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CMFRI: अब घर में खूब सजाएं गोल्डन मछली, समुंद्र में हो रहीं थी कम तो तालाब में बढ़ाया कुनबा

CMFRI: अब घर में खूब सजाएं गोल्डन मछली, समुंद्र में हो रहीं थी कम तो तालाब में बढ़ाया कुनबा

एक्वाकल्चर एक्सपर्ट का कहना है कि गोल्डन मछली रीफ से जुड़ी मछली है. ये बड़ी मछलियों जैसे स्केट्स, शार्क, ग्रुपर्स आदि के साथ रहती है. खासी दिलचस्प बात यह है कि इस प्रजाति के किशोर शार्क के लिए पायलट के रूप में काम करते हैं. यह एक सिल्वर ग्रे मछली है.

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गोल्डन फ‍िश का प्रतीकात्मक फोटो. गोल्डन फ‍िश का प्रतीकात्मक फोटो.

सेंट्रल समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI), कोच्चि ने एक बार फिर बड़ी कामयाबी हासिल की है. एक्वाकल्चर एक्सपर्ट की मानें तो हाई वैल्यू वाली समुंद्री गोल्डन मछली (ग्नैथनोडोन स्पेशियोसस) बड़ी तेजी से गुम हो रही थी. इसे गोल्डन ट्रेवली और गोल्डन किंग भी कहा जाता है. डिमांड के सामने सप्लाई कम हो गई थी. गौरतलब रहे गोल्डन मछली की डिमांड घर में सजाने और खाने दोनों के लिए रहती है. CMFRI के रीजनल सेंटर, विशाखापत्तनम के साइंटिस्ट ने पांच साल की रिसर्च के बाद गोल्डन मछली के ब्लडस्टॉक विकास, कैप्टिव प्रजनन और लार्वा पालन में सफलता हासिल की. 

सेंटर की इस कोशिश से टिकाऊ सीफूड प्रोडक्शन के लिए एक नया रास्ता खुलने और समुंद्री पिंजरे में खेती सहित भारत की समुंद्री कृषि गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. सीफूड एक्सपर्ट का मानना है कि गोल्डन ट्रेवली या गोल्डन किंग मछली अपनी तेज विकास दर, मांस की क्वा लिटी और सजावटी होने के चलते बाजार में इसकी बहुत डिमांड रहती है. इस मछली का गेट 400 से 500 प्रति किलो तक है.

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ऐसी दिखती है गोल्डन मछली 

CMFRI के मीडिया प्रभारी ने बताया कि CMFRI, विशाखापत्तनम सेंटर के सीनियर साइंटिस्टर डॉ. रितेश रंजन की टीम ने 2019 में इस मछली के बीज उत्पादन पर रिसर्च शुरू की थी. और पूरे पांच साल बाद अब इसमे कामयाबी मिली है. अगर गोल्डनन मछली की पहचान की बात करें तो इसके पेट पर पीला रंग होता है, शरीर पर जगह-जगह काले धब्बे होते हैं, सभी पंख पीले रंग के होते हैं. इसकी पूंछ काले रंग की होती है. युवा गोल्डन मछली ज्या दा सुनहरे रंग की होती है. उस पर काले रंग की पट्टियां उन्हें बहुत डीसेंट लुक देती हैं. इसलिए ज्याजदातर लोगों की कोशिश होती है कि उनके घर में रखे एक्वेलरियम में गोल्डटन मछली जरूर हो. सजावटी गोल्डन मछली बाजार में 150 से 250 रुपये प्रति पीस मिलती है. 

5 साल में घट गई गोल्डन मछली की संख्या

CMFRI के जानकारों की मानें तो फिश लैंडिंग के आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि गोल्डन या ट्रेवली मछली खासतौर पर तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, कर्नाटक और गुजरात में रीफ क्षेत्र के फिश लैंडिंग सेंटर पर पकड़ी गई मछलियां उतरती हैं. बीते पांच साल 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 के दौरान गोल्डन मछली की कुल लैंडिंग का आंकड़ा 1106, 1626, 933, 327 और 375 टन रहा है. ये आंकड़ा खासतौर पर रामनाथपुरम, नागापट्टिनम, चेन्नई, पुदुकोट्टई, तिरुवनंतपुरम, एर्नाकुलम, तिरुनेलवेली, तंजावुर का है. तूतीकोरिन, उडुपी और गिर सोमनाथ जिले भी इसमे शामिल हैं.

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CMFRI के डायरेक्टर डॉ. ए. गोपालकृष्णन का कहना है, "यह भारतीय समुंद्री कृषि में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. गोल्डन मछली अपने गुणों के चलते समुंद्री खेती के लिए एक आदर्श फसल है. इसकी लैंडिंग के घटते आंकड़े को देखते हुए इस मछली के कैप्टिव प्रजनन में सफलता मिलना ज्यादा महत्वपूर्ण है. यह समुद्री पिंजरे की खेती समेत समुद्री कृषि प्रथाओं के माध्यम से टिकाऊ मछली पालन के अवसर प्रदान करेगी. यह तकनीक समुंद्र और तालाब में पालन पहल के माध्यम से जंगली स्टॉक बहाली के प्रयासों में भी योगदान देगी".