नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ जौ भी बोया जाता है. ऐसी मान्यता है कि माँ दुर्गा को जौ काफी प्रिय है. जिस वजह से जौ उन्हें भोग लगाने के मकसद से बोया जाता है. नवरात्रि में कलश के सामने मिट्टी में जौ को बोया जाता है. इतना ही नहीं 9 दिनों तक जौ की पूजा और विशेष देखभाल भी की जाती है. 9 वें दिन जब जौ बड़ा हो जाता है तो उसे काट लिया जाता है और भक्तों में बांट दिया जाता है. ऐसे में आइए आज जानते हैं क्या है नवरात्रि में जौ बोने की मान्यता के पीछे की पूरी कहानी-
जौ के पौधे को अधिकांश जगहों पर जयंती कहा जाता है. इतना ही नहीं जौ को अन्नपूर्णा देवी भी माना जाता है. माता के साथ जयंती और अन्नपूर्णा देवी की पूजा भी की जाती है. इस वजह से भी जौ का अपना महत्व है. कहते हैं कि जौ के पौधे जितने बड़े होते हैं देश में खुशहाली और हरियाली भी उतनी बढ़ती है. मान्यता यह भी है कि सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहले जौ फसल हुई थी. इसे पूर्ण फसल भी कहते हैं. हिन्दू शास्त्रों में जौ को ब्रम्हा माना गया है. इसलिए भी नवरात्रि में इसकी पूजा की जाती है.
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किसी भी पूजा-पाठ में हवन में जौ की आहुति दी जाती है. कृषि व्यवस्था से जोड़कर अगर नवरात्रि में जौ बोने की मान्यता को देखें तो नवरात्रि में जौ बोने से वर्षा, फसल और व्यक्ति के भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है. कहते हैं कि अगर उचित आकार और लंबाई में जौ नहीं उगे तो उस साल बारिश और फसल कम होती है. जिसका असर पूरे देश पर पड़ता है. मान्यता है कि यदि जौ के अंकुर 2 से 3 दिन में आ जाएं तो यह बहुत ही शुभ होता है और यदि जौ नवरात्रि के अंत तक न उगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है. हालांकि, कई बार ऐसा भी होता है कि अगर सही तरीके से जौ की बुवाई नहीं होती है, तो भी जौ नहीं उगता है. ऐसे में जौ की बुवाई करते समय ध्यान रखें.
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