scorecardresearch
Parali Burning: पंजाब के 4 ऐसे गांव जहां पिछले 10 साल से बिल्कुल नहीं जली पराली

Parali Burning: पंजाब के 4 ऐसे गांव जहां पिछले 10 साल से बिल्कुल नहीं जली पराली

पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से यहां के किसानों ने कोई पराली नहीं जलाई है, चाहे वह धान हो या गेहूं. यह किसानों की जागरूकता और लैंब्रा कांगड़ी बहुउद्देशीय सहकारी समिति के लचीलेपन के कारण है, जो यह सुनिश्चित कर रहा है कि किसानों को जब भी जरूरत हो उन्हें पराली-प्रबंधन मशीनें मिलें.

advertisement
Parali Burning Parali Burning

सितंबर से नवंबर तक पराली जलाने के मामले हमेशा सुर्खियां में बने रहते हैं. खासकर पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामले हमेशा सामने आते रहते हैं. जिससे यहां की सरकारें चिंतित रहती हैं. ऐसे में इस बार की बात करें तो एनजीटी ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हरियाणा और पंजाब सरकार को फटकार लगाई है. जिसके चलते यहां की सरकार लगातार कई ठोस कदम उठाती नजर आ रही है.

वहीं जहां राज्य में पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी लगभग हर साल सुर्खियां बन रही है, तो होशियारपुर के चार गांव आशा की किरण के रूप में काम करते नजर आए हैं.

पिछले 10 वर्षों से यहां नहीं जली पराली

पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से यहां के किसानों ने कोई पराली नहीं जलाई है, चाहे वह धान हो या गेहूं. यह किसानों की जागरूकता और लैंब्रा कांगड़ी बहुउद्देशीय सहकारी समिति के लचीलेपन के कारण है, जो यह सुनिश्चित कर रहा है कि किसानों को जब भी जरूरत हो उन्हें पराली-प्रबंधन मशीनें मिलें.

इन मशीनों का किया जा रहा इस्तेमाल

ये गांव लंबरा, डुडियाना कलां, बैरन कांगड़ी और बग्गेवाल हैं. चाहे वह हैप्पी-सीडर हो या सुपर-सीडर, सोसायटी इन गांवों में हर किसान को मशीन उपलब्ध कराती है. सोसायटी के सीईओ जसविंदर सिंह ने कहा कि सोसायटी लंबे समय से किसानों के कल्याण के लिए काम कर रही है. किसानों को पराली जलाने के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करना सोसायटी का एक उद्देश्य था जिसमें वे सफल हुए हैं.

ये भी पढ़ें: पराली जलना आधा, पॉल्यूशन डबल... अब तो जाग जाओ दिल्ली

जसविंदर सिंह ने कहा, "इस साल, हमने कुछ क्षेत्रों में नई शुरू की गई मशीन 'सरफेस सीडर' का प्रदर्शन भी किया." इसके अलावा सोसायटी ने इस सीजन में होशियारपुर के टांडा इलाके में बेलर मशीनों का इस्तेमाल किया. बेलर मशीन की मदद से फसल के अवशेषों को गांठों में दबा दिया गया है. जिन्हें बाद में उद्योगों में ले जाया गया. जिन गांवों में बेलर मशीनों का उपयोग किया गया था वे हैं रानी पिंड, जाजलपुर, सलेमपुर और अवान घोरे शाह.

बायोगैस का किया जा रहा इस्तेमाल

होशियारपुर के कृषि विकास अधिकारी डॉ. सिमरनजीत सिंह ने कहा कि किसान समाज पर भरोसा करते हैं और पिछले कई वर्षों से किसी ने भी पराली नहीं जलाई है. 1920 में जसविंदर सिंह के पूर्वजों द्वारा स्थापित, फाउंडेशन इन सभी वर्षों में ग्रामीणों की जरूरतों को पूरा करने में सबसे आगे रहा है. सोसायटी द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों में से एक है गांव में बायोगैस यूनिट की स्थापना की गई. इसकी मदद से, निवासी एलपीजी सिलेंडर को छोड़ने में सक्षम हुए हैं और इसके जगह अब बायोगैस का उपयोग कर रहे हैं.