भारत में खाद्य तेल का सेवन लगातार बढ़ता जा रहा है. और यह अब देशवासियों के स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर चिंता का विषय बन चुका है क्योंकि भारतीय लोगों का तेल सेवन मानक से दोगुना हो गया है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार, एक व्यक्ति को प्रति दिन 27 ग्राम से अधिक खाद्य तेल का सेवन नहीं करना चाहिए. यानी सालाना लगभग 9.85 किलोग्राम खाद्य तेल का उपयोग करना चाहिए. मगर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के आंकड़ों के अनुसार, देश में एक व्यक्ति औसतन प्रतिदिन 54 ग्राम खाद्य तेल का सेवन कर रहा है, जो सालाना 19.7 किलोग्राम तक पहुंचता है. यह अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी बोझ डालता है. अगर लोग अपने खाद्य तेल सेवन को नियंत्रित करें और पोषण संबंधी मानकों का पालन करें, तो न केवल उनका स्वास्थ्य बेहतर होगा, बल्कि देश को खाद्य तेल के आयात में भी भारी कमी आएगी, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी.
दुनिया में तिलहन फसलों के उत्पादन में भारत का पांचवां स्थान है. फिर भी जनसंख्या और आय में वृद्धि के कारण, जहां खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत 1950-60 में 2.9 किलोग्राम प्रति वर्ष से बढ़कर 2023-24 में 19.7 किलोग्राम प्रति वर्ष हो गई है. यानी लगभग सात गुना बढ़ी है. इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, भारत अपनी जरूरतों के लिए का 60 फीसदी खाद्य तेल आयात कर रहा है. ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के अनुसार, बेहतर स्वास्थ्य के लिए जलवायु परिस्थिति के अनुसार, प्रति व्यक्ति 27 ग्राम से अधिक खाद्य तेल का सेवन नुकसानदायक हो सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक खाद्य तेल का सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, गैस, सूजन, दर्द, दस्त, वजन बढ़ने, मोटापा, हार्ट डिजीज़, स्ट्रोक, डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, कम उम्र में कमजोरी, कैंसर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है. भारत में हर साल 230 से 250 लाख टन खाद्य तेल की खपत होती है और हर साल लगभग 150 से 160 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया जाता है. अगर भारतीय नागरिक सही मात्रा में खाद्य तेल का सेवन करें, तो देश को खाद्य तेल का आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उनका स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा.
ICAR के अनुसार भारत के विभिन्न क्षेत्रों में खाद्य तेलों की पसंद में भी भिन्नताएं पाई गईं. उत्तर भारत में 61 फीसदी सरसों तेल का उपयोग किया जाता है, वहीं पूर्वी भारत में 35 फीसदी सरसों तेल का उपयोग करते हैं. पश्चिमी भारत में सोयाबीन तेल की खपत अधिक होती है, जहां 28 फीसदी लोग इसका सेवन करते हैं. दक्षिणी भारत में सूरजमुखी तेल 44 फीसदी सबसे अधिक उपयोग होता है. इसके बाद मूंगफली तेल 29 फीसदी का सेवन करते हैं.
भारत में खाद्य तेल का सेवन लगातार बढ़ता जा रहा है. ICAR के अनुसार, भारत में खाद्य तेलों की खपत में ग्रामीण और शहरी घरों के बीच अंतर है. ग्रामीण घरों में प्रति व्यक्ति सालाना तेल की खपत शहरी घरों की तुलना में 3 किलो ज्यादा है. वहीं, मांसाहारी लोग शाकाहारी लोगों से 2 किलो ज्याद खाद्य तेल का उपयोग करते हैं. भारत में खाद्य तेल की खपत में वृद्धि के कई कारण हैं. सबसे प्रमुख कारण है जनसंख्या में वृद्धि और जीवन स्तर में सुधार. जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ी है, वैसे-वैसे उनका खानपान और आहार की आदतें भी बदल गई हैं. लोग अब अधिक तला-भुना और तैलीय भोजन खाने लगे हैं, जो स्वाद के अलावा सुविधाजनक भी लगता है. इसके साथ ही खाद्य तेल के विभिन्न प्रकार और ब्रांड भी बाजार में उपलब्ध हैं, जो आकर्षक पैकिंग और विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को आकर्षित करते हैं.
भारत में प्रमुख खाद्य तेलों का उत्पादन मुख्य रूप से सोयाबीन, मूंगफली और सरसों से होता है, जो 80 फीसदी से अधिक तेल का उत्पादन करते हैं. इसके अतिरिक्त, 30 लाख टन तेल अन्य स्रोतों से प्राप्त होता है, जैसे कि कपास का बीज, चावल की भूसी, ताड़ का तेल और नारियल इत्यादि. भारतीयों का खाद्य तेल का अधिक सेवन उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. भारत में खाद्य तेल की खपत में वृद्धि और उसके आयात पर निर्भरता की है.
इस दिशा में सुधार के लिए हमें अपनी खाने की आदतों को बदलने और सही तेल का सेवन करने की जरूरत है. इस प्रकार, खाद्य तेल की खपत पर नियंत्रण और सुधार के उपायों को लागू कर, भारत में खाद्य तेल के आयात पर निर्भरता को कम किया जा सकता है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को भी कम किया जा सकता है.
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