिनों में गिरने के बाद वह दूसरी बार एनडीए के मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा ने 18 महीने बाद अर्जुन मुंडा से सीएम की कुर्सी छीन ली, जो एक नए राज्य की राजनीति में चल रही अस्थिरता को दिखाने के लिए काफी था. 

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बीजेपी का महत्वपूर्ण आदिवासी चेहरा

सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक मुख्यमंत्री के रूप में अर्जुन मुंडा का तीसरा कार्यकाल उनका सबसे लंबा कार्यकाल था, हालांकि इस बार राज्य में राष्ट्रपति शासन घोषित कर दिया गया था. झारखंड में नवंबर-दिसंबर 2014 के विधानसभा चुनावों में, एनडीए ने स्पष्ट बहुमत के साथ घर वापसी की, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अर्जुन मुंडा अपने गढ़ खरसावां से झामुमो के दशरथ गगराई से लगभग 12,000 वोटों से हार गए. फिर भी, अर्जुन मुंडा यकीनन राज्य में भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण नेता बने हुए हैं.


 

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