भारी मात्रा में धान की आवक और धीमी रफ्तार से उठान के कारण ये हर साल की कहानी है कि अंबाला की अनाज मंडियों में धान की नई आवक के लिए जगह कम पड़ जाती है. ऐसे हालात से न केवल किसानों को असुविधा होती है, क्योंकि उन्हें अपनी उपज उतारने के लिए इंतजार करना पड़ता है, बल्कि भुगतान में भी देरी होती है. बता दें कि रविवार शाम तक अंबाला की 15 अनाज मंडियों और खरीद केंद्रों पर खरीदे गए कुल स्टॉक का केवल 41 प्रतिशत ही उठाया जा सका. इन अनाज मंडियों और खरीद केंद्रों पर 1.95 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान की आवक हो चुकी है, जिसमें से 1.53 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान, खरीद एजेंसियों द्वारा खरीदा जा चुका है और 63,418 मीट्रिक टन से अधिक धान का उठाव किया जा चुका है.
दरअसल, कटाई अपने चरम पर होने के कारण, अनाज मंडियों में आवक अच्छी-खासी है, लेकिन उठान धीमा है. इससे मंडियों में जगह की कमी हो रही है. इसके अलावा, कई किसान अधिक नमी वाली उपज लेकर आते हैं, जिसके कारण उसे सुखाने के लिए अनाज मंडियों में अधिक समय तक रखा जाता है, जिससे अन्य किसानों के अनाज के लिए जगह नहीं बचती. धान की खरीद के लिए नमी की स्वीकार्य सीमा 17 प्रतिशत है, लेकिन अनाज मंडियों में आने वाले स्टॉक में अक्सर 22 प्रतिशत तक नमी होती है.
अंग्रेजी अखबार 'द ट्रिब्यून' की रिपोर्ट के अनुसार, अनाज मंडी के अधिकारियों ने दावा किया कि उठान की प्रक्रिया में देरी और भारी स्टॉक , जो कि अक्सर ज़्यादा नमी के साथ आ रहा है, के कारण जगह की कमी हो गई है. हालांकि, उन्होंने आगे बताया कि स्थिति में सुधार हो रहा है. अधिकारियों ने बताया कि पहले, हाथ से कटाई के कारण, फसलें कई दिनों तक खेतों में रहती थीं, जिससे नमी की सही मात्रा बनी रहती थी. उन्होंने आगे बताया कि मशीन से कटाई के कारण फसलें तुरंत मंडियों में पहुंच जाती थीं. उन्होंने आगे बताया कि किसानों से आग्रह किया गया था कि वे अपनी उपज नियमों के अनुसार लाएं ताकि स्टॉक की समय पर खरीद हो सके और एमएसपी में कोई कटौती न हो.
किसानों को इस बात की शिकायत है कि उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. ऊपर से प्रतिकूल मौसम भी चिंता का विषय बन गया है. दक्षिणी चावल के काले धारीदार बौने वायरस, जलभराव और झूठी कंड (फाल्स स्मट) के कारण किसान पहले ही नुकसान झेल चुके हैं और सोमवार की बारिश ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं.
किसानों का कहना है कि तैयारी और व्यवस्थाओं की कमी के कारण उन्हें हर साल ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ता है. उनका कहना है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खरीद सीजन शुरू होने से पहले परिवहन, कमीशन एजेंटों और चावल मिल मालिकों से जुड़े मुद्दों का समाधान हो जाए और उन्हें अपनी उपज एमएसपी से कम पर बेचने के लिए मजबूर न होना पड़े.
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