राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सोमवार को नई दिल्ली में राष्ट्रीय पंचायत प्रोत्साहन सम्मेलन की शुरुआत की और राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में तेजी से हुए शहरीकरण के बावजूद, अधिकांश आबादी अभी भी गांवों में रहती है. शहरों में रहने वाले लोग भी किसी न किसी रूप में गांवों से जुड़े हुए हैं. देश की आत्मा गांवों में बसती है. गांवों के विकास से देश की समग्र प्रगति हो सकती है. ग्रामीणों को यह तय करने में सक्षम होना चाहिए कि गांव के विकास के लिए कौन-सा मॉडल उपयुक्त है और इसे कैसे लागू किया जाना चाहिए.
विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि पंचायतें न केवल सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं को लागू करने का माध्यम हैं, बल्कि नेतृत्व प्रदान करने वाले नए लोगों, योजनाकारों, नीति-निर्माताओं और नवोन्मेषकों को प्रोत्साहित करने के स्थान भी हैं. एक पंचायत के सर्वोत्तम तौर-तरीकों को दूसरी पंचायतों में अपनाकर हम तेजी से विकास कर सकते हैं और अपने गांवों को समृद्ध बना सकते हैं.
राष्ट्रपति ने कहा कि समाज के प्रत्येक समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए हर पांच साल में पंचायत प्रतिनिधियों के चुनाव का प्रावधान है. हालांकि, देखा जाता है कि ये चुनाव कई बार लोगों के बीच कड़वाहट भी पैदा कर देते हैं. चुनाव को लेकर ग्रामीणों में आपसी कलह न हो, इस बात को ध्यान में रखते हुए पंचायत चुनाव को राजनीतिक दलों से अलग रखा गया है. उन्होंने कहा कि जिस समाज में लोगों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास होता है, वह अधिक फलता-फूलता है. गांव, परिवार का विस्तार होता है. जहां तक संभव हो, सभी सामुदायिक कार्य आपसी सहमति के आधार पर किए जाने चाहिए.
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राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी समाज के सर्वांगीण विकास के लिए, महिलाओं की भागीदारी बहुत जरूरी है. महिलाओं को अपने लिए, अपने परिवार के लिए और समाज के कल्याण के लिए निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए. परिवार और ग्राम स्तर पर उनके सशक्तिकरण के माध्यम से, इस अधिकार को प्राप्त किया जा सकता है. उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि देश के 2.75 लाख से अधिक स्थानीय ग्रामीण निकायों के 31.5 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 46 प्रतिशत महिलाएं हैं. उन्होंने महिलाओं से ग्राम पंचायतों के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का आग्रह किया. उन्होंने उनके परिवारों से भी इन प्रयासों में उनका साथ देने की अपील की.
राष्ट्रपति ने कहा कि आज ग्लोबल वार्मिंग मानवता के लिए बहुत बड़े खतरे के रूप में हमारे सामने उपस्थित है. इस वैश्विक चिंता से निपटने के लिए हर स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है. भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य तय किया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबके प्रयास और साथ की आवश्यकता है. आज स्थायी हरित ऊर्जा और शून्य-कार्बन उत्सर्जन के लिए पंचायतों को पुरस्कृत होते देख कर संतुष्टि होती है कि जमीनी स्तर पर भी इस समस्या के समाधान के प्रयास हो रहे हैं.
मुर्मु ने कहा कि गांव के विकास का मॉडल कैसा हो और इसे कैसे कार्यरूप दिया जाए, इसका निर्णय लेने का अधिकार ग्रामवासियों को होना चाहिए. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इस बात को बखूबी समझते थे. इसीलिए उन्होंने 'ग्राम-स्वराज' के जरिए 'आदर्श ग्राम' के निर्माण की कल्पना की. गांधी जी के लिए स्वराज सत्ता नहीं, बल्कि सेवा का साधन था. कालांतर में भी अनेक महापुरुषों ने ग्राम विकास और स्व-शासन के मॉडल प्रस्तुत किए और गांवों के विकास के लिए प्रयास किए. ऐसा ही एक उदाहरण नानाजी देशमुख का है जिन्होंने 'ग्रामोदय' और 'स्वालंबन' के माध्यम से देश के अनेक गांवों का उत्थान किया.
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