Explained: क्या है गन्ने का FRP? जानिए किसानों को कैसे मिलता है ‘उचित और लाभकारी मूल्य’ और कौन तय करता है इसकी दर

Explained: क्या है गन्ने का FRP? जानिए किसानों को कैसे मिलता है ‘उचित और लाभकारी मूल्य’ और कौन तय करता है इसकी दर

गन्ने और एफआरपी का रिश्ता उतना ही गहरा है जितना किसान और खेत का — सरकार तय करती है दर, लेकिन भुगतान करती हैं चीनी मिलें. रिकवरी रेट, लागत और नीति आयोग की सिफारिशों से तय होता है किसानों का यह ‘फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस’.

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क्या है गन्ने का FRP? जानिए किसानों को कैसे मिलता है ‘उचित और लाभकारी मूल्य’किसानों को गन्ने का उचित दाम दिलाता है एफआरपी

गन्ना और FRP, दोनों सहोदर भाई हैं. यानी एक के बिना दूसरे की कल्पना बेमानी है. अब आप कहेंगे कि गन्ना, गन्ने की खेती तो जानते हैं, पर एफआरपी के बारे में जानकारी थोड़ी तंग है. वहीं, आप एक बात और कहेंगे कि गन्ना तो खूब सुना है, और एफआरपी भी सुना है. मगर इसका ठीक-ठीक मायने नहीं पता. कोई बात नहीं, हम आपको एफआरपी के बारे में बता देते हैं.

FRP बोले तो फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (Fair and Remunerative Price). इसका हिंदी है 'उचित और लाभकारी मूल्य'. यानी गन्ने की फसल को मिलने वाला उचित और लाभकारी दाम ही एफआरपी है. तभी गन्ना किसान सबसे ज्यादा अगर दबाव किसी बात पर देते हैं, तो वह है FRP. 

कौन देता है एफआरपी

जान लें, यह एफआरपी कोई सरकार नहीं देती बल्कि चीनी मिलें देती हैं जहां किसान अपना गन्ना पेराई के लिए देता है. यहां एक तकनीकी पहलू और समझ लें-चीनी मिलें भले एफआरपी देती हैं, मगर इसका निर्धारण सरकारें करती हैं. सरकार घोषित करती है कि फलां राज्य में गन्ने का एफआरपी इतना होगा. फिर उस एफआरपी को देने के लिए चीनी मिलें बाध्य होती हैं.

इस एफआरपी का नाम आते ही आपके दिमाग में एमएसपी (MSP) का भी नाम आता होगा. आना भी चाहिए क्योंकि दोनों का मिजाज लगभग एक जैसा है. बस अंग्रेजी और हिंदी में नाम अलग-अलग है. एफआरपी का मकसद भी किसान को उचित दाम दिलाना है, एमएसपी का उद्देश्य भी किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाना है. ताकि किसान को अपनी फसल की लागत निकालने के लिए न जूझना पड़े. हालांकि इन दोनों की गणना में बड़ा फर्क है और थोड़ा पेचीदा भी.

कैसे तय होता है FRP?

ये तो हमने जान लिया कि एफआरपी, एमएसपी की तरह ही वह न्यूनतम दाम है जिसे किसानों को भुगतने के लिए चीनी मिलें बाध्य हैं. अब ये जानते हैं कि चीनी मिलें एफआरपी कैसे तय करती हैं. दरअसल, इसका निर्धारण केंद्र सरकार की ओर से होता है जिसका फैसला सरकार अक्सर कैबिनेट की बैठक में लेती है. फिर उसका ऐलान होता है. इसमें वाणिज्य मंत्रालय का अहम रोल होता है.

इसका निर्धारण कुछ खास बातों पर ध्यान रखते हुए किया जाता है. जैसे, 2025-26 सीजन के लिए एफआरपी में 4.41 फीसद की वृद्धि की गई है. सरकार का कहना है कि गन्ने की खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए एफआरपी में वृद्धि की गई है. हालांकि किसान इससे खुश नहीं हैं, और वे एफआरपी अधिक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.

एफआरपी और चीनी का रिकवरी रेट

एफआरपी का निर्धारण पूरी तरह से इस बात पर तय होता है कि गन्ने से चीनी कितनी निकली. इसे टेक्निकल टर्म में रिकवरी रेट कहते हैं. अभी यह रिकवरी रेट 10.25 परसेंट है. यानी कोई भी चीनी मिल गन्ने से जब इतनी चीनी हासिल करेगी तो वह किसान को 355 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करेगी. इतना ही नहीं, अगर गन्ने से चीनी की रिकवरी अधिक होती है तो एफआरपी भी अधिक मिलेगी. अगर रिकवरी कम होती है तो एफआरपी में कटौती होगी. 

सरकारी नियम के मुताबिक, गन्ने से 10.25 प्रतिशत से अधिक रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की वृद्धि के लिए 3.46 रुपये प्रति क्विंटल का प्रीमियम किसान को दिया जाएगा. जबकि रिकवरी में प्रत्येक 0.1 प्रतिशत की कमी के लिए एफआरपी में 3.46 रुपये प्रति क्विंटल की कमी की जाएगी.

हालांकि, गन्ना किसानों की कमाई को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि जिन चीनी मिलों की रिकवरी 9.5 प्रतिशत से कम है, उनके मामले में कोई कटौती नहीं की जाएगी. ऐसे किसानों को 2025-26 के आगामी सीजन में गन्ने के लिए 329.05 रुपये प्रति क्विंटल मिलेंगे.

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