रोहतक के सेक्टर 6 में एक बड़ा बाग है जिसमें करीब 1500 से ज्यादा पेड़ लगे हैं. यह बाग करीब साढ़े सात एकड़ में फैला हुआ है और इन पेड़ों को किसान राजबीर राठी ने अपने हाथों से 20-25 साल पहले लगाया था. इन पेड़ों की देखभाल उन्होंने अपने बच्चों की तरह की. लेकिन हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) ने इस जमीन को खाली कराने के लिए भारी पुलिस बल के साथ पेड़ों की कटाई शुरू कर दी.
पेड़ों की कटाई का काम रात के समय शुरू किया गया, जब ज़्यादातर लोग सो रहे थे. सुबह जब किसान राजबीर राठी बाग में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके लगाए पेड़ों को पुलिस की मौजूदगी में काटा जा रहा है. किसान ने विरोध किया और बताया कि NGT (नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल) से उन्होंने स्टे ऑर्डर लिया हुआ है, फिर भी पेड़ों को काटा जा रहा है.
अधिकारियों द्वारा बात नहीं सुने जाने पर किसान राजबीर राठी ने एक बरगद के पेड़ पर चढ़कर रस्सी से फांसी लगाने की चेतावनी दी. उन्होंने साफ कहा कि अगर और पेड़ काटे गए तो वह अपनी जान दे देंगे.
किसान की हालत देखकर सामाजिक कार्यकर्ता नवीन जयहिंद भी मौके पर पहुंचे. उन्होंने पेड़ों की कटाई पर कड़ी नाराजगी जताई और मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों से तेज बहस भी हुई. उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशभर में "एक पेड़ मां के नाम" जैसी हरित मुहिम चला रहे हैं, तो फिर इतने पुराने पेड़ों की कटाई क्यों की जा रही है? किसान राजबीर राठी और उनके बेटे महाराज राठी, दोनों ही बीजेपी के कार्यकर्ता हैं. उन्होंने बताया कि जमीन का विवाद नहीं है, बल्कि पेड़ों की कटाई को लेकर आपत्ति है. उनका कहना है कि कोर्ट में सरकार ने यह हलफनामा दिया था कि पेड़ों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा, फिर भी पेड़ों को कटवाया जा रहा है.
राठी परिवार की साफ मांग है कि बगल में एक खाली पार्क है, जहां प्लॉट बांटे जा सकते हैं. लेकिन अधिकारियों ने उसी जगह के पेड़ काटने का फैसला किया है जहां 25 साल पुराने पेड़ लगे हैं.
इस पूरे मामले में HSVP के SDO कृष्ण कुमार ने कहा कि यह कार्रवाई कोर्ट के आदेश पर की जा रही है. जमीन पर प्लॉट्स देने हैं और इसके लिए इसे खाली कराना जरूरी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की "एक पेड़ मां के नाम" जैसी पर्यावरण सुरक्षा की मुहिम सराहनीय है, लेकिन रोहतक जैसी घटनाएं सरकार की नीतियों और ज़मीनी हकीकत के बीच का अंतर दिखाती हैं. जहां एक तरफ पेड़ लगाने की बात हो रही है, वहीं दूसरी तरफ 20-25 साल पुराने हरे-भरे पेड़ों को बिना संवाद के काटा जा रहा है. यह सवाल उठाता है कि क्या विकास के नाम पर पर्यावरण से समझौता सही है? (सुरेंद्र सिंह का इनपुट)
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