तिलहनी फसलों में, सोयाबीन एक प्रमुख फसल है जिसकी खेती खरीफ मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है, ज्यादातर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में, इसके बाद राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश के बुदेलखंड क्षेत्र में होती है. सोयाबीन की बुवाई जून के मध्य में शुरू होती है, आईसीएआर के संस्थान भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर सोयाबीन अनुसंधान और नई किस्मों के विकास और विकास पर काम करता है. साल 2022 में इस संस्थान ने किसानों के लिए सोयाबीन की तीन नई किस्में विकसित की हैं. जिसे मध्य प्रदेश सरकार ने भी मंजूरी दे दी है. इसे बोने से किसानों को अच्छी पैदावार मिल सकती है. लेकिन किसानों को सोयाबीन की उन्नत किस्मों की बुवाई करने से पहले कुछ जानकारी होना जरूरी है.
सोयाबीन की किस्म NRC 157 मध्यम अवधि की किस्म है, जो केवल 93 दिनों में पक जाती है, इस किस्म की औसत उपज 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. यह किस्म भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा विकसित की गई है. इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट्स, बैक्टीरियल पस्ट्यूल्स और टार्गेट लीफ स्पॉट्स जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता है. इसके किसान 20 जुलाई तक इसकी बुवाई कर सकते हैं. इस किस्म को संस्थान ने पिछले साल रिलीज किया था.
सोयाबीन की एक और किस्म NRC 131 किस्म विकसित की गई है. यह किस्म 92 दिनों में पक जाती है और इसकी औसत उपज 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म चारकोल रोट और टारगेट लीफ स्पॉट जैसी बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है. यह किस्म भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर ने विकसित किया है. इस किस्म को संस्थान ने पिछले साल जारी किया था.
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा विकसित NRC136 किस्म है. इसे इंदौर सोया-136 के नाम से भी जाना जाता है, ये भारत की पहली सूखा-सहनशील किस्म है, जो 105 दिनों में पक जाती है और ये किस्म औसतन 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. एनआरसी 136 MYMB यानि येलो मोजेक वायरस के लिए मध्यम प्रतिरोधी है. इस किस्म को संस्थान ने पिछले साल जारी किया था.
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भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इन किस्मों की बुआई कर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, राजस्थान, गुजरात, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र के किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं.
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर कृषि वैज्ञानिको के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में बारिश असामान्य रही है और मौसम से होने वाले संभावित नुकसान को कम करने के लिए वे वैराइटी कैफेटेरिया दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दे रहे हैं, जिसका अर्थ है कि किसानों को सोयाबीन की तीन से चार किस्मों की खेती करनी चाहिए.ताकि असमान मौसम के कारण सोयाबीन की फसल को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.इससे फलियों को टूटने से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है. साथ ही, कीट और रोगों का नियंत्रण आसान होता है और कटाई के लिए काफी समय होता है, जिससे किसानों को अच्छी उपज के साथ बेहतर लाभ मिलता है.
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