PM Modi Mann Ki Baat: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के जरिए देशवासियों को संबोधित किया. इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने केरल के टीचर राफी रामनाथ समेत कई लोगों और विषयों का जिक्र किया. पीएम मोदी ने देशवासियो को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे प्यारे देशवासियों, हम भारतवासियों का स्वभाव होता है कि हम हमेशा नए विचारों के स्वागत के लिए तैयार रहते हैं. हम अपनी चीज़ों से प्रेम करते हैं और नई चीज़ों को आत्मसात भी करते हैं. इसी का एक उदाहरण है - जापान की तकनीक मियावाकी, अगर किसी जगह की मिट्टी उपजाऊ नहीं रही हो, तो मियावाकी तकनीक, उस क्षेत्र को, फिर से हरा-भरा करने का बहुत अच्छा तरीका होती है. मियावाकी जंगल तेजी से फैलते हैं और दो-तीन दशक में जैव विविधता का केंद्र बन जाते हैं. अब इसका प्रसार बहुत तेजी से भारत के भी अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है.
पीएम मोदी ने आगे कहा कि हमारे यहां केरल के एक टीचर राफी रामनाथ ने मियावाकी तकनीक से एक इलाके की तस्वीर ही बदल दी. मैं देशवासियों से, खासकर, शहरों में रहने वाले लोगों से, आग्रह करूंगा कि वे मियावाकी पद्धति के बारे में जरुर जानने का प्रयास करें. इसके जरिए आप अपनी धरती और प्रकृति को हरा-भरा और स्वच्छ बनाने में अमूल्य योगदान दे सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं पीएम मोदी ने मियावाकी तकनीक और टीचर राफी रामनाथ को लेकर Mann Ki Baat कार्यक्रम में क्या कुछ कहा है-
पीएम मोदी ने कहा कि केरल के एक टीचर रामनाथ अपने विद्यार्थियों को, प्रकृति और पर्यावरण के बारे में गहराई से समझाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने एक हर्बल गार्डन ही बना डाला. उनका ये गार्डन अब एक Biodiversity Zone बन चुका है. उनकी इस कामयाबी ने उन्हें और भी प्रेरणा दी. इसके बाद राफी जी ने मियावाकी तकनीक से एक छोटा जंगल बना दिया और इसे नाम दिया- ‘विद्यावनम्’. अब इतना खूबसूरत नाम तो एक शिक्षक ही रख सकता है. रामनाथ के इस ‘विद्यावनम्’ में छोटी सी जगह में 115 किस्में के 450 से अधिक पेड़ लगाए गए है. उनके विद्यार्थी भी इनके रखरखाव में उनका हाथ बटाते हैं.
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इस खूबसूरत जगह को देखने के लिए आसपास के स्कूली बच्चे, आम नागरिक-काफी भीड़ उमड़ती है. मियावाकी जंगलों को किसी भी जगह, यहां तक कि शहरों में भी आसानी से उगाया जा सकता है.
पीएम मोदी ने कहा कि कुछ समय पहले ही मैंने गुजरात में केवड़िया, एकता नगर में, मियावाकी जंगल का उद्घाटन किया था. कच्छ में भी 2001 के भूकंप में मारे गए लोगों की याद में मियावाकी पद्धति से स्मृति वन बनाया गया है. कच्छ जैसी जगह पर इसका सफल होना ये बताता है कि मुश्किल से मुश्किल प्राकृतिक परिवेश में भी ये तकनीक कितनी प्रभावी है. इसी तरह, अंबाजी और पावागढ़ में भी मियावाकी तकनीक से पौधे लगाए गए हैं. मुझे पता चला है कि लखनऊ के अलीगंज में भी एक मियावाकी उद्यान तैयार किया जा रहा है.
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उन्होंने कहा कि पिछले चार साल में मुंबई और उसके आस-पास के इलाकों में ऐसे 60 से ज्यादा जंगलों पर काम किया गया है. अब तो ये तकनीक पूरी दुनिया में पसंद की जा रही है. सिंगापुर, पेरिस, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया जैसे कितने ही देशों में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है.
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