पंजाब-हरियाणा में गेहूं की बंपर खरीद हो रही है, लेकिन बिहार इस मामले में काफी पीछे हैं. अभी तक प्रदेश में 7280 टन ही गेहूं की खरीद की गई है. कहा जा रहा है कि राज्य सरकार गेहूं खरीद को लेकर खुद उदासीन है. वह अनाज की खरीद को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर रही है. इससे किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे अपनी उपज बेचने को मजबूर हो गए हैं. यही वजह है कि हाल ही में राज्य के दौरे पर आए खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों को खुद इसको लेकर चिंता जताई थी.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों द्वारा बक्सर में एक पैक्स के औचक निरीक्षण से पता चला कि गेहूं अनौपचारिक रूप से निजी खिलाड़ियों से खरीदा गया था, न कि सरकारी भंडार के लिए. ऐसे में मंत्रालय ने अब राज्य सरकार से पैक्स के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने को कहा है, क्योंकि ये संस्थाएं निजी खिलाड़ियों के लिए खरीद या स्टॉक नहीं रख सकती हैं. राज्य सरकार को ऐसी संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा गया है. एक अधिकारी ने टीओआई को बताया कि सरकार किसानों से खरीद बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, ताकि उन्हें सुनिश्चित एमएसपी मिले.
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अच्छे उत्पादन के बावजूद बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीद कम होने के कारण भारतीय खाद्य निगम इन दोनों राज्यों में वितरण के लिए पंजाब और हरियाणा से खाद्यान्न का परिवहन करता है, जिसकी लागत अधिक होती है. जबकि बिहार सरकार द्वारा दी गई कम प्राथमिकता कम खरीद के प्रमुख कारणों में से एक है, भूमि जोत भी पंजाब और हरियाणा की तुलना में छोटी है, जिससे किसानों के लिए अपनी खपत से परे बहुत कम अधिशेष बचता है.
चालू खरीद सीजन के दौरान बिहार में पैक्स द्वारा सीजन के 2 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले अब तक 7,280 टन गेहूं खरीदा जा चुका है. बिहार में पिछले साल 62 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ, जो देश के 1,077 लाख टन के उत्पादन का 6 प्रतिशत था. लेकिन सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद 4,000 टन थी.
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वहीं, कुछ देर पहले खबर सामने आई थी कि शनिवार शाम तक पंजाब भर की मंडियों में 1,20,31,643 मीट्रिक टन गेहूं की आवक हो चुकी थी, जिसमें से 1,19,40,194 मीट्रिक टन की खरीद हुई और 64,25,330 मीट्रिक टन का उठान हुआ. इसके अलावा, राज्य भर में फसल की कुल आवक की तुलना में फसल का उठान अधिक था.
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