फसलों की एमएसपी तय करने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की मंशा है कि रासायनिक खाद के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए किसानों को उनके खेत के आकार के आधार पर उर्वरक सब्सिडी दी जाए. खेत के आकार के हिसाब से सब्सिडी वाले यूरिया और डीएपी के बैग की संख्या को सीमित कर दिया जाए. बता दें कि रासायनिक खादों का इस्तेमाल और दाम इतना बढ़ गया है कि इसकी सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपये के पार पहुंच गई है. आयोग ने दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने और खेती में अलग-अलग बदलाव करने की अपील भी की है. इसने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खरीदी गई दालों की बिक्री के लिए एक नीति बनाने का सुझाव भी दिया है.
जिसमें कहा गया है कि इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे नहीं बेचा जाना चाहिए. बता दें कि हम दालों के बड़े आयातक हैं. दलहन फसलों की खेती काफी घट गई है, इसलिए सरकार ने अब एमएसपी पर इसे खरीदने के लिए लगाई गई कुल उत्पादन की 25 फीसदी लिमिट को खत्म करके 100 फीसदी कर दिया है.
रबी खरीद सीजन 2024-25 के लिए अपनी गैर-मूल्य सिफारिशों में, सीएसीपी ने ऐसी मंशा जाहिर की है कि खेत के आकार के आधार पर किसानों को इस्तेमाल की जाने वाली सब्सिडी वाली यूरिया बैग की संख्या पर एक उपयुक्त सीमा लगाई जा सकती है. ताकि यूरिया का अत्यधिक उपयोग न किया जा सके और खाद के उपयोग में असंतुलन को नियंत्रित किया जा सके. जिससे खेती की सेहत खराब न हो.
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यह देखते हुए कि भारत में उर्वरक का उपयोग अत्यधिक असंतुलित है, सीएसीपी ने कहा कि लगभग 25 प्रतिशत जिलों में 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से गंभीर पर्यावरणीय संकट पैदा हो रहा है. जबकि लगभग 17 प्रतिशत जिलों में 50 किलोग्राम से कम की कम खपत है. इसके अलावा, खाद के अनुपात में भी असंतुलन होता है.
आयोग की सिफारिश है कि किसानों को उर्वरकों के संतुलित उपयोग के बारे में शिक्षित करने के लिए विशेष जागरूकता अभियान शुरू किया जाना चाहिए. अधिक उपयोग वाले जिलों में उर्वरक की खपत को कम करना और कम उपयोग वाले क्षेत्रों में उर्वरक के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए. इसमें कहा गया है, "राज्यों को अभियानों और क्षेत्र-स्तरीय प्रदर्शनों के माध्यम से नैनो उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए. जिससे उर्वरक सब्सिडी को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी."
इसके अलावा, सीएसीपी ने कहा कि दालों का उत्पादन देश के कुछ राज्यों और जिलों में केंद्रित है. इसने सिफारिश की कि दलहन, विशेष रूप से मसूर, अरहर/तूर, और उड़द की खेती पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में उपलब्ध चावल-परती भूमि में की जा सकती है. इसके साथ-साथ क्षेत्रों में उड़द और मूंग की ग्रीष्मकालीन खेती को बढ़ावा देने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है.
इसके अलावा, खुले बाजार में मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खरीदी गई दालों की एमएसपी से नीचे बिक्री से बाजार की कीमतें कम हो जाती हैं. आयोग की सिफारिश है कि पीएसएस के तहत खरीदी गई दालों के निपटान के लिए एक नीति बनाई जानी चाहिए और एमएसपी से नीचे नहीं बेची जानी चाहिए.
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