केमिकल मुक्त खेतीकेमिकल खेती के बुरे नतीजे अब साफ दिखाई देने लगे हैं. रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल हमारे खेत बंजर हो रहे हैं, बल्कि हमारा खाना भी जहरीला होता जा रहा है. यही वजह है कि आज हर घर में गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं. हमें एक ही दिन में सब कुछ बदलने की जरूरत नहीं है, लेकिन शुरुआत करना सबसे ज्यादा जरूरी है. प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि प्राकृतिक खेती, हमारे पुराने ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के सही मेल से हम मिट्टी में फिर से जान फूंक सकते हैं. किसानों के डर को दूर करने के लिए उन्होंने 'एक एकड़, एक सीजन' का मंत्र दिया है यानी, किसान पूरी जमीन पर जोखिम न लें, बल्कि शुरुआत में सिर्फ एक एकड़ में यह प्रयोग करके देखें. जब अच्छे नतीजे मिलेंगे, तो विश्वास अपने आप बढ़ जाएगा. आज की यह छोटी सी पहल हमारी मिट्टी को बचाएगी और हमें शुद्ध भोजन देगी. यह बदलाव हमारी आने वाली पीढ़ियों को अपंग होने से बचाएगा और उन्हें एक स्वस्थ व सुरक्षित भविष्य देगा. जागने और बदलाव लाने का यही सही समय है.
केमिकल खेती के बुरे नतीजे अब साफ दिखाई देने लगे हैं. रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने न केवल हमारे खेतों को बंजर बनाया है, बल्कि हमारे भोजन को भी जहरीला कर दिया है, जिससे हर घर में बीमारियां बढ़ रही हैं. जब विज्ञान इंसान को चांद पर पहुंचा सकता है और मोबाइल में पूरी दुनिया समेट सकता है, तो यह सोचना गलत है कि बिना केमिकल के खेती नामुमकिन है. यह सच है कि सालों से रसायनों की मार झेल रही मिट्टी को अपनी पुरानी ताकत पाने में 2-3 साल लग सकते हैं, लेकिन उसके बाद मिट्टी फिर से ज़िंदा हो उठती है. तब जो पैदावार मिलती है, वह सिर्फ अनाज नहीं, बल्कि सेहत का 'अमृत' होती है. केमिकल खेती वह 'मीठा जहर' है जो हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को धीरे-धीरे अपंग बना रहा है. प्राकृतिक खेती केवल फसल उगाने का तरीका नहीं, बल्कि प्रकृति से दोस्ती करके एक स्वस्थ भारत बनाने का संकल्प है. अब वक्त आ गया है कि हम इस जहर को हमेशा के लिए अलविदा कहें और एक सुरक्षित भविष्य की नींव रखें
यह सच है कि केमिकल वाली खाद डालने से खेत जल्दी हरे-भरे हो जाते हैं और पैदावार देखकर मन खुश हो जाता है. लेकिन यह 'शॉर्टकट' असल में एक बहुत बड़ा धोखा है. हम ज्यादा पैदावार के लालच में अपनी धरती को बंजर बना रहे हैं और अनजाने में अपनी ही थाली में 'धीमा जहर' परोस रहे हैं. आज कल जो हम नई-नई बीमारियां देख रहे हैं, वो इसी जहरीली खेती का नतीजा हैं. इसके ठीक उलट, प्राकृतिक खेती मरती हुई मिट्टी में फिर से जान फूंकने का काम करती है. इसमें बाजार से महंगी दवाइयां नहीं लानी पड़तीं, बल्कि गाय के गोबर, गौमूत्र और खेत के कचरे से ही सोना उगाया जाता है. इससे किसान की जेब पर बोझ नहीं पड़ता, पानी की बचत होती है और जमीन हमेशा उपजाऊ बनी रहती है. सीधी सी बात है कि जब मिट्टी स्वस्थ होगी, तभी अनाज शुद्ध होगा और हमारा शरीर निरोगी रहेगा. प्राकृतिक खेती सिर्फ अनाज उगाने का तरीका नहीं है, बल्कि यह अपने बच्चों को एक सुरक्षित और बीमारी-मुक्त भविष्य देने की तैयारी है.
प्राकृतिक खेती को जन-जन तक पहुंचाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी मशाल जलाई है. हाल ही में 19 नवंबर को कोयंबटूर में आयोजित 'साउथ इंडिया नेचुरल फार्मिंग समिट' में उन्होंने हिस्सा लिया और अपने अनुभव को लिंक्डइन पर साझा किया. पीएम मोदी का मानना है कि प्राकृतिक खेती भारत के पुराने ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का बेहतरीन संगम है, जहां बिना केमिकल के भी केंचुओं और मल्चिंग जैसी तकनीकों से मिट्टी में जान फूंकी जा सकती है. किसानों के मन से डर निकालने के लिए उन्होंने एक बहुत ही सरल और असरदार मंत्र दिया— "एक एकड़, एक सीजन". उनका कहना है कि किसान शुरुआत में पूरी जमीन पर जोखिम न लें, बल्कि सिर्फ एक एकड़ में एक फसल उगाकर देखें. जब अच्छे नतीजे मिलेंगे, तो खुद-ब-खुद उनका भरोसा बढ़ जाएगा. उन्होंने युवाओं को भी खेती में नए स्टार्टअप्स और एफपीओ के जरिये जुड़ने का आह्वान किया है. आज सिक्किम का पूरी तरह जैविक राज्य बनना, आंध्र प्रदेश का मॉडल और ओडिशा का 'श्री अन्न अभियान' इस बात का सबूत है कि दक्षिण भारत से उठी यह लहर अब पूरे देश को बदल रही है. यह साफ बताता है कि अगर सही तरीका अपनाया जाए, तो बिना यूरिया के भी बंपर पैदावार लेना पूरी तरह मुमकिन है.
अब समय आ गया है कि हम इसे एक आंदोलन बनाएं. अगर प्राकृतिक खेती को एक लंबी योजना के साथ बढ़ावा दिया जाए, तो यह न केवल पर्यावरण को बचाएगी बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ाएगी. जब किसान का खर्चा कम होगा और उसकी फसल का दाम अच्छा मिलेगा, तो वह कर्ज के बोझ से बाहर निकल पाएगा. सबका सपना भी यही है कि भारत का किसान आत्मनिर्भर बने और भारत का हर नागरिक स्वस्थ रहे. मजबूत नीतियों और जागरूकता के साथ, आने वाले सालों में प्राकृतिक खेती ही सबसे लोकप्रिय विकल्प बनेगी. यह एक ऐसा सिस्टम बन सकता है जो किसानों को अच्छी कमाई दे और जनता को बीमारियों से दूर रखे. लेकिन यह जिम्मेदारी सिर्फ सरकार या किसान की नहीं है. एक जागरूक नागरिक और उपभोक्ता होने के नाते, हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम प्राकृतिक तरीके से उगाए गए अनाज और सब्जियों को प्राथमिकता दें. जब हम मांग करेंगे, तभी किसान उगाएगा. आइए, हम सब मिलकर इस सकारात्मक बदलाव को अपनाएं और अपने देश के लिए एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य का निर्माण करें. प्राकृतिक खेती ही भारत का उज्ज्वल भविष्य है.
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