भारत के बीज कानून की खामियों का फायदा उठा रहे कुछ ब्रांड, खतरे में बासमती का GI स्टेटस

भारत के बीज कानून की खामियों का फायदा उठा रहे कुछ ब्रांड, खतरे में बासमती का GI स्टेटस

सालों के परीक्षणों के बावजूद, शक्ति सीड्स द्वारा बेचा जा रहा बासमती ब्रांड 'ताज हाइब्रिड' (आईईटी 28579) बार-बार आधिकारिक जांच में फेल होता रहा है. बावजूद इसके भी भारत के बीज कानून में खामियों के कारण ये अस्वीकृत बासमती बाजार में आ रही है. विशेषज्ञों ने इसको लेकर जताई बड़ी चिंता जताई है.

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भारत के बीज कानून की खामियों का फायदा उठा रहे कुछ ब्रांड, खतरे में बासमती का GI स्टेटसन्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाया ताज हाइब्रिड चावल

हैदराबाद स्थित शक्ति सीड्स द्वारा 'ताज हाइब्रिड' ब्रांड के तहत बासमती की अपनी किस्म को बढ़ावा देने के प्रयास ने यह उजागर कर दिया है कि किस तरह भारत के बीज कानून में खामियों के कारण अस्वीकृत बासमती बाजार में आ रही है और इससे देश के अनाज के दाम की अखंडता को खतरा पैदा हो रहा है. इसने यह भी उजागर किया कि कई बीज कंपनियां मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे गैर-भौगोलिक संकेत (जीआई) वाले राज्यों में बासमती के बीज बेच रही हैं. ये कंपनियां ऐसा मौजूदा कानून का फायदा उठाकर कर पा रही हैं, जिसके तहत बीज बेचने से पहले जीआई-विशिष्ट अनुमोदन की अनिवार्यता नहीं है.

जांच में खरा नहीं उतरा ताज हाइब्रिड

अंग्रेजी अखबार 'बिजनेसलाइन' द्वारा मूल्यांकन किए गए सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, सालों के परीक्षणों के बावजूद, ताज हाइब्रिड (IET 28579) बार-बार आधिकारिक जांच में खरा नहीं उतरा है. ICAR के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान की रिपोर्ट बताती है कि खाना पकाने के परीक्षणों में इसका प्रदर्शन खराब रहा, इसका बढ़ाव अनुपात कम था और उपभोक्ता पैनल स्कोर कमज़ोर था. किस्म पहचान समिति (VIC) ने इसे 2022, 2023 और इस साल फिर से अस्वीकार कर दिया.

सूत्रों ने बताया कि शक्ति सीड्स की ओर से लगातार अस्वीकृति का आरोप लगाए जाने के बाद, केंद्र ने पिछले महीने आईसीएआर के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) से ताज हाइब्रिड के बारे में रिपोर्ट मांगी थी. केंद्रीय बीज समिति की एक उप-समिति ने इस मामले पर विचार किया और इसे स्थगित रखने का फैसला किया.

ताज हाइब्रिड के बासमती में इतनी खामियां

अपनी ओर से, IIRR ने सरकार को सूचित किया है कि ताज हाइब्रिड का परीक्षण बासमती जीआई क्षेत्र में कई स्थानों पर अखिल भारतीय समन्वित चावल अनुसंधान परियोजना (AICRPR) के बासमती परीक्षण के तहत 2019 में प्रारंभिक वैरिएटल परीक्षण (IVT) में, 2020 में उन्नत वैरिएटल परीक्षण-1 (AVT1) में और 2021 के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा उन्नत वैरिएटल परीक्षण-2 (AVT2) में किया गया था.

IIRR ने कहा कि तीन साल के कठोर परीक्षण के बाद, यह पाया गया कि चावल की किस्म IET 28579 का बढ़ाव अनुपात कम (1.57) था और IARI (जिसे पूसा संस्थान के नाम से भी जाना जाता है) और बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान (BEDF) में किए गए पैनल परीक्षणों में इसे बहुत निचले पायदान पर रखा गया. कम बढ़ाव अनुपात और पैनल परीक्षणों में खराब रैंकिंग के कारण, 2022 में AICRPR की किस्म पहचान समिति (VIC) की बैठक में IET 28579 की पहचान की अनुशंसा नहीं की गई. 2023 और 2025 की VIC बैठक में भी, प्रस्ताव की फिर से जांच की गई और घटिया अनाज गुणवत्ता के कारण इसकी अनुशंसा नहीं की गई.

न्यूनतम आवश्यकताओं को नहीं कर पाया पूरा 

अगस्त में हुई वीआईसी की बैठक में, कार्यवृत्त दर्शाते हैं कि समिति ने प्रस्ताव की गंभीरता से जांच की और 2022, 2023 और 2024 की वीआईसी सिफारिशों पर भी विचार किया. वीआईसी ने कहा कि चूंकि प्रविष्टि (आईईटी 28579) बासमती अनाज की गुणवत्ता की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रही है, इसलिए इसकी पहचान नहीं की गई है. 

बासमती जीआई पर एकमात्र पुस्तक के लेखक एस चंद्रशेखरन ने कहा कि बासमती धान के बीज का बाजार ₹3,000 करोड़ से अधिक का है. जीआई की नींव भूमि और बीज से शुरू होती है. बासमती चावल की प्रामाणिकता और नाम को बनाए रखने के लिए, बासमती धान के बीज वितरण पर नियंत्रण और विनियमन आवश्यक है. डीएनए और आइसोटोप परीक्षण के अलावा प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन के बैचों के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया की आवश्यकता है.

जीआई रजिस्ट्री ने बासमती को मंजूरी देते हुए, इसके क्षेत्र को पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश (30 ज़िले) और जम्मू-कश्मीर के रूप में चिन्हित किया है. वहीं मध्य प्रदेश 2010 से अपने 13 ज़िलों को जीआई बासमती मानचित्र में शामिल करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहा है. व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, इस सुगंधित चावल की खेती राजस्थान के कुछ जिलों में भी फैल गई है, जहां किसान पूसा 1121 और पूसा 1509 किस्में उगा रहे हैं.

मौजूदा कानून में कहां है कमी

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, शक्ति सीड्स मौजूदा कानून का फायदा उठाकर गैर-जीआई क्षेत्रों में ताज हाइब्रिड बीज विकसित और बेच रही है, जहां जीआई संरक्षित किस्म के बीज बेचने से पहले किसी अनिवार्य अनुमति की आवश्यकता नहीं होती. उद्योग के एक अधिकारी ने कहा कि बीज लाइसेंस वाला कोई भी व्यक्ति ट्रुथफुली लेबल्ड (टीएल) श्रेणी के तहत बीज किस्म बेच सकता है. लेकिन अगर उसे सरकारी व्यवस्था में शामिल होना है, तो उसे केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी. 

जब शक्ति सीड्स के निदेशक विद्यानाथ रेड्डी से संपर्क करने पर किया गया तो उन्होंने कहा कि हम 'ताज' को बासमती किस्म के रूप में नहीं बेच रहे हैं क्योंकि इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है. हम इसे हाइब्रिड चावल की किस्म कहते हैं, इसलिए इसे कहीं भी उगाया जा सकता है. हमारे पास उत्तर प्रदेश सरकार से लाइसेंस है, इसलिए हम ताज हाइब्रिड चावल सहित अपने बीज बेच रहे हैं. हाइब्रिड चावल का बासमती भौगोलिक संकेतकों से कोई संबंध नहीं है.

विशेषज्ञ ने जताई ये बड़ी चिंता

सूत्रों ने बताया कि कई बीज कंपनियां गैर-जीआई क्षेत्रों में बासमती के बीजों को हाइब्रिड चावल के रूप में बेच रही हैं क्योंकि नियम अस्पष्ट हैं और उन्हें आसानी से दरकिनार किया जा सकता है. उन्होंने पूसा बासमती 1121 (2003 में जारी) का भी उदाहरण दिया, जो 2008 में इस रूप में अधिसूचित होने से बहुत पहले, पहली बार किसानों के बीच बासमती किस्म के रूप में फैली थी.

एक अन्य बासमती विशेषज्ञ ने कहा कि यह अकेला मामला नहीं है, कई बासमती किस्मों को पहले बीज के रूप में उगाया जाता है और बाद में किसानों को व्यावसायिक खेती के लिए बेचा जाता है, और ये दोनों ही गतिविधियां गैर-जीआई क्षेत्रों में होती हैं. उन्होंने कहा कि गैर-जीआई क्षेत्रों में बासमती की कीमतें जीआई क्षेत्रों/राज्यों के किसानों को मिलने वाली कीमतों की तुलना में अपेक्षाकृत कम हैं. उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि भारत के विरासत ब्रांड "बासमती" को सही मायने में संरक्षित किया जाए.

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