पंजाब के सीमा क्षेत्रों में सतलुज नदी के उफान पर आने से आई बाढ़ ने न केवल व्यापक तबाही मचाई है, बल्कि हजारों लोगों की जिंदगी भी उजड़ गई है. छोटे किसान हों या वृद्ध बुजुर्ग, हर परिवार के पास बाढ़ की त्रासदी की एक दर्दनाक कहानी है — एक ऐसी कहानी जिसमें बचाव, नुकसान और अनिश्चित भविष्य के संघर्ष के पल बयां होते हैं.
33 वर्षीय तरसेम, जो पहले किसान थे, आज खुद को “कुछ भी नहीं” बताते हैं. उनकी खेती तबाह हो चुकी है, कर्ज 2-3 लाख रुपये तक पहुंच गया है, और वह पिछले 20 दिनों से रिश्तेदारों द्वारा बनाए गए टारपोलिन के तंबू में रह रहे हैं. उनकी दृष्टि में संक्रमण के कारण गिरावट आई है, पर इलाज के लिए पैसे नहीं हैं. वह कहते हैं, "मेरा अतीत, वर्तमान और भविष्य सब खत्म हो चुका है."
70 वर्षीय प्यारो और उनके बेटे शरवन छः सदस्यों वाले परिवार के साथ एक पानी टपक रहे कमरे में रहने को मजबूर हैं. प्यारो की बहू बार-बार टूट जाती हैं, छत गिरने का डर सताता है, और बच्चे सुरक्षा के लिए रिश्तेदारों के पास भेजे गए हैं.
5 एकड़ जमीन की मालिक रंजीत कौर अब गांव के बाहर पड़ोसी की दुकान में रहती हैं. वह कहती हैं, “बारिश में सब कुछ नष्ट हो गया.”
सुनिता अपने विकलांग बेटे रोहित का देखभाल करती हैं, जो चल नहीं सकता. बाढ़ के कारण मेडिकल सुविधाएं बंद हैं, और वह हर जरूरत के लिए बेटे को उठाती हैं. रोहित कहता है, “माँ जब मुझे उठाती है तो दर्द होता है.”
रुकनेवाला गांव के परिवारों को बचाव टीमों के आने तक 10 दिन फंसे रहना पड़ा. कई घरों की दीवारें टूट गईं या गिर गईं. सुरजीत कौर और गगनदीप कौर ने बताया कि वे अब तंबू लगाने की योजना बना रहे हैं क्योंकि उनके घर सुरक्षित नहीं रहे. कक्षा 9 और 10 के छात्र और उनकी दादी को बचाया गया, और उनका बस एक ही अनुरोध था — दादी के घुटने के दर्द के लिए दवा.
सबसे दर्दनाक कहानी है 70 वर्षीय मिल्खी राम की, जो 1988 की बाढ़ में अंधे हो गए थे और अब फिर से बेघर हो गए हैं. उनका सात एकड़ का खेत बह गया, घर गिर चुका है, और सब कुछ खो चुका है. आठ सदस्यों के साथ बचाए गए मिल्खी राम कहते हैं, “मैं देख नहीं सकता, लेकिन रो सकता हूं. मेरा परिवार बताता है कि हमारा घर गिर गया है.” वे 10 दिनों तक पानी में फंसे रहे जब तक NDRF की नावें उन्हें नहीं बचा सकीं.
हबीब के गांव में बड़े पैमाने पर खेती का नुकसान संकट को और गहरा गया है. शिंगारा सिंह का अनुमान है कि उनके 80 एकड़ के खेत का नुकसान 60 लाख रुपये से अधिक है. उनकी सबसे बड़ा मांग है कि पशुओं के लिए बड़े बचाव नावें उपलब्ध कराई जाएं.
पांच बच्चों की मां कश्मीर कौर ने बताया, “घर छोड़ना बहुत मुश्किल था, पर मन नहीं माना. सब कुछ वहीं छोड़ कर आना पड़ा.”
फाजिल्का के कनवा वाली गांव में 20 गांव और करीब 4,000 लोग जलमग्न हो गए थे. कई लोग केवल बिस्कुट और लंगर पर जीवित रहे. शेर सिंह, उनकी मां मोहिंदर, और भतीजा 16 दिन बाद बचाए गए. परिवार को लंबे समय तक पानी में रहने से त्वचा संबंधी संक्रमण हो गया है. हालांकि शेर सिंह का भाई और भाभी पशुओं और सामान की रक्षा के लिए वहीं रुके हैं, जहां चार फीट पानी अभी भी भरा हुआ है. शेर सिंह कहते हैं, “हम कुछ समय रिश्तेदारों के साथ रहेंगे.”
सतलुज नदी की बाढ़ ने पंजाब के 23 जिलों को प्रभावित किया है. 43 लोगों की मौत हुई है, जबकि 3 लोग लापता हैं. कुल 1,902 गांव और करीब 3.84 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. अब तक 20,972 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर हटाया गया है, और 6,755 लोग 196 राहत शिविरों में रह रहे हैं.
कृषि क्षेत्र को भी भारी नुकसान हुआ है — 1.71 लाख हेक्टेयर फसलें नष्ट हुई हैं. राहत और बचाव कार्यों के लिए NDRF, वायु सेना, नौसेना, और सेना के 31 दल पूरे पंजाब में तैनात हैं.
पंजाब के सतलुज किनारे बसे इन गांवों के लोग न केवल अपनी खोई हुई संपत्ति और फसलों को गिन रहे हैं, बल्कि अपनी टूटी जिंदगियों को भी जोड़ने की जद्दोजहद कर रहे हैं. यह सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संकट भी है, जिसका प्रभाव लंबे समय तक बना रहेगा.(अमन भारद्वाज की रिपोर्ट)
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