Stubble Burning: हरियाणा के किसान हुए समझदार! पराली मैनेजमेंट में निकले सबसे आगे 

Stubble Burning: हरियाणा के किसान हुए समझदार! पराली मैनेजमेंट में निकले सबसे आगे 

कृषि विभाग का मुख्य लक्ष्य पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाना है. किसानों को इस समय सीमित बेलर मशीनों और त्योहारों के दौरान मजदूरों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक बेलर मशीन के सही ऑपरेशन के लिए 25 से 30 मजदूरों की जरूरत होती है, लेकिन मौजूदा कमी के कारण कई किसान अब इन-सीटू प्रबंधन तरीकों की ओर रुख कर रहे हैं.

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Stubble Burning: हरियाणा के किसान हुए समझदार! पराली मैनेजमेंट में निकले सबसे आगे हरियाणा के किसानों ने किया पराली का सही इंतजाम (सांकेतिक तस्‍वीर)

कृषि और किसान कल्याण विभाग, करनाल ने इस सीजन में इन-सीटू पराली प्रबंधन के तहत अपने क्षेत्र को बढ़ाकर लगभग 1.5 लाख एकड़ कर दिया है, जो पिछले साल करीब 1 लाख एकड़ था. वहीं, एक्स-सीटू मैनेजमेंट के तहत क्षेत्र घटकर 2.75 लाख एकड़ से 2.25 लाख एकड़ रह गया है. सीटू में इजाफा यह बताता है कि किसानों में पर्यावरणीय और कृषि संबंधी फायदों को लेकर जागरूकता बढ़ी है. इन-सीटू अवशेष प्रबंधन के तहत धान की पराली को जलाने के बजाय मिट्टी में मिलाया जाता है. 

मशीनों की उपलब्‍धता से सुविधा 

अधिकारियों का कहना है कि इन-सीटू मैथेड न सिर्फ पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करता है. बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने, नमी बनाए रखने और उसमें जैविक तत्वों की मात्रा सुधारने में भी मदद करती है. अखबार ट्रिब्‍यून ने कृषि उपनिदेशक (डीडीए) डॉक्‍टर वजीर सिंह के हवाले से लिखा है, 'करनाल के किसान इन-सीटू और एक्स-सीटू दोनों तरह के प्रबंधन के प्रति उत्साह दिखा रहे हैं. लगातार चलाए जा रहे अवेयरनेस कैंपेन, फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनों की आसान उपलब्धता और तकनीकी मार्गदर्शन ने किसानों को टिकाऊ कृषि पद्धतियां अपनाने के लिए प्रेरित किया है.' 

पराली का सही प्रयोग 

उन्होंने बताया कि जिले में करीब 3,500 सुपर सीडर, 900 मल्चर और 350 यूनिट बेलर, कटर और हे रेक जैसी मशीनें उपलब्ध हैं. इससे इन-सीटू और एक्स-सीटू दोनों प्रकार के पराली प्रबंधन के लिए पर्याप्त मशीनरी सहायता मिल रही है. विभाग का अनुमान है कि इस सीजन में करीब 8.5 लाख मीट्रिक टन धान की पराली का प्रबंधन इन-सीटू और एक्स-सीटू दोनों तरीकों से किया जाएगा. इसमें से 1 लाख मीट्रिक टन पराली पशु चारे के रूप में इस्तेमाल होने की उम्मीद है, 2.5 लाख मीट्रिक टन मिट्टी में मिलाई जाएगी और बाकी 5 लाख मीट्रिक टन बेलर के रूप में उपयोग की जाएगी, जिसे आगे शराब, बायोएर्जी और बाकी इंडस्‍ट्रीज को सप्‍लाई किया जाएगा. 

अपने लक्ष्‍य की तरफ बढ़ता विभाग 

सिंह ने जोर देकर कहा कि विभाग का मुख्य लक्ष्य पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाना है. किसानों को इस समय सीमित बेलर मशीनों और त्योहारों के दौरान मजदूरों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एक बेलर मशीन के सही ऑपरेशन के लिए 25 से 30 मजदूरों की जरूरत होती है, लेकिन मौजूदा कमी के कारण कई किसान अब इन-सीटू प्रबंधन तरीकों की ओर रुख कर रहे हैं. किसान राजिंदर सिंह ने कहा, 'मैं पराली प्रबंधन के लिए बेलर मशीन का इंतजार कर रहा था लेकिन बेलर मशीनें सीमित हैं. त्योहारों के मौसम में मजदूरों की कमी के कारण मैं पराली का सही तरीके से प्रबंधन नहीं कर पा रहा हूं. मेरे पास अब कोई और विकल्प नहीं है इसलिए मैं पराली को मिट्टी में मिलाने के लिए इन-सीटू तरीका अपना रहा हूं.' 

मजदूरों की कमी बड़ी समस्‍या 

एक और किसान कृष्ण ने बताया, 'मजदूरों की कमी के कारण बेलर मशीनों का इस्तेमाल करना मुश्किल हो गया. इसलिए हमने उसकी जगह मल्चर और सीडर का उपयोग करने का फैसला किया. सरकार की मदद और हमारी सहकारी समिति में मशीनों की उपलब्धता ने हमें पराली का कुशल प्रबंधन करने में मदद की.' भैनी खुर्द गांव के किसान संदीप कुमारजिन्होंने पराली को मिट्टी में मिलाया, ने कहा, 'सुपर सीडर के इस्तेमाल से हमारा काम आसान हो गया है और लंबे समय में यह ज्‍यादा फायदेमंद साबित हो रहा है. मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और हम खाद पर भी खर्च बचा रहे हैं. मैं किसानों से अपील करता हूं कि वे पर्यावरण के अनुकूल खेती के लिए इन-सीटू विधियों को अपनाएं.' 

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