देश के दूसरे सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक महाराष्ट्र की मालेगांव (वाशिम) मंडी में प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन के दाम का रिकॉर्ड बन गया है. इस सीजन में पहली बार किसी मंडी में दाम एमएसपी से ऊपर चले गए हैं. महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केटिंग बोर्ड के अनुसार 6 मई को यहां 250 क्विंटल सोयाबीन की आवक हुई. न्यूनतम दाम 5408, अधिकतम 5900 और औसत दाम 5650 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसी तरह हिंगोली की कलमनुरी मंडी में दाम 5000 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि एमएसपी 4600 रुपये प्रति क्विंटल है. हालांकि, राज्य की अधिकांश मंडियों में सोयाबीन के दाम एमएसपी से काफी कम हैं. इसलिए किसान निराश हैं. कई मंडियों में सोयाबीन की बंपर आवक हो रही है, इसलिए दाम काफी गिरे हुए हैं.
कुछ मंडियों में तो सोयाबीन का दाम उसकी उत्पादन लागत से भी कम रह गया है. लासलगांव-विंचुर मंडी में 6 मई को इसका न्यूनतम दाम सिर्फ 3000 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसी तरह हिंगणघाट में 2800 रुपये दाम रहा, जबकि केंद्र सरकार ने इसकी एमएसपी तय करते समय खुद माना था कि किसानों को इसकी उत्पादन लागत 3029 रुपये प्रति क्विंटल आती है. ऐसे में कई क्षेत्रों के किसानों को घाटे में अपनी सोयाबीन की उपज बेचनी पड़ रही है. जबकि 2021 में राज्य के किसानों को 10 से 11 हजार रुपये क्विंटल तक का दाम मिला था.
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सोयाबीन की गिनती दलहन और तिलहन दोनों फसलों में होती है, लेकिन इसे तिलहन में सबसे ज्यादा गिना जाता. भारत में सोयाबीन सत्तर के दशक में आई थी और अपनी गुणवत्ता की वजह से पूरे देश में छा गई. इसके सबसे बड़े उत्पादकों में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र हैं.बिस समय कुल तिलहन फसलों का 42 प्रतिशत और कुल खाद्य तेल उत्पादन में 22 प्रतिशत का योगदान अकेले सोयाबीन दे रहा है. बाजार विशेषज्ञों के अनुसार सोयाबीन में भारत को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की पूरी क्षमता है, लेकिन शर्त है कि अच्छा दाम मिले.
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