इन दिनों अपने देश में बड़े साइज के अमरूद को खूब पसंद किया जा रहा है. बाजार में इन अमरूदों की काफी मांग है. एक अमरूद का वजन डेढ़ किलो तक पहुंच जाता है और इसकी पैदावार करने वाले किसानों का माल हाथों हाथ बिक रहा है. यह भारी भरकम अमरूद न केवल देखने में सुंदर लगता है, बल्कि इसका स्वाद भी बेहतरीन है. इसकी सघन बागवानी कर रहे हैं हरियाणा के जींद के प्रगतिशील किसान सुनील कंडेला. उनका कहना है कि उन्हें इसकी मार्केटिंग के लिए मंडी जाने की जरूरत नहीं है. उनके अमरूद की उपज घर से ऑनलाइन बिक जाती है. एक अमरूद 150 रुपये से लेकर 250 रुपये तक की कीमत में बिकता है, जिससे उन्हें लाखों की आमदनी हो रही है.
सुनील कंडेला ने कहा कि पांच साल पहले उन्होंने अपनी आय बढ़ाने के लिए अमरूद बागवानी शुरू की थी. उनके खास किस्म के अमरूदों ने जिंदगी में कमाई का बहार ला दिया है. सुनील ने कहा कि एक एकड़ के बाग में थाई अमरूद किस्म के करीब 400 पेड़ हैं, जिनमें साल में दो बार फल लगते हैं. एक पेड़ से पूरे साल में 50 से 60 किलो तक अमरूद मिलते हैं. सुनील अपने 01 एकड़ के अमरूद के बाग से लगभग 20 टन की उपज लेते हैं, जिससे उन्हें कम से कम 08 लाख तक की कमाई होती है. इसमें उन्हें देखरेख के तौर पर 01 लाख रुपये तक का लागत खर्च आता है. इस तरह उन्हें अपने 01 एकड़ के फार्म से साल भर में 07 लाख का शुद्ध मुनाफा होता है.
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आमतौर पर जहां एक किलो वजन में 04 से 05 अमरूद आ जाते हैं..वहीं सुनील द्वारा उपजाए गए जंबो साइज के एक अमरूद का वजन 01 किलो से भी ज्यादा का होता है. जैसी चीज़ वैसा ही दाम. केवल एक अमरूद वजन और गुणवत्ता के हिसाब से 150 रुपये से लेकर 250 रुपये तक की कीमत में बिकता है. उनके अमरूदों की चर्चा उनके इलाके के लोग करते हैं.
सुनील के उपजाए अमरूद के आकार इतने बड़े होते हैं कि उसे एक अकेला आदमी पूरा खा नहीं सकता है. इसके लिए वह कुछ खास इंतजाम करते हैं. उनका कहना है कि जब अमरूद नींबू के अकार से भी छोटे होते हैं, तभी उनका चयन हो जाता है. फिर उसके ऊपर बारिश, आंधी, ओले जैसी किसी प्राकृतिक आपदा या बीमारी का असर न हो, इसलिए फोम लगाया जाता है. तापमान को संतुलित रखने के लिए एंटी फॉग पॉलीथीन और फिर उसके ऊपर कागज बांधा जाता है जिससे किसी भी प्रकार से कीट या बीमारी से अमरूद प्रभावित ना हो.
सुनील ने बताया कि कुछ साल पहले उन्होंने अमरूद की खास प्रजाति के बारे में सुना. उन्होंने उस अमरूद को देखा तो वे हैरान रह गए क्योंकि देखने में काफी सुंदर और बड़े अमरूद देखकर उनका मन ललचा गया. उन्होंने इसके बाग लगाने के बारे में विचार किया. इसकी कार्ययोजना भी बनानी शुरू कर दी. इसके बाद सुनील ने थाई किस्म के पौधे मंगाए और अपने खेतों में सघन तकनीक से रोपण किया. चूंकि भूमि का जल स्तर बहुत कम है, इसलिए वे ड्रिप सिंचाई के माध्यम से सिंचाई करते हैं.
सुनील कडेला ने 02 एकड़ में नींबू की बागवानी की है और एक एकड़ में शेड नेट लगवाया है. इसमे वह सब्जियों की खेती करते हैं. इन जंबो अमरूद और नींबू के पेड़ों को रासायनिक खाद की बजाय जैविक तरीके से पोषण देते हैं. इसलिए ये और भी ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक फल होते हैं. उन्होंने अपने अमरूद और नींबू के बाग में नीम की खली, गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट डालकर पौधों को शक्तिशाली बना दिया है. इसके अलावा जैविक हल्दी, बेर, मौसमी आडू, सेब की बागवानी की है. वे आर्गेनिक सब्जियां भी उगाते हैं. इसके अलावा अपने मधुमक्खी पालन का भी काम करते हैं और नींबू के फलों की प्रोसेसिंग करके बाजार में बेचते हैं.
अमरूद की गुणवत्ता अच्छी बनी रहे, इसके लिए सुनील विशेष खयाल रखते हैं, जिससे कि उनकी उपज की हाई डिमांड बनी रहती है. इसके लिए वे जैविक खाद और पेस्टीसाइड का इस्तेमाल करते हैं, जो फार्म के वेस्ट मेटेरियल से तैयार होता है और कीटनाशक के रूप में केवल नीम आधारित दवाओं का प्रयोग करते हैं. सुनील अपने फार्म से कोई वेस्ट बाहर नहीं जाने देते. पेड़ों की कटाई-छंटाई के अवशेष से कंपोस्ट तैयार करते हैं. वे सिर्फ जैविक खाद का इस्तेमाल करते हैं, जिसे फार्म के वेस्ट से ही बनाया जाता है और इस तरह बागवानी में उनकी लागत भी कम आती है.
जितनी अनोखी कहानी सुनील के अमरूद के बाग लगाने की है, उससे भी ज्यादा दिलचस्प है उनकी मार्केटिंग की रणनीति. वे अपने अमरूदों को किसी सब्जी मंडी या दुकान में नहीं बेचते बल्कि वे इसे सीधे ऑनलाइन रिटेलिंग के जरिए बेचते हैं. सुनील की ऑनलाइन मार्केटिंग की डिलिवरी चेन दिल्ली, चंडीगढ़, पंचकूला, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद सहित कई जगहों तक फैली है, जहां से लोग ऑर्डर करते हैं. ऑनलाइन ऑर्डर करने के के बाद 48 घंटों के अंदर अमरूदों को वहां पहुंचा दिया जाता है.
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सुनील कंडेला ने कहा कि पंजाब-हरियाणा में रासयानिक खाद के कारण जमीन बंजर हो रही है. वही दूसरी तरफ बड़े स्तर पर धान की खेती होती है. जिस गति से पानी नीचे जा रहा है, ऐसे में किसान लंबे समय तक धान की खेती नहीं कर सकते. इसलिए दूसरे विकल्प तलाशने होंगे. अगर आप भी कृषि अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना चाहते हैं तो ऐसी नकदी वाली खेती किए जाने की जरूरत है. इसकी प्रोसेसिंग करके बाजार से दोगुना लाभ कमा सकते हैं. इससे अधिक से अधिक लाभ मिल सकता है. सुनील कंडेला ने जिस तरह से अमरूद की अच्छी उपज ली है, और उसकी अच्छी तरह से ग्रेडिंग-पैकिंग- मार्केटिंग कर रहे हैं, वो बाक़ी किसानों के लिए एक सफल उदाहरण है. इसे देख-समझ कर, आप खुद अपनी मेहनत से अपनी बंद क़िस्मत का ताला खोल सकते हैं.
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