बंगाल की जूट मिलें प्रभावित (सांकेतिक तस्वीर)पश्चिम बंगाल के जूट उद्योग पर इस समय गहरा संकट मंडरा रहा है. कच्चे जूट की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद राज्य की कई जूट मिलों ने अपना उत्पादन तेजी से घटा दिया है. हालात ऐसे हैं कि कई मिलें अपने पुराने और लंबे समय के सप्लाई कॉन्ट्रैक्ट तक पूरे नहीं कर पा रही हैं. उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, कच्चे जूट की कीमत 1,10,000 रुपये प्रति टन के पार चली गई है. यह अब तक का सबसे ऊंचा स्तर माना जा रहा है.
इससे पहले जुलाई में यही जूट करीब 60,000 रुपये प्रति टन के आसपास मिल रहा था. कुछ ही महीनों में कीमत लगभग दोगुनी हो जाने से मिलों की लागत बेकाबू हो गई है. इसके साथ ही बाजार में कच्चा जूट बेचने वाले व्यापारी और स्टॉकिस्ट भी पीछे हट गए हैं. उन्हें उम्मीद है कि आगे कीमतें और बढ़ सकती हैं, इसलिए वे अपना माल रोककर बैठे हैं. जूट मिलों की हालत यह है कि कच्चा माल मिल ही नहीं रहा.
‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के हुगली औद्योगिक क्षेत्र में कई जूट मिलें हफ्ते में सिर्फ 10 से 15 शिफ्ट ही चला पा रही हैं, जबकि सामान्य और टिकाऊ संचालन के लिए इससे कहीं ज्यादा शिफ्ट जरूरी होती हैं. जिन मिलों के पास थोड़ा-बहुत स्टॉक है, वे भी डर के कारण जूट बचाकर इस्तेमाल कर रही हैं, ताकि आगे पूरी तरह ठप होने से बचा जा सके.
इस संकट की एक बड़ी वजह बांग्लादेश का हालिया फैसला माना जा रहा है. बांग्लादेश सरकार ने 8 सितंबर 2025 से कच्चे जूट के निर्यात पर अचानक रोक लगा दी. इसके बाद भारतीय बाजार में जूट की सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हो गई और कीमतों में असामान्य उछाल देखने को मिला. भारतीय जूट उद्योग लंबे समय से बांग्लादेश से कच्चे जूट पर निर्भर रहा है, ऐसे में यह झटका बेहद गंभीर साबित हो रहा है.
इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (IJMA) के चेयरमैन राघवेंद्र गुप्ता ने इस पूरे मामले को लेकर केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा है कि बांग्लादेश के इस कदम ने कच्चे माल की सप्लाई अचानक तोड़ दी है. इससे मिलों पर भारी वित्तीय जोखिम पैदा हो गया है और कच्चे जूट की कीमतें असामान्य रूप से बढ़ गई हैं. गुप्ता ने कहा कि इसका असर सिर्फ मिलों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि रोजगार और पूरे जूट वैल्यू चेन की स्थिरता पर भी खतरा पैदा हो गया है.
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कुछ जूट मिलें पहले ही अस्थायी रूप से बंद हो चुकी हैं. कई अन्य मिलों ने काम के घंटे और शिफ्ट काफी कम कर दिए हैं. बड़ी संख्या में मिलें अब सिर्फ न्यूनतम स्तर पर काम कर रही हैं. अगर हालात नहीं सुधरे तो आने वाले हफ्तों में यह संकट और गहराने की आशंका है. हालांकि, सरकार और उद्योग के बीच जूट एडवाइजरी ग्रुप की बैठकों में बार-बार कच्चे जूट की कमी, जमाखोरी और कीमतों में उतार-चढ़ाव पर चर्चा हुई है.
मांग को कम करने और स्टॉक कंट्रोल जैसे उपायों पर भी बात हुई, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका असर अब तक नजर नहीं आया है. उद्योग का आरोप है कि निगरानी और सख्त अमल की कमी के चलते हालात बिगड़ते चले गए. IJMA ने एक और अहम मुद्दा उठाया है.
IJMA ने कहा है कि बांग्लादेश आज भी अपनी जूट खेती और निर्यात के लिए भारत पर निर्भर है, खासकर हाई यील्डिंग वैरायटी यानी HYV जूट बीजों के मामले में. इसके बावजूद वह भारतीय मिलों को कच्चा जूट देने से इनकार कर रहा है. संगठन का मानना है कि यह द्विपक्षीय व्यापार में असंतुलन और अन्याय की स्थिति है.
इसी वजह से आईजेएमए ने भारत सरकार से बांग्लादेश को जूट बीज, खासकर HYV किस्मों के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग की है. संगठन का कहना है कि इससे देश में बीजों की उपलब्धता बनी रहेगी, किसानों के हित सुरक्षित होंगे और दोनों देशों के बीच जूट व्यापार में संतुलन और बराबरी लौटाई जा सकेगी.
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