खतरनाक रासायनिक उत्पादों के इस्तेमाल से खेतों में मिट्टी की उर्वरा शक्ति तेजी से घट रही है. इसका असर उत्पादन में गिरावट के रूप में दिखने लगा है. किसानों को नुकसान से बचाने के लिए सरकार भी किसानों का साथ दे रही है. वहीं, दूसरी ओर देश में बहुत से किसान प्राकृतिक खेती को कर रहे हैं जिससे उन्हें बेहतर उत्पादन भी मिल रहा है. प्राकृतिक खेती जिसे नेचुरल फार्मिंग भी कहा जाता है. आसान भाषा में अगर हम इसे समझें तो जो खेती हमे करनी है वो प्रकृति के साथ और रसायन मुक्त हो. ऐसे में आइए जानते हैं प्राकृतिक खेती के 5 बड़े लाभ क्या है.
बेहतर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद: प्राकृतिक खेती में सिंथेटिक रसायनों का उपयोग नहीं होता है, इसलिए प्राकृतिक खेती से उपज वाली सामानों को खाने से कई प्रकार के स्वास्थ्य जोखिम समाप्त हो जाते हैं. भोजन में उच्च पोषण होता है इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है.
प्राकृतिक खेती से उपज में सुधार: प्राकृतिक खेती को क्यों फायदे का सौदा कहा जा रहा है, जबकि सामान्य खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होता है. ये बात सच है, लेकिन उत्पादन की चिंता थोड़े समय के लिए होती है. प्राकृतिक खेती से उत्पादन में कमी दर्ज की गई है, लेकिन ऐसा शुरू के कुछ सालों के लिए ही होता है. लेकिन तीन से चार साल में किसान प्राकृतिक खेती से सामान्य खेती की तरह उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
प्राकृतिक खेती से रोजगार सृजन: प्राकृतिक खेती इनपुट उद्यमों, कीमतों में कमी, स्थानीय क्षेत्रों में खरीद आदि के कारण रोजगार उत्पन्न करती है.
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं: प्राकृतिक खेती में किसानों को सिंथेटिक उर्वरकों, विशेष रूप से यूरिया, कीटनाशकों, खरपतवारनाशियों आदि का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए. इससे मिट्टी में रहने वाले जीव संरचना बदल जाती है और इसके बाद मिट्टी की कार्बन क्षमता और उर्वरता में कमी आती है.
प्राकृतिक खेती से आय में वृद्धि: प्राकृतिक खेती का उद्देश्य लागत में कमी, कम जोखिम, सामान उपज, अंतर फसल से आय के कारण किसानों की शुद्ध आय में वृद्धि करना है. आंकड़ों के अनुसार, प्राकृतिक खेती से किसानों के लागत में तीन गुणा कमी आई है और कमाई बढ़ी है.
केंद्र सरकार ने हाल में 'नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग' की शुरुआत की है. इस मिशन में देश के 1 करोड़ किसान जोड़े जाएंगे और उन्हें प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दी जाएगी. इस मिशन पर सरकार 2481 करोड़ रुपये खर्च करेगी. इसके लिए देश की ग्राम पंचायतों का चयन किया जाएगा जहां यह स्कीम चलेगी. कृषि संस्थानों के माध्यम से किसानों को ट्रेनिंग देकर उन्हें प्राकृतिक खेती के लिए तैयार किया जाएगा.
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