
भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले एमएस स्वामीनाथन का 98 साल की उम्र में बृहस्पतिवार को निधन हो गया. स्वामीनाथन की ही बनाई गई रिपोर्ट पर इस वक्त किसान राजनीति को धार मिल रही है. किसानों के हालात सुधारने के लिए 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने एक आयोग का गठन किया था, जो आगे चलकर स्वामीनाथन आयोग के नाम से लोकप्रिय हो गया. आयोग ने दो साल में सरकार को पांच रिपोर्ट सौंपी. जिसमें 201 सिफारिशें थीं. लेकिन सबसे चर्चित सिफारिश न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से संबंधित थी. जिसमें किसानों को 'सी2+50% फॉर्मूले' पर एमएसपी देने की बात कही गई थी. 'किसान तक' से बातचीत में इसी आयोग के पहले अध्यक्ष रहे जानेमाने अर्थशास्त्री और राजनेता सोमपाल शास्त्री ने कहा कि यह सिफारिश आज तक लागू नहीं है.
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बहरहाल, आयोग ने 4 अक्टूबर 2006 अपनी सभी पांच रिपोर्टें सरकार को सौंप दी थीं. लेकिन तत्कालीन सरकार इसे दबाकर बैठी रही. शास्त्री ने कहा कि किसान आयोग का अध्यक्ष रहते हुए मैंने भी अपनी फाइल पर फसलों की सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी तय करने की बात लिखी थी. बाद में मैंने आयोग से इस्तीफा दे दिया. फिर इस आयोग के अध्यक्ष डॉ. एमएस स्वामीनाथन बने. जिसे आजकल स्वामीनाथन आयोग के नाम से पुकारा जाता है.
शास्त्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री रह चुके हैं. उनका कहना है कि सी-2 लागत के आधार पर ही एमएसपी तय की जानी चाहिए. यह मोदी सरकार का वादा भी रहा है. सी 2 लागत (कॉम्प्रिहेंसिव कॉस्ट) के तहत नकदी और गैर नकदी खर्चों के साथ-साथ जमीन का किराया और सारे खर्चों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है. जब 2019 का चुनाव आना शुरू हुआ तब उससे पहले 2018 में सरकार ने दावा कर दिया कि हमने तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू कर दी है. जबकि यह सच नहीं है.
जब 2013-14 में भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता की ओर अग्रसर हो रही थी, उस वक्त उसके नेताओं का सबसे बड़ा वादा यही था कि हम सत्ता में आए तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू किया जाएगा. लेकिन, दुख की बात यह है कि सरकार सी-2 की बजाय ए2+एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी लाभ जोड़कर एमएसपी तय कर रही है. यह ठीक नहीं है. सी-2 आधार पर एमएसपी देने का वादा किया और दे रहे हैं दूसरे फार्मूले से. सही फार्मूले से एमएसपी मिले तो किसानों की आय बढ़ेगी. उन्हें उपज का ज्यादा दाम मिलेगा.
स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट पर शास्त्री ने कहा कि विडंबना यह है कि जब सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई तब उसके उत्तर में वर्तमान सरकार ने यह कह दिया था कि केंद्र के पास जितने वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं उसमें सी-2 वाली बात व्यवहारिक नहीं है. इसे किया नहीं जा सकता. तो पहला सवाल तो यह है कि अगर सी-2 लागत के आधार पर एमएसपी नहीं दी जा सकती थी तब आपने किसानों से इतना गैर जिम्मेदाराना वादा क्यों किया कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू होगी.
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आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भूमि सुधारों पर भी जोर दिया था. भूमिहीनों को जमीन देने की बात कही थी. अन्य बातों के साथ-साथ यह भी सिफारिश की थी कि “जहां कहीं भी व्यवहार्य हो भूमिहीन कृषक परिवारों को प्रति परिवार न्यूनतम एक एकड़ भूमि उपलब्ध कराई जानी चाहिए. जो उन्हें घरेलू उद्यान, पशुपालन के लिए स्थान उपलब्ध कराएगी.”
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश थी कि कृषि को राज्यों की सूची के बजाय समवर्ती सूची में लाया जाए. ताकि केंद्र व राज्य दोनों किसानों की मदद के लिए आगे आएं और समन्वय बनाया जा सके. किसानों के लिए कृषि जोखिम फंड बनाने की सिफारिश की थी, ताकि प्राकृतिक आपदाओं के आने पर किसानों को मदद मिल सके.
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ सिफारिश की थी कि किसानों के कर्ज की ब्याज दर 4 प्रतिशत तक लाई जाए और अगर वे कर्ज नहीं दे पा रहे हैं तो इसकी वसूली पर रोक लगे. किसान आत्महत्या की समस्या के समाधान, राज्य स्तरीय किसान कमीशन बनाने और बीमा की स्थिति पुख्ता बनाने पर भी आयोग ने जोर दिया था. बहरहाल, अगर उनकी सिफारिशों को पूरी तरह से लागू कर दिया जाए तो कोई दो राय नहीं कि खेत और किसान दोनों के हालात सुधर जाएंगे.
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