वैज्ञानिक, मौसम के विपरीत हालात की वजह Climate Change को बता रहे हैं. भारत में इससे उत्पन्न चुनौतियों पर हाल ही में किए गए अध्ययन की रिपोर्ट में उजागर हुआ है कि देश के अधिकांश इलाके मौसम के विपरीत हालात से प्रभावित हैं. इसमें लगातार बढ़ती गर्मी ने परेशानी को सबसे ज्यादा बढ़ा दिया है. पर्यावरण से जुड़े शोध संस्थान IPE Global और ESRI India की Study Report के मुताबिक पिछले 3 दशक के दौरान भारत में ग्रीष्म लहर यानी Heatwave से प्रभावित होने वाले दिनों की संख्या 15 गुना बढ़ गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि Extreme Weather Condition के कारण जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों में लगातार इजाफा हो रहा है. इसका शुरुआती असर खेती पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है.
भारत में बदलते मौसम चक्र के प्रभाव को समझने के लिए किए गए अध्ययन में गर्मी का लगातार बढ़ना, सबसे ज्यादा परेशानी का कारण बन रहा है. आलम यह है कि 1993 से 2022 तक 3 दशक के दाैरान हीट वेव से भारत के 84 फीसदी जिले बुरी तरह झुलस रहे हैं.
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वहीं बारिश भी देश के बड़े इलाके को प्रभावित कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक extreme rainfall यानी मूसलाधार बारिश की घटनाओं की तीव्रता और प्रभाव भी तेजी से बढ़ रहा है. इस स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मानसून के दौरान मूसलाधार बारिश की Frequency and Intensity से देश के 70 फीसदी जिले प्रभावित हो चुके हैं. स्पष्ट है कि इन जिलों में छोटे छोटे बार बार मूसलाधार बारिश की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.
रिपोर्ट के अनुसार extreme weather events का असर देश के बड़े हिस्से पर पड़ चुका है. इससे प्रभावित हुए राज्यों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि वैसे तो भारत के अधिकांश राज्य बदलते मौसम के दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं, लेकिन गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर इसकी दोहरी मार झेल रहे हैं. इन राज्यों में तापमान की अधिकता और भीषण बारिश की दोहरी मार पड़ रही है.
रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि मौसम चक्र में बदलाव का असर Saturation Point पर पहुंचने में अभी लगभग एक दशक और लगेगा. तब तक देश की बड़ी आबादी मौसम की चरम स्थितियों के शारीरिक दुष्प्रभावों के दायरे में आ जाएगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2036 तक देश के 10 में से 8 लोग माैसम की चरम घटनाओं से बुरी तरह प्रभावित होंगे.
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गौरतलब है कि Managing Monsoons in a Warming Climate शीर्षक से प्रकाशित यह रिपोर्ट साल 1993 से 2022 के दौरान देश के तमाम इलाकों से जुटाए गए तापमान और बारिश के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है. इसमें ज्ञात हुआ है कि इन 3 दशकों में अत्यधिक तापमान और मूसलाधार बारिश की घटनाओं की तीव्रता में लगातार इजाफा हो रहा है.
साथ ही इस अवधि में Uncertainty of the weather भी बढ़ी है. मसलन, भारत में बीते 3 दशक में मार्च से सितंबर के दौरान हीट वेव वाले दिनों की संख्या में 15 गुना तक इजाफा दर्ज किया गया है. यह बढ़ोतरी पिछले एक दशक में 19 गुना तक रही. इतना ही नहीं, हीटवेव से प्रभावित जिलों में 62 फीसदी जिले ऐसे पाए गए हैं जिनमें अक्टूबर से दिसंबर के दौरान मूसलाधार बारिश का प्रकोप भी लगातार बढ़ रहा है.
स्पष्ट है कि Heatwave and Heavy Rainfall का असर एक ही इलाके में एक साथ देखने को मिल रहा है. इसके अलावा मानसून सीजन की एक और प्रवृत्ति देखने को मिल रही है. इसमें मानसून के दौरान किसी स्थान पर बारिश के दिन तो तापमान में गिरावट दर्ज होती है, लेकिन उसी स्थान पर Non Rainy Day यानी जिस दिन बारिश नहीं हो रही है, उस दिन गर्मी के मौसम जैसा तापमान पहुंच जाता है.
रिपोर्ट में केरल का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि जिन इलाकों में मूसलाधार बारिश की तीव्रता बढ़ रही है, उन्हीं इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं. गौरतलब है कि बीते कुछ सालों में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में मूसलाधार बारिश या बादल फटने (Cloudburst ) की घटनाएं बढ़ी हैं, इस कारण इन राज्यों में पहाड़ धंसने या भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ गई हैं. कुछ ऐसा ही नजारा हाल ही में केरल के वायनाड में भी देखने को मिला, जहां भूस्खलन से 300 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी.
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