गन्ना गाथा : देश में व्यावसायिक फसलों में गन्ने का अहम स्थान है. इस समय मानसून के आने से किसानों की गन्ने की सिंचाई को लेकर चिंता कम हो जाती है. इस बारिश से गन्ना किसान काफी संतुष्ट भी हैं, लेकिन इस बारिश के बाद भी गन्ने की बेहतर पैदावार के लिए कुछ काम करना बहुत जरूरी है. नहीं तो गन्ने की फसल को फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना रहती है. इसलिए बाऱिश के बाद गन्ने में कुछ जरूरी कार्यो पर ध्यान दें. इससे पहली बात तो ये कि नुकसान की संभावना कम होती है और दूसरी बात ये कि गन्ने का उत्पादन बढ़ेगा तो स्वाभाविक है कि आय भी बढ़ेगी. आज के गन्ना गाथा में जानेंगे कि मानसून की बाऱिश के बाद गन्ने की फसल में किन किन बातों पर ध्यान देना चाहिए. ताकि बेहतर पैदावार ली जा सके.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान IARI पूसा के एग्रोनॉमी डीवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजीव कुमार सिंह ने किसान तक को बताया कि देश में गन्ने की खेती बसंत और सर्दी के मौसम में ज्यादा की जाती है. इस समय दोनों फसलें खेतों में खड़ी हैं. अगर किसान ने बंसत कालीन गन्ने की फसल में यूरिया का प्रयोग जून माह में नही किया है तो फसल की तेजी से बढ़ाव के लिए टाप ड्रेसिंग करने का ये बहुत ही अच्छा समय है, इसके लिए किसानों को बारिश होने के बाद जब खेतों से पानी निकल जाए तो गन्ने की फसल में बुवाई के बाद बची यूरिया की आधी मात्रा यानी 40 से 45 किग्रा प्रति एकड़ की दर से यूरिया की टॉप ड्रेसिंग खड़ी फसल में करनी चाहिए. और जो किसान यूरिया की टॉप ड्रेसिंग कर चुके हैं, उन्हें गन्ने के एक एकड़ परिक्षेत्र में 200 लीटर पानी में 500 एमएल नैनो यूरिया, चार किलोग्राम एनपीके के साथ छिड़काव करनी चाहिए. खरपतवार दिखने पर उन्हें उखाड़कर जमीन में दबा देना चाहिए.
डॉ राजीव कुमार सिंह ने कहा कि उन्होंने गन्ना किसानों को सलाह दी है कि जहां जलजमाव है, वहां खेत से पानी निकालने की व्यवस्था करें. दरअसल, खेत में अधिक पानी भर जाने से गन्ने के पौधे की वृद्धि रुक जाती है, इसलिए खेत से पानी निकालने के लिए नालियां बनानी चाहिए और अगस्त से सितंबर के महीने में गन्ने की फसल की सूखी पत्तियों को खेत से हटा देना चाहिए. इससे पौधों का तेजी से विकास होता है. कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव के मुताबिक मानसून के दौरान तेज हवाओं से गन्ने की फसल खेतों में गिरने की आशंका रहती है. इस समय गन्ने के खेत की मिट्टी नरम और ढीली हो जाती है. अक्सर तेज हवाओं के कारण बढ़ते गन्ने के वजन को रोक नहीं पाती और गन्ने की फसल गिर जाती है. इससे फसल को नुकसान होता है. इसलिए इस समय गन्ने की फसल में मिट्टी चढ़ाने का काम समय पर करना चाहिए. इसके लिए गन्ने की जड़ों के पास मिट्टी चढा दें ताकि गन्ने की लाइनों के बीच एक नाली बन जाए और पानी आसानी से खेत से बाहर निकल जाए. अगर बारिश और तेज हवा चलने की संभावना हो तो फसल को गिरने से बचाने के लिए गन्ने की बधाई एक बहुत ही कारगर उपाय है. आसपास के गन्ने 5 से 10 गन्ने एक साथ बांध दें, इससे गन्ना एकजुट रहेगा और हवा चलने पर भी जमीन पर नहीं गिरेगा.
कृषि विज्ञान केन्द्र के गौतमबुद्ध नगर के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ और हेड डॉ. मयंक राय ने बताया कि गन्ने की फसल में इस समय मुख्य रूप से पोरी बेधक, तना बेधक, गुरदासपुर बेधक, प्लासी बेधक कीटों का ज्यादा प्रकोप जुलाई से सितम्बर तक होता है. पोरी बेधक कीट, जो कि प्रभावित गन्ने की पोरिया गोल आरी जैसे फटे हुए दिखाई देते हैं और छिद्र के पास से बुरादा बाहर निकलता है, इसका प्रभाव जुलाई से सितंबर महीने में जब गन्ने की बढ़वार के समय ज्यादा देखा जाता है..
पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ मयंक राय ने मुताबिक पोरी बेधक, तना छेदक कीट और प्लासी कीट के लिए प्रति एकड़ 50 एमएल क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18 फीसदी एससी का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए या 250 एमएल एमिडा क्लोरोपिड का घोल बनाकर किसान छिड़काव कर सकते हैं. गुरदासपुर बेधक कीट के नियंत्रण के लिए क्वीवनाफास दवा 400 एम एल दवा 400 पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. डॉ मयंक राय ने कहा कि फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करके इन कीटों को नियंत्रित और निगरानी की जा सकती है. यह एक बहुत ही कम लागत वाला उपकरण है, जिसे किसी भी उर्वर और बीज की दुकान से या ऑनलाइन खरीदा जा सकता है. कैप्सूल में मादा कीड़ों की गंध होती है और नर कीट आकर्षित होकर फेरोमोन ट्रैप में फंसकर मर जाते हैं. इसको एक एकड़ खेत में 10 फेरोमोन ट्रैप की जरूरत होती है .
कृषि वैज्ञानिक डॉ राय के मुताबिक किसान चाहें तो 4 ट्राइकोकार्ड को प्रति एकड़ की दर से खेत में लगा सकते हैं. वहीं गुरदासपुर बेधक की रोकथाम के लिए सूखे अगोलों को काटकर जमीन में दबाने से दोबारा परेशानी नहीं आती. अगेती गन्ना की फसल में सफेद गिडार की मौजूदगी दिखने पर प्रकाश प्रपंच या नीम से बने प्राकृतिक कीट नाशकों का प्रयोग कर सकते हैं. इसके साथ समय पर गन्ने लगने वाले हानिकारक कीटों और रोगों की निगरानी करते रहे और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर रोकथाम उपाय करते रहे.
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