पिछले कुछ दिनों में टमाटर और अन्य सब्जियों के दामों में ज़बरदस्त तेज़ी आने से एक बार फिर आम शहरी का ध्यान किसानों और कृषि पर गया है. अक्सर शहर में रहने वाले लोग, भोजन, फल वगैरह खाते हुए किसानों के बारे में कम ही सोचते हैं, क्योंकि हमें तो ये सब चीज़ें बाज़ार से मिलती हैं, सीधे किसानों से नहीं. कभी चेरी, सेब या आड़ू खाते हुए यह नहीं सोचा कि इन्हें उगाने वाले किसान किस तरह से इन्हें उगाते हैं, तेज़ धूप और बारिश से बचाते हैं और फिर इन्हें तोड़ने का भी एक अलग तरीका होता है.
2022 में आई एक स्पेनिश, केटलैन फिल्म ‘अल्केर्रास’ ने एक सरल लेकिन हृदयस्पर्शी कहानी के जरिए न सिर्फ आड़ू जैसे फल उगाने वाले किसानों की आपबीती को लोगों के सामने रखा बल्कि तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के बीच परंपरागत जीवन शैली के मिटते जाने की मार्मिक प्रक्रिया को भी प्रभावपूर्ण तरीके से दिखाया.
चलिए पहले बात करते हैं स्पेन में सिनेमा के इतिहास की. स्पेन एक ऐसा यूरोपीय देश है, जिसका आधुनिक साहित्य और सिनेमा गृहयुद्ध और तानाशाही से बहुत प्रभावित और सीमित भी रहा. 1975 में लोकतंत्र स्थापित होने के बाद ही स्पेन के सिनेमा में नए और रचनात्मक प्रयोग हुए. वैसे स्पेन में सबसे पहले फिल्में बनी थीं 1897 में.
मारियो कामू, फ्रांसिस्को रेगिएरो, कार्लोस सौरा और लुइस बुनेल स्पेन के कुछ ऐसे फिल्म निर्देशक हैं जिनकी फिल्मों ने दुनिया भर में अपनी एक अलग पहचान बनाई. तानाशाही के दौरान बहुत से स्पेनिश फिल्म निर्देशक विदेश में रह कर तमाम दिक्कतों के बावजूद अपने देश के हालात के बारे में फिल्में बनाते रहे.
बहरहाल, इक्कीसवीं सदी की शुरुआत से ही स्पेन की कुछ महिला निर्देशकों ने महत्वपूर्ण काम किया है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है. ऐसी ही एक निर्देशक हैं कार्ला सिमोन. कार्ला युवा हैं और अपने जीवन से करीब की कहानियां फिल्मों के माध्यम से कहती हैं. ‘अल्केर्रास’ भी ऐसा ही एक प्रयास है. अल्केर्रास स्पेन के केटलैन क्षेत्र में एक छोटा सा कस्बा है.
कार्ला को ये कहानी तब सूझी, जब उनके दादा के अंतिम क्रिया संस्कार के लिए अपने गांव गईं . वहां उन्होंने देखा कि उनके बचपन की जगहें धीरे-धीरे बदल रही हैं. ज़्यादातर किसान ज़मीन बेच कर शहर की तरफ रुख कर रहे हैं और जो वहां हैं, वे भी धीरे-धीरे आधुनिकता के तौर-तरीके अपना रहे हैं. तब ये सवाल मन में कौंधा, “ये जो हमारी जगह है, जिसमें हमारी यादें, हमारा अतीत रहता है, वह कल नहीं होगी तो क्या होगा?”
इस सवाल ने ‘अल्केर्रास’ की कहानी और उसके किरदारों को जन्म दिया. कहानी के केंद्र में है, आड़ू की परंपरागत खेती करने वाला एक किसान परिवार जो पीढ़ियों से यही काम करता आया है. निर्देशक कार्ला सिमोन का कहना है कि फलों और अनाज की खेती करने वाले किसानों की शख्सियत में काफी फर्क होता है. फलों के किसान हर मौसम में अपने बागीचे और फल के पेड़ों को लेकर चिंतित रहते हैं जबकि अनाज के किसान अपेक्षाकृत तनाव रहित होते हैं और अनाज के दाम भी फलों की अपेक्षा अधिक स्थिर होते हैं.
हां, तो कहानी है किमेत सोल नाम के किसान और उसके बड़े से परिवार की, जो पीढ़ियों से अल्केर्रास मेँ आड़ू की खेती करता आया है. उसके बड़े होते हुए बच्चे आधुनिक चीजों के शौकीन हैं जबकि छोटी बेटी आइरिस अपने दोस्तों के साथ बागीचे के एक सिरे पर एक बेकार पड़ी कार मेँ काल्पनिक खेलों मेँ मग्न रहती है. अचानक एक दिन ये छोटे बच्चे देखते हैं कि एक विशाल क्रेन उस कार को हटा रही है.
एक जगह जहां बरसों से कुछ भी नहीं बदला, यह एक बड़े बदलाव का संकेत है. सोल परिवार को पता चलता है कि जहां उनके आड़ू के बाग हैं, वहां अब सोलर पैनल लगने वाले हैं. किमेत परेशान होकर अपने पिता रोजीलियो से पूछता है कि जब ये ज़मीन उन्हें बरसों पहले दे दी गयी थी तो कोई और उनकी ज़मीन कैसे बेच सकता है?
रोजीलियो ने तो ज़मीन के मालिक की ज़बान पर ही भरोसा किया था. उसके पास कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं था. यह बताने के लिए कि आड़ू के बागों वाली ज़मीन सोल परिवार की ही है. अब ज़मीन के मूल मालिक पिन्योल ने यह ज़मीन सरकार को बेचने का फैसला कर लिया है ताकि वहां सोलर पैनल लगाए जा सकें. तो, इस परिवार के पास बस आड़ू की आखिरी फसल को तोड़ने तक का ही वक्त है, उसके बाद यह ज़मीन सरकारी हो जाएगी.
ये भी पढ़ें:- Tingya: एक बच्चे के जरिए महाराष्ट्र के किसानों की दशा दिखाती है ये कहानी
जो छूट रहा है उसे न रख पाने की मजबूरी, खेती के पुश्तैनी व्यवसाय को छोड़ देने की बाध्यता के बीच बड़े होते बच्चे और इस तनाव के बीच पारिवारिक रिश्ते, फिल्म यह सब बखूबी से दिखाती है. और इस अर्थ में यह फिल्म केवल स्पेन के किसानों की नहीं बल्कि दुनिया भर के किसानों की व्यथा कहती है.
कार्ला ने इस फिल्म के लिए सभी अव्यवसायिक लोगों को अभिनय के लिए चुना. मुख्य किरदार किमेत की भूमिका निभाई योर्डी पुयोल डोलचे ने जो खुद एक किसान हैं, उनकी पत्नी डोलोरस की भूमिका में थीं अना ओतिन, जो एक अध्यापक हैं, किमेत के पिता के रोल में थे जोसफ अबाद, ये भी अल्केर्रास निवासी हैं. इसी कस्बे के बच्चों को भी परिवार के बच्चों की भूमिका में रखा गया. कार्ला की बहन बेर्टा पीपो के अलावा सभी किरदार अल्केर्रास निवासी ही थे, पेशेवर अभिनेता नहीं.
कार्ला ने अल्केर्रास में ही एक मकान किराए पर लिया और इन सभी लोगों को साथ रहने के लिए कहा ताकि उनमें एक पारिवारिक सा संबंध बन सके. बाद में, अना ओतिन ने एक इंटरव्यू में बताया कि एकाध महीने बाद इन सभी ‘किरदारों’ के बीच खास ‘बॉन्ड’ बन गई. “मैं और योर्डी फोन पर यह भी तय कर लेते थे कि आज लंच में हम क्या ला रहे हैं. अगर मैं ब्रेड लाती तो योर्डी कुछ और ले आते ताकि खाने में विविधता बनी रहे. इस तरह फिल्म में एक परिवार के साथ खाने और त्योहार मनाने के दृश्य बहुत नैचुरल हो गए.“
योर्डी ने भी बताया कि एक मकान में साथ रहने और अभिनय करने से जीवन के प्रति उनके नज़रिए में सकारात्मक बदलाव आया है. “जब हम फिल्म फ़ेस्टिवल्स में गए और फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद दर्शकों से मिले तो बहुत से अन्य देशों के किसानों ने बताया कि ये कहानी उनके जीवन से मिलती-जुलती है. वे भी नहीं चाहते कि उनके बच्चे किसानी करें और उनके कई परिचित गांव-खेती छोड़ कर शहर चले गए हैं. तब मुझे लगा कि अगर सभी ने खेती छोड़ दी तो अन्न कौन उगाएगा? सरकार और व्यवस्था को सुनिश्चित करना चाहिए कि किसान जहां हैं वहां रहें और अपने व्यवसाय को न छोड़ें.“
अना और योर्डी ने शूटिंग के दौरान एक दिलचस्प वाक्या साझा किया. सीन था –डोलोरस (अना) गुस्से में योर्डी को थप्पड़ मारती है. “संकोच के चलते मैं ठीक से थप्पड़ नहीं मार रही थी. इस सीन के 14 रीटेक हुए. मैं अब भी योर्डी से उसके लिए माफी मांगती हूँ. 15वें टेक के बाद जब सबने कहा ठीक है तो मेरी सांस में सांस आई. लेकिन तभी कार्ला ने कहा कि सेफ़्टी के लिए एक और टेक ले लेते हैं. मैंने साफ इंकार कर दिया.”
योर्डी ने भी बताया कि उस मौके को याद करके अब हंसी आती है लेकिन उस वक्त 15 थप्पड़ खाना बहुत ही मुश्किल था. अना आज भी एक अध्यापिका हैं, कभी-कभार कुछ प्रोजेक्ट आते हैं तो वे उनमें काम कर लेती हैं. योर्डी भी किसानी का काम कर रहे हैं, लेकिन अब अपने व्यवसाय को बदलने की सोच रहे हैं.
2022 में रिलीज़ हुई इस फिल्म ने यूरोपीय फिल्म जगत में धूम मचा दी. बर्लिन फिल्म फेस्टिवल के प्रतिष्ठित गोल्डन बीयर पुरस्कार के साथ अन्य अनेक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते और सबसे बड़ी बात ये कि यह बॉक्स ऑफिस पर भी बहुत बड़ी हिट साबित हुई. इस तरह फलों की खेती करने वाले किसानों के मुद्दों और एक बदलते परिवेश में परंपरागत पारिवारिक मूल्यों की प्रभावपूर्ण कहानी ‘अल्केर्रास’ एक यादगार फिल्म बन गई.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today